महाविद्या साधना | महाविद्या साधना मंत्र | महाविद्या साधना विधि | Mahavidya Sadhna

महाविद्या साधना | महाविद्या साधना मंत्र | महाविद्या साधना विधि | Mahavidya Sadhna

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महाविद्या साधन के मंत्र, ध्यान, यंत्र, जप, होम, स्तव एवं कवच आदि का वर्णन किया जाता है ।

महाविद्या साधना


हुँ श्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये हुँ हुँ फट् स्वाहा ऐं।

टीका – इस मंत्र से महाविद्या की पूजा तथा जप आदि सब कार्य करे । भुवनेश्वरी-यंत्र में ही पूजा होती है । जप और होम का नियम भी इसी प्रकार है ।

महाविद्या ध्यान


महाविद्या-ध्यान की विधि मूल श्लोक संस्कृत में निम्नलिखित है । साधक को ध्यान करते समय मूल श्लोक का ही प्रयोग करना चाहिए । इसकी हिन्दी में टीका भी कर दी गई है ।

हचतुर्भुजां महादेवीं नागयज्ञोपवीतिनीम् ।
महाभीमां करालास्यां सिद्धविद्याधरैर्युताम् ।।
मुण्डमालावलीकीर्णां मुक्तकेशीं स्मिताननाम् ।
एवं ध्यायेन्महादेवीं सर्वकामार्थसिद्धये ।।

टीका – महाविद्या देवी चतुर्भुजाओं वाली, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने वाली, महाभीमा, करालवदना, सिद्ध और विद्याधरों से युक्त, मुण्डमाला से अलंकृत, बिखरे हुए केशों वाली और हास्यमुखी हैं । सर्वकाम अर्थ की सिद्धि देने वाली देवी का इस प्रकार ध्यान करना चाहिये ।

महाविद्या-स्तोत्र (स्तव)


श्रीशिव उवाच
दुर्लभं तारिणीमार्ग दुर्लभं तारिणीपदम् ।
मन्त्रार्थ मन्त्रचैतन्यं दुर्लभं शवसाधनम् ।।
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम् ।
क्रियासाधनकं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम् ।।
तव प्रसादाद्देवेशि सर्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः ।।

टीका – श्री शिव जी ने कहा-तारिणी की उपासना का मार्ग अत्यन्त ही दुर्लभ है, इसी प्रकार उनके पद की प्राप्ति भी दुर्लभ है । मन्त्रार्थ ज्ञान, मंत्रचैतन्य, शवसाधन, श्मशानसाधन, योनिसाधन, ब्रह्मसाधन, क्रियासाधन, भक्तिसाधन और मुक्तिसाधन- यह सब भी दुर्लभ हैं । किन्तु हे देवेशि ! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उसको सभी विषयों में सिद्धि प्राप्त होती है ।

नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ।।

टीका – हे चण्डिके ! तुम प्रचण्डस्वरूपिणी हो । तुमने ही चण्ड-मुण्ड का वध किया । तुम्हीं काल के भय को नाश (नष्ट) करने वाली हो । हे कालिके ! तुमको नमस्कार है ।

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ।।
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।
करालां विकटां घोरो मुण्डमालाविभूषिताम् ।।
हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकारभूषिताम् ।।
हरप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।

टीका – हे शिवे ! जगद्धात्रि हरवल्लभे ! मेरी संसार के भय से रक्षा करो, तुम्हीं जगत् की माता और तुम्हीं अनन्त जगत् की रक्षा करती हो । तुम्हीं जगत् का संहार करने वाली और तुम्हीं उत्पन्न करने वाली हो । तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है, तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो, कराल और विकटाकार हो, तुम्हीं हर से सेवित, हर से पूजित और हरप्रिया हो । तुम्हारा गौर वर्ण है, तुम्हीं गुरुप्रिया और श्वेत विभूषणों से अलंकृत हो, तुम्हीं विष्णुप्रिया और महामाया हो, ब्रह्माजी तुम्हारी पूजा करते हैं । तुमको नमस्कार है ।

सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम् ।
मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम् ।।
प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ।

टीका – तुम्हीं सिद्धा और सिद्धेश्वरी हो । तुम्हीं सिद्ध तथा विद्याधरों से वेष्टित, मंत्रसिद्धि-दायिनी, योनि सिद्धि देने वाली, लिंगशोभिता, महामाया, दुर्गा और दुर्गतिनाशिनी हो । तुम्हें नमस्कार है ।

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ।।

टीका – तुम्ही उग्रमूर्ति, उग्रगणों से युक्त, उग्रतारा, नीलमूर्ति, नील मेघ के समान श्यामवर्ण तथा नीलसुन्दरी हो । तुमको नमस्कार है ।

श्यामागीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ।।

टीका – तुम्हीं श्यामलांगी, श्यामवर्ण से विभूषित, जगद्धात्री, सब कार्यों की साधन करने वाली और गौरी हो । तुमको नमस्कार है ।

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् ।
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ।।
श्रीदुर्गा धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ।।

टीका – तुम्हीं विश्वेश्वरी, महाभीमाकार (घोराकार), विकटमूर्ति हो, तुम्हारा शब्द महाभयंकर है, तुम्हीं सबकी आद्या, आदिगुरु महेश्वर की भी आदिमा हो, आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते हैं, तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मास्वरूपिणी हो, तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी (स्वामिनी), जगत् की माता, हरवल्लभा हो । तुमको नमस्कार है ।

त्रिपुरासुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ।।
सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ।।

टीका – हे देवि ! तुम्हीं त्रिपुरासुन्दरी, बाला, अबलागणों से विभूषित, शिवदूती, शिव की आराध्या, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी, सुन्दरी, तारिणी,शिवागणों से अलंकृत, नारायणी, विष्णु से पूजनीय और ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो ।

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्व्वसिद्धिदाम् ।।
दिव्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्द्दिनीम् ।।

टीका – तुम्हीं सब सिद्धियों की दात्री, नित्या, अनित्य गुणों से रहित, सगुणा, निर्गुणा, ध्यान के योग्य, अर्चिता(पूजिता), सर्व सिद्धि की देने वाली, दिव्या, सिद्धि दाता, विद्या, महाविद्या, महेश्वरी, महेश की भक्तिवाली, माहेशी,महाकाल से पूजित, जगद्धात्री और शुंभासुर का मर्दन करने वाली हो । तुमको नमस्कार है ।

रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्द्दिनीम् ।
भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिह्वां सुरेश्वरीम् ।।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ।
त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ।
कमलां छिन्नभालाञ्च मातंगी सुरसुन्दरीम् ।।
षोडशीं विजयां भीमां धूम्राञ्च बगलामुखीम् ।
सर्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ।।

टीका – तुम रक्त से प्रेम करने वाली, रक्तवर्ण, रक्तबीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभवाली, सुरेश्वरी, चतुर्भुजा, कभी दशभुजा, कभी अठारह भुजा, त्रिपुरेशी, विश्वनाथ की प्रिया, ब्रह्मांड की ईश्वरी, कल्याणमयी, अट्टहास से युक्त, ऊँचे हास्य से प्रीति करने वाली, धूम्रासुरविनाशिनी, कमला, छिन्नमस्ता, मातंगी, सुरसुन्दरी, षोडशी, विजया, भीमा, धूम्रा, बगलामुखी, सर्वसिद्धिदायिनी, सर्वविद्या और सब मंत्रों का शोधन करनेवाली हो, सारभूत और जगत्तारिणी हो, मैं मन्त्रसिद्धि के लिये तुमको नमस्कार करता हूँ ।

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ।।

टीका – हे वरारोहे ! यह स्तव परमसिद्धि देने वाला है, इसका पाठ करने से अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होता है ।

कुजवारे चतुर्दश्याममायां जीववासरे ।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ।
त्रिपक्षे मन्त्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि ।।

टीका – मङ्गलवार चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार अमावास्या तिथि में तथा शुक्रवार को रात्रि काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है, इसमें सन्देह नहीं ।

चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा ।
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मन्त्रसिद्धिमवाप्नुयात् ।।

टीका – चौदस की रात में तथा शनि और मंगलवार में संध्या के समय इस स्तव का विधिपूर्वक पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है ।

केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मन्त्रसिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी ।।

टीका – जो पुरुष केवल इस स्तोत्र मात्र को पढ़ता है वह अनुत्तमा मंत्र-सिद्धि प्राप्त करता है । इस स्तवपाठ के फल से चण्डिका कुलकुण्डलिनी नाड़ी जागरित होती है ।

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