विक्रम बेताल हिंदी कहानी – पिंडदान | Vikram Betal Best Story
“सुनो राजा विक्रम !” बेताल ने कहानी सुनानी आरम्भ की –
काशी नगरी में हरिदत्त नामक एक ब्राह्मण रहता था । उसके एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी । उसका नाम लीला था । रात का समय था । लीला अपने शयनागार में सो रही थी ।
अचानक आहट पाकर उसकी नींद खुल गई । वह घबराकर उठ गई और बोली-“कौन है ?”
तब एक धीमी आवाज आई—”मैं हूं।”
लीला ने देखा एक गबरू जवान कोने में घबराया-सा दुबका खड़ा है ।
लीला बोली–”तू कौन है और यहां कैसे आया ? क्या तू चोर है ?”
“हां।” वह बोला—”पर तुम्हारे घर चोरी करने नहीं आया । मैं चोरी करने जा रहा था कि सिपाहियों ने देख लिया । उन्हीं के डर से भागकर मैं यहां आ गया हूं । कुछ देर बाद चला जाऊंगा । तुमको कोई नुकसान न होगा।”
तभी बाहर सड़क पर सिपाहियों की आवाजें आईं । लीला को चोर की बात पर विश्वास हो गया । उसने उसे छिपाये रखा । उसका रूप-रंग व शरीर देखकर लीला का मन चलायमान हो गया और उसने चोर को अपने बिस्तर पर सुला लिया।”
हे राजा विक्रम ! इस प्रकार वह चोर भोग-विलास करके सिपाहियों के चले जाने के बाद अपनी राह चला गया । जाते-जाते वह लीला से फिर आने का वायदा करता गया । किन्तु वह दोबारा न आ सका ,क्योंकि दूसरे दिन ही राजा के सिपाहियों द्वारा वह पकड़ लिया गया । उसने राजमहल में चोरी की थी । इस अपराध में राजा ने उसे शूली पर लटका दिया । वह चोर मारा गया । यह सब जानकर लीला बहुत दुखी हुई ।
इसके बाद लीला पर एक संकट और आ गया । उसे गर्भ ठहर गया । उधर, ठीक इसी समय उसका विवाह तय कर दिया गया । लीला ने सारा भेद छिपाकर रखा और अपने पति के घर चली गई । उचित समय पर उसने एक बालक को जन्म दिया । उसका पिता वह चोर था । इसका ज्ञान लीलावती को था ।
उसके पति को किसी प्रकार का शक न हुआ ।
हे राजा विक्रम समयानुसार वह लड़का जवान हो गया तो लीला का पति मर गया । लड़के ने अपने पिता का दाह संस्कार कर दिया । वह लड़का अत्यन्त कुशल और मेधावी था । उसने पिता का कारोबार खूब बढ़ाया । कालान्तर में उसकी मां का भी देहान्त हो गया ।
पुत्र ने उसका भी दाह-संस्कार कर दिया ।
फिर एक अमावस्या आई । यह अमावस्या पितरों की थी । अतएव पुत्र ने फल्गु नदी में जाकर पिंडदान करना ठीक समझा । उसके माता-पिता दोनों का देहान्त हो गया था । अतएव उसने इस बार ऐसा ही करना ठीक समझा । पुरोहितों को साथ लेकर वह फल्गु नदी के किनारे आया । उसने विधिवत् पिंडदान के सारे कार्य सम्पन्न किए । फिर वह पिंडदान करने फल्गु नदी तट पर आया ।
वह अकेला था । पिंडदान करने लगा तो अचानक तीन हाथ बाहर आकर पिंड के लिए हाथ हिलाने लगे । इस पर उस पुत्र को बड़ा अचरज हुआ । उसने पूछा- “यह पहला हाथ किसका है ।”
आवाज आई—“मैं तेरी मां हूं ।”
लड़के ने मां को पिंडदान कर दिया ।
फिर पूछा- “यह दूसरा हाथ किसका है ? “
“मैं तेरा पिता हूं।”
वह लड़का रुक गया । बोला-“यह तीसरा हाथ किसका है ?”
“मैं तेरा पिता हूं।”
हे राजा विक्रम ! अपने दो पिताओं को देखकर वह घबरा गया । उसने दूसरे हाथ से पूछा – तुम मेरे पिता किस प्रकार हुए ?”
वह हाथ चोर का था । चोर ने सारी बात सच-सच बतला दी । लड़का कुछ न बोला । फिर उसने तीसरे हाथ से पूछा- “तुम मेरे पिता किस प्रकार हो ?”
तब उस हाथ से आवाज आई — “बेटा ! जीवन भर मैंने तुमको पाला-पोसा बड़ा किया । अपना पुत्र माना । आज तुम अपने पिता को नहीं पहचान रहे हो ?”
लड़का असमंजस में पड़ गया । वह अपने होंठ काटने लगा । उसकी समझ में न आ रहा था कि वह किसे पिता मानकर पिंडदान करे ?
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
बेताल इतना कहकर चुप हो गया । फिर बोला – अब तुम्हीं निर्णय करो राजा विक्रम ! वह लड़का किसे पिंडदान करे । किसको अपना पिता माने ?”
राजा विक्रम कुछ देर सोचने के बाद बोला – “सुनो बेताल ! जन्म देने मात्र से ही कोई किसी का पिता नहीं हो जाता ।”
बेताल ने आश्चर्य प्रकट किया, कहा-“तुम्हारा कथन स्पष्ट नहीं हुआ
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
विक्रम बोला—”सुनो बेताल ! उस बालक को जन्म देने वाला तो चोर ही था।”
‘हां! इस कारण वह पिंड का अधिकारी बनता है।” बेताल बोला।”
“नहीं।” विक्रम ने कहा – “जन्म देना ही पिता होना नहीं है । जिसने उसका लालन-पालन किया, पोषण किया, वही उसका पिता होता है । इस कारण उसे तीसरे हाथ में पिंड देना चाहिए।”
बेताल कुछ देर चुप रहा । फिर अट्टहास कर बोला-“तुम्हारा कथन एकदम ठीक है, राजा विक्रम ।
तुम्हारा न्याय एकदम सही है।”
उसका अट्टहास उस बियाबान में गूंज गया । उसी समय बेताल ने राजा विक्रम के कंधे पर से उछाल लगा दी । वह भाग खड़ा हुआ । विक्रम हड़बड़ाकर पीछे दौड़ा । तब तक बेताल दौड़कर फिर उसी पेड़ पर लटक गया । विक्रम उसके पास आया ।