गुटिका सिद्धि | Gutika Siddhi | Siddh Gutika
साधकश्चिल्लालयं गत्वा नित्यं तस्मै निवेदयेत्
देवताबुद्ध्यातिभक्त्या भक्षणार्थं किञ्चित् किञ्चि-
दाममांसं निक्षिपेत् । यावत् प्रसूता भवति
ततः पारदं रसं सार्द्धनिष्कत्रयं कस्मिंश्चिन्ना-
लिकाद्वये निक्षिपेत् । तस्याधोऽर्द्धच्छिद्रं
सिक्थकेन रुद्धा चिल्लालयं गत्वा अण्डद्वयस्यो-
परि नालिकाद्वयं निधाय लौहशलाकया नालिका-
मध्यमार्गेण तदण्डं लघुहस्तेन वेधयित्वा
शलाकामुद्धरेत् । तेनैव मार्गेण अण्डमध्ये
यथासमं गच्छति तथा युक्तं कुर्य्यात् । ततश्छिद्रं
चिल्लविष्ठया लिपेत् । ततस्तद्वृक्षाधो नित्यं
बल्युपहारेण पूजां कुर्य्यात्। यावत् स्वयमे-
वाण्डानि स्फोटन्ति तावन्नित्यमुपरि गत्वा निरीक्षयेत् ।
स्फुटिते सति गुटिकाद्वयं ग्रासं ततो
वृक्षादुत्तीर्य्य यो गिलति मनुष्यस्यस्मै एका देया,
अपरां स्वयं मुखे धारयेत् । योजनद्वादशं गत्वा
पुनरेव निवर्त्तते। ओं हूँ हूँ फट् चिल्लचक्रेश्वरि
परात्परेश्वरि पादुकामासनं देहि मे देहि स्वाहा ।
अनेक मंत्रेण जपं पूजाञ्च कुर्य्यात् ।। इति सिद्धियोगः ।।
जिस प्रकार गुटिका की सिद्धि होती है, वह विधि निम्न प्रकार है –
साधक चील के वास स्थान में (जिस पेड़ पर चील का घोंसला हो) उसको देवता जान पूजा करके, उसे प्रतिदिन खाने को थोड़ा-थोड़ा कच्चा मांस प्रदान करे । प्रसवकाल तक इस प्रकार आहार देता रहे । प्रसव के उपरांत दो नल प्रस्तुत कर उनके ऊपर और नीचे के दोनों छिद्र मोम से बन्द कर दे । फिर उनमें साढ़े तीन तोला परिमाण में पारा डालकर इन दोनों नलों को दोनों अण्डों के ऊपर स्थापन करे और लोहशलाका नल के ऊपर मुख में प्रवेशित कर अत्यन्त सावधानी से दोनों अण्डों को छेदकर शलाका निकाले, इस प्रकार सतर्कतापूर्वक और कोमल हस्त से अण्डे वेधने चाहिये, क्योंकि इन छिद्रों द्वारा अण्डों में स्थित पारा, प्रवेश कर सके और अंडे न टूटे | इसके उपरांत इस अंडो के छिद्र उसी चील की विष्ठा से बंद कर वृक्ष के नीचे अंडे फूटने तक प्रतिदिन बलि दे और विविध उपहारों से पूजा करते रहे | जब तक यह अंडे स्वयं न फूटे, तब तक रोज इस वृक्ष के ऊपर चढ़कर देखे | इन अंडो के फूटने पर दिखाई देगा की इनमे दो गुटिकाए हुए है, तब इन दोनों गुटिकाओ को लाकर एक दूसरे को दे और एक को स्वयम मुख मे धारण करे |
इस प्रकार क्रिया करने से साधक शत योजन जाकर, फिर उसी स्थान पर तत्काल लौटकर आ सकता है |
“ओं ह्रीं हूँ फट् चिल्लचक्रेश्वरि परात्परेश्वरि पादुकामासनं देहि मे देहि स्वाहा। “
इस मंत्र से पूजा और जप करे ।
शिखा पारावतभवा खञ्जरीटपुरीषजा ।
गुटिकास्पर्शमात्रेण तालयन्त्रं भिनत्त्यलम् ।।
मोर, पारावत और खञ्जन पक्षी, इनका विष्ठा लेकर गुटिका कर इस गुटिका के स्पर्श करने से तत्काल सम्पूर्ण वाद्य यन्त्र (बाजे) टूट जाते हैं । गुटिका करने के पहले पूर्वोक्त मंत्र से पूजा कर एक लक्ष जाप करे ।