कहानी तेनाली रामा | मरियल घोड़ा | A Short Story of Tenali Rama
एक दिन राजा कृष्णदेव राय और तेनाली राम अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर सैर को निकले । राजा का घोड़ा अरबी नस्ल का बढ़िया घोड़ा था, उसकी कीमत कोई एक हजार स्वर्ण मुद्राओं की होगी । इधर तेनाली राम का घोड़ा एकदम मरियल था । ढ़ीली-ढ़ाली चाल से चला जा रहा था । अगर तेनाली राम अपना घोड़ा बेचना चाहता, तो कोई उसके लिए ५० स्वर्ण मुद्राएं भी न देता ।
राजा ने कहा, “कैसा मरियल घोड़ा है तुम्हारा तेनाली, जो कमाल मैं अपने घोड़े के साथ दिखा सकता हूं, तुम अपने घोड़े के साथ कर सकते हो ?”
तेनाली राम ने कहा – “महाराज, जो करतब मैं अपने घोड़े के साथ कर सकता हूं, वह आप अपने घोड़े के साथ कभी नहीं कर सकते।”
“लगी सौ-सौ स्वर्ण मुद्राओं की शर्त ?” – राजा ने कहा ।
“लगी।” – तेनाली राम सहमत हो गया ।
उस समय तुंगभद्रा नदी पर बाढ़ आई हुई थी । पानी बहुत तेज और गहरा था और उसमें कई जगह भंवर दिखाई दे रहे थे । अचानक तेनाली राम अपने घोड़े से उतरा और उसने अपने घोड़े को पुल से नीचे तेज बहते पानी में धक्का दे दिया ।
“अब आप भी अपने घोड़े के साथ ऐसा कर दिखाइए ।” – तेनाली राम ने राजा से कहा ।
अपने बढ़िया और कीमती घोड़े को राजा भला कैसे पानी में धक्का दे देते ?
न बाबा न, मान गया कि मैं अपने घोड़े के साथ वह करतब नहीं दिखा सकता, जो तुम दिखा सकते हो।” राजा ने यह कहकर तेनाली राम को सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दीं ।
“लेकिन तुम्हें वह विचित्र बात सूझी कैसे ?” – राजा ने पूछा।
“महाराज, मैंने एक किताब में पढ़ा था कि बेकार और निकम्मे मित्र का यह लाभ होता है कि जब वह न रहे, तो दुख नहीं होता।” – तेनाली राम ने कहा ।
और तब राजा कृष्णदेव राय ठहाका लगाकर हंस पड़े ।