विक्रम और बेताल की कहानी | सबसे बड़ा दुर्गुण | Vikram Betal Ki Kahani in Hindi

विक्रम और बेताल की कहानी | सबसे बड़ा दुर्गुण | Vikram Betal Ki Kahani in Hindi

विक्रम एक बार फिर बेताल को कंधे पर लादकर चल दिया । काफी देर से बेताल कुछ बोला नहीं था, इसलिए विक्रम अब श्मशान के काफी निकट पहुंच चुका था । इस बार विक्रम ने सोच लिया था कि इस बार वह योगी के पास पहुंचकर ही दम लेगा ।

तभी बेताल बोला—”सुनो राजा विक्रम ! तुमको एक अजब कहानी सुनाता हूं।” बेताल कहने लगा । विक्रम सुनता गया ।

उज्जैन नगरी की बात है । वहां पर वासुदेव शर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था । वह बड़ा धार्मिक था । उसका एक पुत्र था । उसका नाम था गुणाकर । उसका यह पुत्र महालम्पट था । वह जुए में काफी सम्पत्ति हार गया था । दुराचारी भी था । इस कारण वासुदेव शर्मा ने अपने पुत्र गुणाकर को घर से निकाल दिया । उसे सभी अधिकारों से वंचित कर अपना पुत्र ही मानने से इन्कार कर दिया । गुणाकर निकाल दिए जाने के बाद दरिद्र हो गया । भिखारियों की सी दशा हो गई ।

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एक दोपहर भटकते-भटकते वह एक महा श्मशान में आ गया । उसे बहुत जोर की भूख लगी थी । भूख से बेहाल था । तभी उसकी दृष्टि एक योगी पर गई । वह योगी जलती चिता के पास बैठा था । गुणाकर उसके पास गया और उस योगी से भोजन की याचना की ।

“महाराज ! मैं बहुत भूखा हूं।”

गुणाकर की याचना पर योगी को दया आ गई । उसने तत्काल मानव खोपड़ी में उसे खाने के लिए भोजन दिया । यह देखकर गुणाकर घबरा गया । हाथ जोड़कर बोला—“महाराज क्षमा करें । मैं इस खोपड़ी में नहीं खाऊंगा ।”

तब योगी ने मंत्र पढ़ा । उसके मंत्र पढ़ते ही एक परम सुन्दरी योगिनी उपस्थित हो गई । योगी बोला- “जा इसको भोजन करा और सुख दे ।”

योगिनी गुणाकर को अपने साथ ले गई । उसने एक सुन्दर भवन में गुणाकर को नाना प्रकार के व्यंजनों से तृप्त किया । गुणाकर उस पर मोहित हो गया । उसके साथ उसने भोग-विलास भी किया । जब गुणाकर तृप्त हो गया तो वह योगिनी चली गई ।

गुणाकर तब योगी के पास आया और बोला – “महाराज ! वह तो चली गई।”

“जाएगी ही । वह माया थी।” योगी बोला ।

गुणाकर ने योगी के चरण पकड़ लिए ।

गिड़गिड़ाने लगा – “महाराज! यह विद्या आप मुझे भी सिखा दें ।”

योगी बोला — “इसके लिए तुम्हें साधना करनी पड़ेगी । “

“मैं तैयार हूं।”

गुणाकर का इतना लगाव देखकर योगी ने उसे मंत्र और साधना का उपाय बतला दिया । लगातार एक सप्ताह तक साधना करने पर भी वह योगिनी न आई । गुणाकर दुखी होकर योगी के पास आया ।

‘महाराज ! वह तो नहीं आई।”

“तूने साधना में कमी रखी होगी।”

“मैंने आपके बतलाए प्रत्येक कर्म का पालन किया है ।”

“अच्छा चिता के सामने साधना करो ।”

योगी की बात मानकर तब गुणाकर ने चिता के सामने अपनी साधना शुरू कर दी । उसने साधना का पूरा समय व्यतीत कर दिया । योगिनी प्रकट न हुई । गुणाकर बड़ा दुखी हो गया । उसने योगी से जाकर फिर इस बात को कहा । तब योगी ने उसे लात मारकर कहा-“कैसे मूर्ख को मैंने शिष्य बनाया।” और उस भगा दिया ।

गुणाकर भागा नहीं । वहीं पड़ा रहा । योगी से बराबर याचना करता रहा । योगी उसकी प्रार्थना पर ध्यान ही नहीं दे रहा था । उसी समय एक युवक वहां आया । वह भी योगी का शिष्य बन गया । उसको भी योगी ने वही सब बतलाया, जो गुणाकर को बतलाया था । गुणाकर ने आश्चर्य से देखा । उस युवक की साधना पूरी हो गई थी । योगिनी उसके सामने आकर प्रकट हो गई थी |

गुणाकर हैरान रह गया और विलाप करने लगा । तब योगी ने उसे शाप देने का भय दिखलाकर वहां से भगा दिया । दुखी गुणाकर शमशान छोड़कर चल पड़ा । उसका मन बहुत टूट गया था । वह अपना जीवन बेकार मानने लगा था । वह बहुत दूर निकल गया । अपने जीवन से वह एकदम निराश हो गया था । आगे जाकर गुणाकर ने कुएं में कूद कर प्राण दे दिए ।

इस प्रकार उसका जीवन समाप्त हो गया ।

विक्रम बेताल के सवाल जवाब

बेताल के सवाल :

अपनी बात कहकर बेताल चुप हो गया । फिर कुछ देर बाद बोला- अब निर्णय करो राजा विक्रम कि क्या वह योगी दंड का भागी नहीं बनता, जिसके कारण गुणाकर ने अपनी जान दे दी । आखिर गुणाकर की साधना पर वह योगिनी क्यों न आई ?”

राजा विक्रमादित्य के जवाब :

विक्रम कुछ देर मौन रहा । फिर बोला—”बेताल इसमें योगी का कोई अपराध नहीं है । आखिर एक और युवक ने साधना की । उसके पास योगिनी कैसे आ गई । इसमें सारा दोष गुणाकर का है ।”

“वह कैसे ?” बेताल ने पूछा।

‘सुनो बेताल !” विक्रम ने कहा – “चंचलता मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्गुण है । इसके रहते मनुष्य कभी किसी कार्य में सफल नहीं हो सकता । गुणाकर का वही दोष था । अपनी चंचलता के कारण ही वह असफल होता था ।”

“उसमें क्या चंचलता थी ?”

“वह योगिनी के भोग-विलास का ही अधिकतर खयाल करता था । इस कारण उसकी साधना पूरी न हो सकी थी । किसी भी कार्य की सफलता के लिए मनुष्य का एकाग्र होना आवश्यक है । चंचल चित्त या चंचलता के कारण कोई भी मनुष्य सफल नहीं हो सकता । यही इसका कारण था ।”

विक्रम की बात सुनकर बेताल बोला – “हे राजा विक्रम! तुम्हारा न्याय एकदम सही है।” और वह भयानक अट्टहास करने लगा । उछलकर भागने को हुआ तो वह विक्रम से अपने को न छुड़ा सका । इस बार विक्रम ने उसे कसकर पकड़ रखा था ।

तब बेताल बोला–“हे राजा विक्रम ! तुम होशियार हो गए हो।”

“तुम्हें भागने नहीं दूंगा।” विक्रम बोला ।

‘मैं नहीं भागूंगा।” बेताल बोला – “तुम्हारी बात मान ली । अच्छा, अब थोड़ा-सा रास्ता रह गया है । वह भी कट जाएगा । तब तक एक और कहानी सुनो।”

राजा विक्रम सहमत हो गया। बेताल उसको अगली कहानी सुनाने लगा । राजा चुपचाप सुनता हुआ चलने लगा । श्मशान थोड़ी ही दूर रह गया था । इस बार विक्रम को पूरा विश्वास था कि वह बेताल को योगी के पास लेकर जरूर पहुंच जाएगा ।

उस समय रात का दूसरा पहर समाप्त होकर तीसरा शुरू हो गया था । आकाश के तारे इसका स्पष्ट प्रमाण दे रहे थे । विक्रम बेताल को कंधे पर लटकाए था । उसका शरीर भारी था । राजा विक्रम को बड़ा परिश्रम करना पड़ रहा था, पर वह हिम्मत न हार रहा था । वह सारा रहस्य जानने का इच्छुक था । शयनकक्ष में आने वाला देव उसको सतर्क कर चुका था । वह साधु का वास्तविक रूप देखना चाहता था ।

विक्रम बढ़ता जा रहा था । वह जानता था कि बेताल अब फिर उसे एक नई कहानी सुनाएगा ।

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