सुर सुंदरी साधना | सुर सुंदरी यक्षिणी साधना | सुर सुंदरी यक्षिणी मंत्र | सुर सुंदरी मंत्र | sur sundari yakshini sadhna
ओम् ह्रीं ह्रीं आगच्छ आगच्छ सुरसुन्दरी स्वाहा ।
किसी एकान्त स्थल में पवित्रतापूर्वक शिवलिंग की स्थापना कर प्रातः – मध्याह्न – संध्या तीनों समय विधिवत् पूजन करके तीन हजार बार उपरोक्त मन्त्र का जाप करे । इस प्रकार बारहवें दिन सुरसुन्दरी देवी सम्मुख प्रकट होकर साधक से पूछती हैं कि तुमने मेरा स्मरण किस हेतु किया है । तब साधक देवी की अनेक प्रकार पूजाकर विनयपूर्वक कहे कि हे कल्याणि ! भक्तों का प्रतिपालन करने वाली माता ! मैं धनाभाव से ग्रस्त निर्धन प्राणी हूँ । हे माता ! मैंने जीवन कल्याण की भावना से प्रेरित होकर आपका स्मरण किया है । हे जगज्जजनि ! कृपा करके मेरा कल्याण करो । इस प्रकार से विनय करने से देवी धन आदि समस्त सांसारिक ऐश्वर्य प्रदान करती हैं ।
विप्र चाण्डालिनी साधना
ओम् नमश्चामुण्डे प्रचण्डे इन्द्राय ओम् नमो विप्र
चाण्डालिनी शोभिनी प्रकर्षिणी आकर्षय द्रव्य-
मानय प्रबल मानय हुँ फट् स्वाहा ।
प्रथम एक दिन शीलपूर्वक निराहार रहकर रात्रि में शय्या त्याग भूमि पर शयन करे तथा मधुर भोजन खाते हुए अधूरा त्याग करके ऐसे स्थान पर जाकर मन्त्र जाप करे जो किसी भी प्रकार पवित्र न होवे । इस प्रकार अपवित्र दशा में नित्य २१०० बार मन्त्र का जाप करे तो उपरोक्त मन्त्र सिद्ध हो जाता है और सात दिन बाद रात्रि में विस्मयजनक दृश्य दिखाई पड़ता है ।
दूसरे-तीसरे दिवस स्वप्न में रुद्र स्वरूप दृष्टिगोचर होता है । यदि उक्त दृश्य साधक को न दिखाई पड़े तो पुनः इक्कीस दिवस तक मन्त्र जाप करना चाहिए । तब किसी स्त्री स्वरूप का दर्शन होगा और वह छलयुक्त अभक्ष्य पदार्थ प्रस्तुत करेगा और अनाचार करता हुआ साधक को भयभीत करने का प्रयास करेगा ।
यदि साधक इन सब दृश्यों, कार्यों से निःशंक होकर साधना में लीन रहेगा तो देवी प्रकट हो साधक की समस्त कामनायें पूर्ण करेगी ।
सकल यक्षिणी साधन
ओं हों क्रूं क्रूं क्रूं कटु कटु अमुकी देवी वरदा सिद्धिदा च भव ओं अः ।
इस मन्त्र को रात्रि के समय एकान्त में चम्पा नामक वृक्ष के नीचे बैठ कर गुग्गुलु, धूप देकर आठ हजार बार जप करे । इस प्रकार सात दिवस करे तो सातवें दिवस उक्त देवी साधक के सन्मुख प्रकट होकर दर्शन देती है । उस समय साधक को चाहिए कि निर्भय होकर चन्दन के जल से देवी को अर्घ्य देकर भलीभाँति पूजा करे तो देवी प्रसन्न होकर माता रूप में अठारह व्यक्तियों के लिए नित्य भोजन, वस्त्र एवं आभूषण प्रदान करती हैं । बहन के रूप में प्रकट होने पर दूर-दूर के स्थानों से रूपवती स्त्रियाँ, भोजन एवं अनेक प्रकार के रसायन आदि वस्तुयें लाकर प्रदान करती हैं तथा स्त्री के रूप में प्रकट होने पर साधक को अपने साथ ले जाकर अनेक देवलोकों का भ्रमण करा साधक की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण करती हुई उसके पास ही निवास करती है ।
आवश्यक – रात्रि समय किसी भी देवमन्दिर में एक उत्तम शय्या सजाकर रख दे और चमेली के पुष्पों, श्वेत वस्त्रों तथा चन्दन से देवी की पूजा कर उपरोक्त मन्त्र का जाप करे तो जाप के समाप्त होने पर देवी सुन्दरी तरुणी के रूप में प्रकट होकर साधक को आलिंगन करती हुई चुम्बन करके अनेक प्रकार से रतिकेलि करती हुई साधक को आनन्द प्रदान करती है । तत्पश्चात् कुबेर के कोषागार से द्रव्य लाकर प्रदान करती है ।