जल स्तंभन मंत्र | मेघ स्तंभन मंत्र | Jal Stambhan Mantra | Megh Stambhan Mantra

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जल स्तंभन मंत्र | मेघ स्तंभन मंत्र | Jal Stambhan Mantra | Megh Stambhan Mantra

जल स्तंभन मंत्र | Jal Stambhan Mantra


ओम् नमो भगवते रुद्राय जल स्तम्भय ठः ठः ठः ।

इस उपरोक्त मन्त्र को प्रथम एक लाख बार जाप कर सिद्धि करें और आवश्यकता होने पर निम्न प्रकार से प्रयोग करें –

(१) केकड़ा नामक जलजीव के पाँव, दाँत तथा रुधिर, कछुए का हृदय, सूँस की चर्बी और भिलावे का तेल । उपरोक्त समस्त वस्तुयें एकत्र कर अग्नि में पका १०८ बार मन्त्र पढ़ सर्वांग पर लेप करने से अद्भुत जल स्तम्भन होता है ।

(२) लिसोड़े तथा तुम्बी के बीज और फलों को जल के संयोग से पीस कर एक सौ आठ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित कर प्रवाहित जल में रात्रि के समय डालने से जल स्तम्भन हो जाता है और जब तक जल में नमक न डाला जाय जल प्रवाहित नहीं होता है ।

(३) पद्माक्ष का चूर्ण एक सौ आठ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित कर जल में डालने से जल स्तम्भन होता है ।

(४) नेवला, साँप तथा नाका (घड़ियाल) की चर्बी और डुण्डुम की खोपड़ी, इन चारों वस्तुओं को भिलावे के तेल में पकाकर तेल को लोहे के बर्तन में रखकर कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शिवजी की पूजा कर हवन करे और उसमें १००८ घी की आहुति देवे, तत्पश्चात् उक्त सिद्ध तेल को अंग में लेप करके मनुष्य जल की सतह पर निर्विघ्न विचरण कर सकता है, जैसे पृथ्वी पर विचरण करता है ।

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ओम् नमो भगवते रुद्राय जल स्तम्भय स्तम्भय ठः ठः स्वाहा ।

उपरोक्त मन्त्र को सात बार पढ़कर पद्माक्ष का चूर्ण जल में डालने से जल स्तम्भन होता है ।


ओम् थं थं थं थाहि थाहि ।

दुलारा नामक पक्षी के पंख लाकर एक सौ आठ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित कर जल में डालने से जल का स्तम्भन होता है ।


ओम् अस्फोट पति धारा उल्मलूका क्रां क्रां क्रां

रविवार के दिन खटकुली नामक पक्षी के पंख लाकर एक सौ आठ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित कर बगल में दबाकर दरिया के बीच में खड़ा होने से जल प्रवाह रुक जाता है, यानी जल स्तम्भन होता है ।

मेघ स्तंभन मंत्र | Megh Stambhan Mantra


ओम् मेघान् स्तम्भन कुरु कुरु स्वाहा

श्मशान की भस्म लाकर नई ईंट पर चार सम रेखाये खींच उसके ऊपर एक ईंट रखे, तत्पश्चात् १०८ बार मन्त्र से अभिमन्त्रित कर निर्जन वन में गाड़ दे, तो जलवृष्टि रुक जाती है, यानी मेघ स्तम्भन होता है ।

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