अलेक्जेंडर फ्लेमिंग का जीवन परिचय | अलेक्जेंडर फ्लेमिंग कौन थे | अलेक्जेंडर फ्लेमिंग का आविष्कार | Alexander Fleming Autobiography
अलैक्जेण्डर फ्लेमिंग विश्व के पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने सन् १९२८ में पेनिसिलिन का आविष्कार करके संक्रामक रोगों से लड़ने और उन पर काबू पाने का रास्ता दिखाया ।
स्कॉटलैण्ड में ६ अगस्त १८८१ को जन्मे अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने सन् १९०६ में सेंट मैरी हास्पिटल मैडिकल स्कूल से डिग्री प्राप्त करने के बाद प्रतिजीवी (Anti-bacterial) पदार्थों पर काम करना आरम्भ किया । इसके बाद वे रॉयल आर्मी मैडिकल कॉप्स में चले गए लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर सन् १९१८ में वे फिर सेंट मैरी मैडिकल स्कूल लौट आए ।
सन् १९२८ की बात है कि जब वे रोगों के जीवाणुओं के साथ कुछ प्रयोग कर रहे थे तो आकस्मिक रूप से उन्होंने पेनिसिलिन जैसी जीवनदायी औषधि का आविष्कार कर डाला । पेनिसिलिन के आविष्कार की कहानी बड़ी दिलचस्प है ।
फ्लेमिंग अपने प्रयोगों के लिए एक पैट्री डिश काम में ला रहे थे । एक दिन फोड़ों से प्राप्त पीप में मौजूद जीवाणुओं पर प्रयोग करते समय प्रोफेसर फ्लेमिंग ने एक आश्चर्यजनक बात देखी । उन्होंने देखा कि पैट्री डिश में पड़ी ज़ैली में फंफूद उग आई थी । जहां पर भी यह फंफूद उगी थी, वहां सभी बैक्टीरिया मर गए थे । इस फंफूद का जन्म शायद हवा में उड़ कर आए हुए उन बीजाणुओं से हुआ था जो उनकी प्रयोगशाला में खुली खिड़की से प्रवेश करके खुली पैट्री डिश पर जम गए थे | उन्होंने इस फंफूद का पता लगाया और पाया कि यह पेनिसिलियम नोटाडम (Penicillium Notadum) थी । यह फंफूद परिवार की एक विरल किस्म थी ।
इस अकस्मात हुई घटना को फ्लेमिंग ने कई बार दोहराया । सबसे पहले उन्होंने पेनिसिलियम की उस विरल किस्म के नमूने उगाये । फिर इस फंफूदी से निकाले गए रस द्वारा रोग जीवाणुओं पर प्रभाव कर अध्ययन किया । प्रयोग को कई प्रकार के जीवाणुओं के साथ दोहराकर उन्होंने पता लगाया कि इस फंफूद से निकले रस का जीवाणुओं पर घातक प्रभाव पड़ता है । वे इस रस से मर जाते हैं ।
यह अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण आविष्कार था क्योंकि उन्होंने एक ऐसा द्रव प्राप्त कर लिया था, जो रोगाणुओं को पैदा होने से रोकता था । चूंकि यह रस पेनिसिलियम फंफूद से प्राप्त किया गया था इसलिए इसका नाम पेनिसिलिन रखा ।
फ्लेमिंग ने पेनिसिलिन घोल के साथ अनेक प्रयोग किए। उन्होंने पाया कि इस घोल को हल्का कर लेने पर भी इसका प्रभाव जीवाणुओं पर पड़ता है । अपने प्रयोगों के दौरान उन्होंने देखा कि पेनिसिलिन एक विचित्र पदार्थ है, जो प्रयोग करते समय दूसरे पदार्थ में बदल कर स्वयं प्रभावहीन हो जाता है । इसके इस गुण विशेष के कारण कई वर्षों तक इसके अध्ययन में प्रगति न हो पाई । अंत में इस समस्या का समाधान किया सन् १९३८ में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हॉवार्ड फ्लोरे (Howard Florey) और अर्नस्ट चेन ((Ernst Chain) ने । उन दोनों ने एक जटिल प्रक्रम द्वारा इस औषधि को स्थिर कर दिया । इस प्रक्रम को ‘फ्रीज ड्राइंग’ (Freeze Drying) कहते हैं ।
जून, १९४१ में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पेनिसिलिन का छ: रोगियों पर परीक्षण किया गया । इस इलाज के बड़े अच्छे परिणाम प्राप्त हुए लेकिन दुर्भाग्यवश पेनिसिलिन की कमी हो जाने से दो रोगियों की मृत्यु हो गई । तब यह आवश्यक हो गया कि इस औषधि को अधिक मात्रा में तैयार करने के लिए तुरन्त प्रयत्न किए जाएं ।
सन् १९४१ के अन्तिम दिनों में फ्लेमिंग अमरीका गए और वहां उन्होंने पेनिसिलिन को अलग करने की विधि के विषय में अनेक वैज्ञानिकों से विचार-विमर्श किए । अमरीका के औषधि निर्माताओं ने इस दिशा में उन्हें हार्दिक सहयोग दिया । अनेक महीनों की सक्रियता और प्रयासों के बाद पेनिसिलिन को बहुत अधिक मात्रा में पृथक करने की विधि मालूम कर ली गई । शीघ्र ही इस औषधि का निर्माण और प्रयोग विस्तृत रूप से होने लगा । देखते ही देखते यह औषधि चिकित्सा जगत की रीढ़ बन गई ।
डिपथीरिया, निमोनिया, रक्त विषाक्तता, गले का दर्द, फोड़े और गंभीर घावों के लिए पेनिसिलिन को आदमी के खून में इन्जेक्ट किया जा सकता है । सामान्यतः ऑपरेशन के समय सर्जन इसे रोगियों को देते हैं । पेनिसिलिन कई प्रकार के जीवाणुओं को पैदा होने या फैलने से रोकता है । यौन रोगों पर नियंत्रण करने के लिए यह बहुत ही प्रभावकारी औषधि है ।
पेनिसिलिन के आविष्कार के बाद स्ट्रेप्टो माइसिन, टैरामाइसिन आदि अनेक एण्टीबॉयोटिक औषधियों का आविष्कार हुआ । आज इन एण्टीबॉयोटिक औषधियों द्वारा लाखों लोगों को मौत के मुंह से बचाया जाता है ।
इस आश्चर्यजनक और आकस्मिक खोज और विश्लेषण के लिए सन् १९४५ का चिकित्सा क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार फ्लेमिंग, फ्लोरे और चेन को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया ।
इस खोज से फ्लेमिंग का नाम विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया ।
इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु ११ मार्च, १९५५ को लन्दन में हो गई ।