महाविद्या कवच | Mahavidya Kavach
महाविद्या कवच को, मूल श्लोक संस्कृत में निम्न दिया जा रहा है तथा उसका अर्थ (टीका) भी किया गया है । साधकों को चाहिए कि पाठ करते समय मूल पाठ (श्लोक) का ही प्रयोग करें ।
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
आद्याया महाविद्यायाः सर्वाभीष्टफलप्रदम् ।।
टीका – भैरव ने कहा, हे देवि ! महाविद्या का कवच कहता हूँ, सुनो। यह सब अभीष्ट फल को देने वाला है ।
कवचस्य ऋषिर्देवि सदाशिव इतीरितः ।
छन्दोऽनुष्टुव् देवता च महाविद्या प्रकीर्तिता ।।
धर्मार्थकाममोक्षाणां विनियोगश्च साधने ।।
टीका – इस कवच के ऋषि सदाशिव, छन्द अनुष्टुप् है, देवता महाविद्या है और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूप फल के साधन में इसका विनियोग है ।
ऐंकार: पातु शीर्षे मां कामबीजं तथा हृदि ।
रमाबीजं सदा पातु नाभौ गुह्ये च पादयोः ।।
टीका – ऐं बीज मेरे मस्तक की, क्लीं बीज हृदय की और श्रीं बीज मेरे नाभि, गुह्य और चरण की रक्षा करें ।
ललाटे सुन्दरी पातु उग्रा मां कण्ठदेशतः ।
भगमाला सर्वगात्रे लिंगे चैतन्यरूपिणी ।।
टीका – सुन्दरी मेरे मस्तक की, उग्रा कंठ की, भगमाला सब शरीर की और चैतन्यरूपिणी देवी लिंगस्थान की रक्षा करें ।
पूर्वे मां पातु वाराही ब्रह्माणी दक्षिणे तथा ।
उत्तरे वैष्णवी पातु चेन्द्राणी पश्चिमेऽवतु ।।
माहेश्वरी च आग्नेय्यां नैर्ऋते कमला तथा ।
वायव्यां पातु कौमारी चामुण्डा हीशकेऽवतु ।।
टीका – पूर्व दिशा में वाराही, दक्षिण में ब्रह्माणी, उत्तर में वैष्णवी, पश्चिम में इन्द्राणी, अग्निकोण में माहेश्वरी, नैर्ऋत्य में कमला, वायुकोण में कौमारी और ईशान दिशा में चामुण्डा मेरी रक्षा करें ।
इदं कवचमज्ञात्वा महाविद्याञ्च यो जपेत् ।
न फलं जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ।।
टीका – इस कवच को बिना जाने जो मनुष्य महाविद्या का मंत्र जपता है उसे सौ करोड़ कल्प में भी फल प्राप्त नहीं होता ।
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