मस्तकशूल विनाशक मंत्र | आंखों का मंत्र | चक्षु मंत्र | सर्व संकट नाशक बन दुर्गा मंत्र | सर्व संकट नाशक मंत्र | दंत शूल नाशक मंत्र | बुखार नाशक मंत्र | Chakshu Mantra
विशेष- इन सभी मन्त्रों को सिद्ध करने के लिए आवश्यक है कि साधक इन पर श्रद्धा एवं विश्वास के साथ अमल करे । हृदय में आस्था, लगन एवं आत्मविश्वास न होने की दशा में सभी मन्त्र प्रभावहीन प्रतीत होंगे ।
मस्तकशूल विनाशक मंत्र
निसुनीह रोई बद कर मेघ गरजहि निसु न दीपक
हलुधर फुफुनिबेरि फूनि डमरु न बजै निसुनहि
कलह निन्न पुटु काच मई ।
इस मन्त्र को दीपावली की रात्रि को २,१०० बार जाप कर सिद्ध कर लेना चाहिए और प्रयोगावसर पर केवल २१ बार मन्त्र को पढ़कर फूंक मार देने से दर्द देवता भाग जाते हैं ।
आँखों का दर्द दूर करने का मंत्र | आंखों का मंत्र
सातों रीदा सातों भाई सातों मिल के आँख बराई
दुहाई सातों देव की, इन आँखिन पीड़ा करै तो
धोबी को नाँद चमार के चूल्हे परै। मेरी भक्ति गुरु
की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।
इस मन्त्र को दीपावली या होली की रात्रि से प्रारम्भ कर इक्कीस दिवस तक नित्य १०८ बार जाप कर पूजन करने से यह सिद्ध हो जाता है और आवश्यकता के समय केवल २१ बार मन्त्र पढ़कर मार देने से दर्द देवता विदा हो जाते हैं ।
सर्वसंकटनाशक बन दुर्गा मंत्र | सर्व संकट नाशक मंत्र
ओम् ह्रीं उत्तिष्ठ पुरिषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितम् ।
यदि शक्यम् शक्यं वा तन्में भगवति शमय स्वाहा ह्रीं ओम् ।।
इस मन्त्र को नवरात्र के अवसर पर पवित्रतापूर्वक प्रतिदिन प्रातः देवी के मन्दिर में दस हजार बार जाप करके सिद्ध कर लेना चाहिये । इस मन्त्र का प्रतिदिन एक माला जाप करने से मनुष्य अकाल मृत्यु मार्ग दुर्घटना भय आदि अनेक विपत्तियों से सुरक्षित रहता है ।
दंत शूल नाशक मंत्र | दांत दर्द का झाड़ा मंत्र
अग्नि बाँधौ अग्नीश्वर बाँधौं सौलाल विकराल
बाँधौ लोहा लुहार बाँधौ बज्र के निहाय वज्र घन
दाँत विहाय तो महादेव की आन ।
इस मन्त्र को केवल नौ दिन तक रात्रि के समय २,१०० बार जाप करके सिद्धि कर ले, फिर जब प्रयोग करना हो तो तर्जनी उंगली से २१ बार मन्त्र पढ़कर झाड़ देने से दाँत का दर्द दूर हो जाता है ।
तपेदिक (टी.बी.) आदि सर्वज्वरनाशक अद्भुत मंत्र
ओम् कुबेर ते मुखं रौद्रं नन्दिन्ना नन्द मावह ।
ज्वरं मृत्युं भयं घोरं विषं नाशय मे ज्वरम् ।।
आम के १०८ ताजे पत्ते तोड़कर शुद्ध गाय के घी में डुबो दे, यदि घी कुछ कम होवे तो पत्तों पर चुपड़ दें और जिस स्थान पर रोगी की शय्या पड़ी हो आम, बेर अथवा पलाश की लकड़ी की समिधा से अग्नि प्रज्वलित करके उपरोक्त मन्त्र से १०८ आहुति देवे, यदि रोगी बैठने योग्य हो तो उसे हवन कुण्ड के समीप बैठा देवे, यदि रोगी बैठने के योग्य न हो तो उसकी चारपाई हवन कुण्ड के समीप ही डलवा देवे और हवन के समय रोगी का मुँह खुला रखें । इस प्रकार की क्रिया से साधारण ज्वर तो केवल तीन या पाँच दिन में दूर हो जाते हैं और पन्द्रह या इक्कीस दिवस में टी० बी० जैसे राजरोग भी सदैव के लिये दूर हो जाते हैं ।
हवन सामग्री में निम्न वस्तुयें बराबर-बराबर लेकर मिला लेनी चाहिये मण्डूकपर्णी, गूगुल, इन्द्रायण की जड़, अश्वगन्ध, विधारा, शालपर्णी, मकोय, अडूसा, बांसा, गुलाब के फूल, शतावरी, जटामांसी, जायफल, बंशलोचन, रास्ना, तगर, गोखरू, पाण्डरी, क्षीरकाकोली, पिश्ता, बादाम की गिरी, मुनक्का, हरड़ बड़ी, लौंग, आँवला, अभिप्रवाल, जीवन्ती, पुनर्नवा, नगेन्द्र बामड़ी, खूबकलाँ, अपामार्ग, चीड़ का बुरादा ।
उपरोक्त सब चीजें बराबर भाग तथा गिलोय चार भाग, कुष्ठ १/४ भाग, केशर, शहद, देशी कपूर, चीनी दस भाग तथा गाय का घी सामर्थ्य के अनुसार जितना डाल सकें । समिधा ढाक, शुष्क बांसा या आम की ही होनी चाहिये ।
हवन काल में अन्य कोई औषधि न हीं देनी चाहिये ।