यहूदियों के हत्यारे – एडोल्फ आइकमन | एडॉल्फ ऐशमान | Adolf Eichmann

यहूदियों के हत्यारे – एडोल्फ आइकमन | एडॉल्फ ऐशमान | Adolf Eichmann

पोलंड स्थित आउशविट्ज वह स्थान है, जहां की बातें सुनकर मानवता सिहर उठती है । यहां ६० लाख यहूदियों को मौत के घाट उतारा गया था । हिटलर के आदेश पर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यहां लोगों को जहरीली गैस से मारा जाता और उनकी लाशों को विशाल भट्ठियों में जला दिया जाता । यह काम इतनी तेज रफ्तार से होता था कि हर १५ मिनट मे दो सौ लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता ।

युद्धकाल में ही इस भयंकर मौत के कारखाने के भयावह समाचार यूरोप-भर में दबी जुबान से फैलते चले गए । आशा थी कि युद्धोपरांत इस कारखाने को चलाने वाले पकड़े जाएंगे, पर हुआ कुछ और ही । उनमें से कुछ तो पकड़ में आए, पर काफी गुम हो गए । सबसे बड़ा खूनी आउशविट्ज का मुख्य प्रबंधक तो ऐसा गायब हुआ कि उसका कोई सुराग ही न मिला । यह था – एडोल्फ आइकमन(एडॉल्फ ऐशमान)( Adolf Eichmann) एक जर्मन नाजी ।

कुछ यहूदियों ने ठान लिया कि इस हत्यारे को ढूंढ़कर ही रहेंगे । उसको सजा अवश्य देंगे । सोलह वर्ष तक यह खोज चली । कई महाद्वीपों में कुछ लोग गजब के धैर्य के साथ खोज में लगे रहे । सन् १९४५ में जब हिटलर का पतन हुआ, इजराइल का जन्म नहीं हुआ था, पर यहूदियों का पूरा विश्वास था कि उनका इजराइल राज्य बनेगा । तब फिलिस्तीन पर अंग्रेजों का शासन था और वे इजराइली राज्य बनाने पर कटिबद्ध थे । विजेता मित्र राष्ट्र अमेरिका और फ्रांस का पूरा समर्थन इस योजना को था । यहूदियों ने हगाना नामक अपनी गुप्त फौज फिलिस्तीन में सुसंगठित कर ली थी । फिलिस्तीनी अरबों के साथ उनकी रोज ही टक्कर होती थी ।

हगाना ने अपना गुप्तचर विभाग भी खूब संगठित कर लिया था । यूरोप में हगाना के गुप्तचर विभाग का मुख्य अधिकारी ऐशर बेननाधान नामक एक बड़ा तेज नवयुवक था । जिस दिन जर्मनी का पतन हुआ, उसी दिन उसने अपने एक उच्च अफसर को बुला कर आज्ञा सुनाई, “आज से तुम्हारा काम है एडोल्फ आइकमन का पता लगाना । वह मरा नहीं है । वह फरार हो गया है । वह युद्ध अपराधी है और उसने हमारे लोगों की हत्या की है । हम आइकमन को चाहते हैं।”

इसी अधिकारी का नाम था – टुविया फ्रीडमन (Tuviah Friedman) । वह बड़े शांत स्वभाव का था, पर बड़ा शातिर गुप्तचर था और उसमें असीम धैर्य था । वह स्वयं एक हिटलरी यातना शिविर में बंदी रह चुका था । विश्वयुद्ध समाप्ति के बाद सारे यूरोप में बीसियों शरणार्थी कैंप खुल गए थे । टुविया फ्रीडमन हर कैंप में घूमा, सैकड़ों से बातें कीं, पर उसे एक भी आदमी न मिला, जिसने आइकमन को देखा हो या उसका हुलिया बता सकता हो । उसने ब्रिटिश, फ्रांसीसी और अमेरिकी गुप्तचर अधिकारियों से बातें कीं । वह उनसे भी मिला जो हिटलरी जर्मनी में जान हथेली पर रखकर विरोधी कार्य करते थे, लेकिन जो कुछ भी उसे पता लग सका, वह बिखराव पूर्ण गोरखधंधा मालूम होता था । पर टुविया को पता लगा कि आइकमन अमेरिका के नियंत्रण में चलने वाले जर्मन बंदियों के कैंप में था । आमतौर से इन जर्मनों से पूछ-ताछ की जाती थी । आइकमन से भी पूछ-ताछ हुई और उसने जर्मन बंदियों द्वारा दिया जाने वाला आम जवाब दिया कि वह देश-भक्त जर्मन रहा है और हिटलरी प्रचार से बहक गया । उसने यह भी कहा कि अब वह हिटलर के कारनामों, यानी लाखों के कत्ल और गैस चेंबर वगैरह के बारे में जान रहा है, तो उसे काफी दुख हुआ है । ६० लाख लोगों को गैस चेंबर में मार डालने वाले आइकमन के उपर्युक्त बयान को जर्मन बंदियों द्वारा दिए गए घिसे-पिटे बयान जैसा मानकर अमेरिकियों ने आइकमन की तरफ कोई खास ध्यान न दिया और उसे एक जर्मन युद्धबंदी कैंप में भेज दिया गया ।

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सन् १९४६ में आइकमन अपने चार साथियों सहित इस ढीले-ढाले ढंग से चलाए जाने वाले बंदी कैंप से भाग निकला । यहां से भागने के बाद आइकमन ने फर्जी कागजात बनवाए । वह जर्मनी चला गया और वहां हर हैनिंगर के नाम से प्रकट हुआ । एवरसेन नामक नगर के मेयर ने उसे नौकरी दे दी । पास के घने जंगल में देखभाल का काम उसे मिला । यह मनचाही नौकरी थी । आइकमन ने समझा कि चलो, शांति मिली । आइकमन गुम हो चुका था, पर उस यहूदी गुप्तचर ने धैर्य न छोड़ा । नाजियों से जब्त किए गए लाखों कागजों को वह छांटता रहा । उसमें उसे एक कागज मिला, जिस पर आइकमन के हस्ताक्षर थे और ३० अक्तूबर, १९३४ की तारीख पड़ी थी । यह कागज आइकमन की ओर से एक दरख्वास्त थी कि उसे विशुद्ध जर्मन नस्ल वाली बेरोनिका लीबेल से विवाह करने की अनुमति दी जाए ।

२३ जनवरी, १९३५ को नाजी अफसरों ने यह अनुमति दे दी और उसी साल १७ मई को आइकमन और बेरोनिका की शादी हो गई । टुविया अब श्रीमती बेरोनिका लीवेल आइकमन की खोज में लगा कोई सुराग हाथ न लगा । एक हवा यह मिली कि वह मिस्र चली गई है, फिर यह कि वह दक्षिणी अमेरिका में है और फिर कोई पता नहीं | टुविया चेकोस्लोवाकिया गया । राजधानी प्रांग में उसे पता लगा कि चेक लोगों ने आइकमन के एक निकट सहयोगी फान विजलिज्नी को पकड़ा है । उसने कहा कि उसे आइकमन से नफरत है उसको हमेशा डर बना रहता था कि कहीं आइकमन उसे मरवा न डाले । उसने एक सुराग दिया और कहा कि आइकमन की पत्नी का नाम तो वह नहीं जानता, पर उसे निश्चित पता है कि ड्राप्ल नामक एक नगर में उसका एक कारखाना था ।

टुविया फ्रीडमन ने अपने सहायक, अत्यंत चतुर गुप्तचर मानोस को ड्राप्ल भेजा । वह सुंदर था, शिष्ट था और बोलचाल में भी चतुर था । ऊपरी तौर से उसने बताया कि वह हालैंड का नागरिक है, पर आपसी बातचीत के दौरान उसने अपने बारे में यह फैला दिया कि वह पुराना नाजी फौजी अफसर है । इससे उसे जर्मनों के बीच धंसने में सहायता मिली । उसने यह भी प्रसिद्ध किया कि सच्चे जर्मन की तरह उसे उन जर्मन महिलाओं से बड़ी सहानुभूति है, जिनके पति मारे गए या जिनका कोई पता नहीं है ।

ड्राप्ल के पास ही एक सुंदर झील के चारों ओर एक रमणीक यात्री स्थल था और वहीं ऐसी जर्मन महिलाएं रहती थीं । मानोस यहीं एक ठाठदार होटल में रहने लगा । श्रीमती बेरोनिका लीबेल आइकमन भी इसी नगर में रहती थी । चतुर मानोस को पता चला कि बेरोनिका की सबसे गहरी दोस्त एक विधवा है । मानोस ने उसी विधवा से दोस्ती गांठनी शुरू की । उसके साथ घूमना, तैरना, साथ भोजन करना, खाने के बाद देर रात तक अंगूरी शराब पीना जारी किया और अंत में इस विधवा ने मानोस का परिचय श्रीमती आइकमन से करा दिया । अब वह वेरोनिका के घर आने-जाने लगा । आइकमन के तीन पुत्र क्लाउस, हार्स्ट और डाटा को मानोस बहुत पसंद आया । वह परिवार का मित्र हो गया । घनिष्ठता बढ़ती गई । मानोस जब बेरोनिका के घर जाता, तो आइकमन का चित्र तलाशता, पर वहां कोई चित्र न था । एक दिन श्रीमती आइकमन ने कहा कि उसको एक घरेलू नौकरानी की जरूरत है । मानोस ने कहा कि वह अपने होटल के मालिक से बात करके इंतजाम कर देगा और जिस नौकरानी का प्रबंध मानोस ने किया, वह वास्तव में हगाना की यहूदिन गुप्तचर थी । महीनों इसने श्रीमती आइकमन के घर काम किया । वह सब सुनती, देखती रही और अंत में उसने यही रिपोर्ट दी कि बेरोनिका को नहीं मालूम कि उसका पति आइकमन कहां है और लगता है कि दोनों में कोई संबंध नहीं है ।

निराश होकर मानोस ड्राप्ल वापस आ गया । वहां उसे पता लगा कि आइकमन की प्रेयसी श्रीमती मिस्टेलबारव ड्राप्ल में ही रहती है । वह सुंदर और खुशमिजाज थी और उसके पास काफी पैसा था । मानोस ने उससे दोस्ती गांठ ली, फिर यह कहा कि आइकमन के एक घनिष्ठतम दोस्त का वह भाई है । उसके भाई के पास काफी दौलत आइकमन की अमानत के तौर पर पड़ी है । वह चाहता है कि आइकमन का पता लग जाए, तो उसकी अमानत उसे वापस कर दी जाए । श्रीमती मिस्टेलवारव ने सिर हिला कर कहा, उसे एडोल्फ के बारे में कुछ भी पता नहीं है ।

इस मायूसी के बाद भी मानोस आइकमन की प्रेयसी से दोस्ती गांठे रहा । एक दिन बाग में दोनों शराब पी रहे थे । श्रीमती मिस्टेलबारव दिलबहलाव के लिए अपना फोटो अलबम लाई । हर फोटो को वह समझा रही थी । एक पेज पर एक पुरुष की फोटो थी । श्रीमती मिस्टेलबारव ने कहा, “यही मेरे दोस्त का चित्र है, जो तुम्हारे भाई का जिगरी दोस्त है । यही एडोल्फ है ।”

शायद यही एक फोटो थी, जो आइकमन ने नहीं जलाया था । मानोस जान गया कि उसे तलाश में गहरी सफलता मिली है, पर वह शांत बैठा रहा । आखिर उस चित्र को तो हथियाना ही था । उसने स्थानीय पुलिस की सहायता ली, फर्जी राशन कार्डों की तलाशी के बहाने से उसने श्रीमती मिस्टेलबारव के घर तलाशी करवाई और इस प्रकार एलबम से फोटो निकाल लिया गया और वह मानोस के हाथ आ गया ।

इस सबके दौरान आइकमन उसी जंगल के रखवाले और लकड़हारे के रूप में नौकरी करता रहा, पर सहसा वह कंपनी ही फेल हो गई जिसके मातहत वह नौकर था । वह वहां से भी चल दिया । अपने सहकर्मियों से उसने कहा कि वह स्वीडन जाएगा, पर वस्तुतः अपने दो साथियों के साथ, जो नाजी पार्टी के थे, वह फर्जी कागजात के जरिए इटली पहुंच गया । इटली में वहां के सुप्रसिद्ध बंदरगाह जैनोआ पहुंचा । वहां वह पादरियों के एक निवास स्थल में पादरी बनकर रहने लगा । इस प्रकार उसे पोप के राज्य वैटीकन का पासपोर्ट प्राप्त हो गया । पासपोर्ट में उसका नाम रिकार्डो क्लीमेंट था ।

इस पासपोर्ट के आधार पर वह मध्यपूर्व के देश सीरिया गया । पहले से ही कई भगोड़े नाजी जा छिपे थे । आइकमन को एक आयात-व्यापार कंपनी में नौकरी मिल गई । मध्य पूर्व में यहूदी विरोधी अरब नेताओं से इन नाजियों ने अच्छे संबंध बना लिए थे । सन् १९४८ का वर्ष आया और इजराइल राज्य की स्थापना हो गई । यहूदियों के भय से आइकमन फिर भागा और स्पेन पहुंचा । वहां से वह पुनः जैनोआ पहुंचा । यहां उसको लातिनी अमेरिकी देश अर्जेंटाइना जाने का वीसा मिल गया । १४ जुलाई, १९५० को एकस. एस. गियोवाना जहाज पर चढ़कर वह जैनोआ से अर्जेंटाइना चला गया । उस देश की राजधानी ब्यूनस आयर्स पहुंचकर अपना नाम रिकार्डो क्लीमेंट दर्ज करवाया और अपने को अविवाहित बताया । जन्म-स्थल बताया बोजेन नामक एक नगर, जो इटली और आस्ट्रिया की सरहद पर है । इस समय आइकमन की आयु ४४ वर्ष थी । वह समझा कि अब शांति से जीवन व्यतीत करेगा, काम करके खाएगा, अर्जेंटाइना का नागरिक हो जाएगा और जिंदगी कट जाएगी । साठ लाख व्यक्तियों की हत्या करने वाले को अब पत्नी और बच्चों की याद आई । वह उनको अपने पास बुलाने के लिए व्यग्र हो गया ।

पर साठ लाख की हत्या करने वाले मनुष्य के अंदर इस मानवीय भावना का जागना उसके खात्मे का कारण हो गया । १९५१ के दिसंबर के अंत में श्रीमती बेरोनिका लीवेल के पास एक एयरमेल पत्र पहुंचा । उसमें कोई विशेष बात न लिखी गई थी, बल्कि खास बात थी किए गए हस्ताक्षर चाचा रिकार्डो और पता, टुकुमान क्षेत्र, अर्जेंटाइना । इस पत्र को पाकर श्रीमती आइकमन ने अपने पुत्रों से कहा कि उनके चाचा रिकार्डो दक्षिणी अमेरिका में उन्हें बुला रहे हैं, बच्चों को भी न पता था कि चाचा रिकार्डो वस्तुतः उनके पिता हैं । उनको बताया गया कि चाचा रिकार्डो कैप्री कंपनी में नौकरी करते हैं, जिसका काम बांध बनाना है |

श्रीमती आइकमन ने अपने सफर की तैयारी शुरू कर दी । उसने लीबेल के नाम से अपना और बच्चों का पासपोर्ट बनवाया और एक दिन चुपचाप चल पड़ी । जुलाई १९५२ में उसका समुद्री जहाज ब्यूनस आयर्स पहुंचा । वहां से वह रेलमार्ग से टुकुमान गई ।

स्टेशन पर मजदूरों-सा कपड़ा पहने एक व्यक्ति उनका इंतजार कर रहा था । सात साल बाद परिवार से मिलन हुआ था । नया परिवार बसाने में हत्यारा आइकमन एक भूल कर गया । एक ही परिवार में तीन अलग-अलग नाम रखे गए । आइकमन स्वयं तो सिन्यासेर क्लीमेंट था । अपनी पत्नी को उसने अपनी बहन कहकर बेरोनिका लीवेल के नाम से दर्ज करवाया और लड़कों का नाम लिखवाया क्लाउस, हार्स्ट और डीटर आइकमन । परिवार प्रसन्नता पूर्वक रहने लगा । बच्चे शिकार खेलते थे, तैरते व घूमते थे, आइकमन को अच्छा वेतन मिलता था ।

उधर हजारों मील दूर तूविया फ्रीडमन झुंझलाया हुआ बैठा था । उसे पता चला कि श्रीमती आइकमन ने १९५१ में एक हलफनामा दाखिल करवाया था कि उसका पति आइकमन मर चुका है । वर्षों की तलाश अब तक बेकार रही और हगाना के अफसर भी कहने लगे कि आइकमन की तलाश में लगे फ्रीडमन और मानोस मृगतृष्णा में भटक रहे हैं । वे मूर्ख हैं और आइकमन तो कभी का मर चुका है । पर फ्रीडमन सिर हिलाता रहा । उसने कहा, “नहीं, वह जिंदा है। वह है, मैं अंतरात्मा से महसूस करता हूं।” उसको जो सहायता मिलती थी, उसमें भी कटौती कर दी गई । पर वह स्वयं धन-संग्रह कर, बीवी के गहने बेचकर, अपनी तलाश में लगा रहा ।

कैप्री कंपनी का काम समाप्त हो गया और बांध बन जाने के बाद आइकमन बेकार हो गया । कुछ दिन वह एक और कारखाने में काम करता रहा, फिर कपड़े धोने की लांड्री शुरू की, पर काम जमा नहीं । जब रोटी के लाले पड़े, तो काम की तलाश में वह ब्राजील चला गया, फिर सन् १९५४ में पारागुवे में काम पा गया और सन् १९५५ में बोलोविया में रहा । लातीनी अमेरिकी देश चिली, पेरू और उरुग्वे भी गया । सन् १९५६ में अर्जेंटाइना वापस आया । कायदे का काम न पाने के कारण सन् १९५७ में सीरिया चला गया । उसने राष्ट्रपति नासिर को पत्र लिखकर अपनी सेवाएं अर्पित कीं, पर जब नासिर ने उसके पत्र का उत्तर ही न दिया तो आइकमन अर्थात् सिन्योर क्लीमेंट अर्जेंटाइना वापस आ गया ।

टूविया फ्रीडमन भी अब निराश होने लगा । बीच में कभी उसे आइकमन का सुराग कहीं लगा भी, तो जब तक वह वहां पहुंचता, तब तक चिड़िया उड़ चुकी होती, पर अक्टूबर १९५९ में एक आशा फिर उभरी । पश्चिमी जर्मनी के राज्य बुरतेनवर्ज बेडेन के अटोर्नीजनरल से टूविया को पता लगा कि शायद आइकमन कुवैत में है । इस पर उसने इजराइली सरकार से चार गुप्तचरों की सहायता मांगी, पर गुप्तचर विभाग ने फ्रीडमन को झक्की समझकर कोई भी सहायता देने से इनकार कर दिया । तब खिसियाकर टूविया फ्रीडमन ने इजराइली समाचार पत्रों में देश के नाम एक खुला पत्र छपवाकर आइकमन की तलाश करने में इजराइली सरकार की उदासीनता की तीव्र भर्त्सना की । जनमत उबल पड़ा और तब तत्कालीन इजराइली प्रधानमंत्री बेन गूरियों ने आइकमन को ढूंढ निकालने के लिए सभी कोशिशें करने का आदेश दिया ।

१९६० के अप्रैल मास में आइकमन परिवार ने भयंकर भूल की । श्रीमती आइकमन चंद दिनों के लिए आस्ट्रिया वापस आई और अपने पासपोर्ट के नवीकरण के लिए आवेदन दिया । पासपोर्ट कार्यालय में जब लीवेल नाम का पासपोर्ट आया, तो उसकी खबर इजराइली गुप्तचरों को लग गई । नतीजा यह हुआ कि जब वह पासपोर्ट के दफ्तर से निकली, तब से ही इजराइली गुप्तचर उसके पीछे लग गए । वह अर्जेंटाइना वापस जाने के लिए अपना हवाई जहाज का टिकट बनवाने गई, तो उसको सहायता देने वाला यात्रा-एजेंट इजराइली गुप्तचर था । जिस वायुयान पर वह ब्यूनस आयर्स गई, उस पर भी जासूस था । यहां तक कि ब्यूनस आयर्स हवाई अड्डे से जिस टैक्सी पर बैठकर अपने घर गई, उसका ड्राइवर भी इजरायली गुप्तचर था ।

यहूदी गुप्तचरों की वर्षों की खोज सफल हुई । उनको पता लग गया कि उनका शिकार कहां है । उन्होंने आइकमन, यानी सिन्योर क्लीमेंट के मकान के ठीक सामने एक मकान किराए पर ले लिया । आइकमन परिवार पर अब वह चौबीस घंटे निगरानी रखने लगे । वह इन दिनों एक मोटरकार बनाने वाले कारखाने में काम करता था । इतने वर्ष किसी भी पकड़ से बचे रहने के कारण आश्वस्त हो गया था कि वह पूर्णतः सुरक्षित है और खतरे से बाहर है । उसको मालूम नहीं था कि जब वह कारखाने जाता है या वहां से वापस आता है या किसी रेस्तरां में खाने-पीने बैठता है, तो हर वक्त जासूस उस पर निगरानी रखते हैं । पार्क में जाकर जब वह बेंच पर बैठता, तो भी पास की बेंच पर कोई जासूस होता । इन जासूसों में कुछ ऐसे भी यहूदी थे, जिनकी चमड़ी पर आइकमन ने आउशविट्ज में लोहे से दाग कर कैदी नंबर डलवाया था ।

टूविया फ्रीडमन अब संतुष्ट था । उसने यह इंतजाम तो पक्का कर लिया कि आइकमन उसकी पकड़ से बाहर न खिसक सके, पर सवाल तो यह था कि उसे अर्जेंटाइना से इजराइल कैसे ले जाया जाए । अर्जेंटाइना के हवाई अड्डे की कार्यवाही को पूरा कर उसे ले जाना संभव न था । इसके लिए एक ही तरीका था कि उसका अपहरण किया जाए, लेकिन इस काम में बहुत बड़ा खतरा था । यह काम अंतर्राष्ट्रीय कानून के विरुद्ध होता और अर्जेंटाइना और इजराइल के बीच जबरदस्त कूटनीतिक संकट खड़ा कर देता । आखिर एक अवसर आया । अर्जेंटाइना की स्वतंत्रता की डेढ़ सौवीं वर्षगांठ आई । बड़े जश्न मनाए गए । इसी अवसर पर इजराइल और अर्जेंटाइना के बीच हवाई यात्रा प्रारंभ हुई । इजराइल से एक विमान अपनी उद्घाटन यात्रा पर ब्यूनस आयर्स आया । इसके साथ इजराइल से एक बड़ा शिष्टमंडल भी आया । उसे इजराइल वापस जाना ही था । बस, यही योजना बनाई गई कि आइकमन का अपहरण कर उसे इजराइल ले जाया जाए ।

अपहरण करने में कोई दिक्कत न हुई । आइकमन के सामने वाले घर के बाहर एक मोटर खड़ी थी । उस पर चार व्यक्ति बैठे थे । एक व्यक्ति चहलकदमी कर रहा था । आइकमन जब सांझ को गोधूलि बेला में काम से लौटा तो सहसा उसके सिर पर चोट हुई और वह बेहोश होकर गिर पड़ा, फिर तैयार खड़ी मोटर में उसे डाल दिया गया और उसमें बैठे चार व्यक्तियों के साथ मोटर उड़न छू हो गई । न कोई शोर-गुल हुआ, न खून-खरावा, पलक मारते सारा काम हो गया । आइकमन को ले जाकर एक मकान के कमरे में बांध दिया गया और उस पर कड़ी निगरानी रखी गई । इजराइली वायुयान के इजराइल लौटने में अभी ९ दिन की देरी थी ।

इस बीच आइकमन को कई सुइयां लगाई गईं । नतीजा यह हुआ कि उसके बोलने की क्षमता गुम हो गई और यह भी कि यद्यपि उसके नेत्र साधारण मनुष्यों जैसे दिखते रहे, पर उन नेत्रों से कुछ दिखता ही न था । श्रीमती आइकमन ने जब देखा कि उसका पति नहीं आया, तो पहले उसने समझा कि शायद वह दुर्घटना ग्रस्त हो गया । उसने सभी अस्पतालों और लावारिस मरने वालों को दफन किए जाने वाले स्थलों पर तलाश की, लेकिन कुछ पता न लगा । तीन दिन बाद उसने पुलिस को खबर दी, पर पुलिस भी सिन्योर क्लीमेंट का कहीं कोई चिह्न भी न पा सकी ।

निश्चित दिन जब इजराइली विमान ब्यूनसआयर्स हवाई अड्डे से इजराइल वापस जाने वाला था, तो स्वाभाविक रूप से उस पर काफी इजराइली यात्री वापस जाने के लिए हवाई अड्डे पहुंचे । इसी भीड़ में इजराइली पासपोर्ट तथा अन्य यात्रा कागजात से लैस आइकमन भी था । साथियों ने अर्जेंटाइना के हवाई अड्डा अधिकारियों को बताया कि उनका वह बेचारा साथी बुरी तरह बीमार है । इस प्रकार आइकमन सब चेक प्वाइंट पार कर इजराइली विमान पर बैठ गया । एक बड़ी लंबी तलाश का अंत हुआ । शिकारियों ने अपने शिकार को पकड़ ही लिया ।

इजराइल में आइकमन पर मुकदमा चला । उसके द्वारा पीड़ित, त्रस्त अनेक व्यक्तियों ने गवाही दी । अंत में आइकमन ने अदालत के सामने अपना बयान दिया । इस बयान में उसने कहा – देशों और महाद्वीपों में घूमते भागते मैं थक गया हूं । मैं कातिल नहीं हूं । मैं स्वामिभक्त, आज्ञा पालन करने वाला, कार्य कुशल सैनिक रहा हूं और जो कुछ मैंने किया, वह अपनी पितृभूमि से प्रेम की भावना से उद्भूत होकर ही किया । मैंने कभी दगाबाजी नहीं की । मैंने गहराई से विचार मंथन किया है और इसके बाद मेरा दृढ़ मत है कि मैं सामूहिक कातिल नहीं हूं । मेरे अधीन काम करने वाले भी कातिल नहीं हैं, पर ईमानदारी के साथ मैं कहूंगा कि मैंने कत्ल करने वालों की सहायता की है । मुझे नाजी दल के नेतृत्व पर पूरा विश्वास था और गत महायुद्ध की स्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप मैंने साफ दिमाग और सच्चे दिल के साथ अपना कर्तव्य निभाया । मैं अच्छा जर्मन था, अच्छा जर्मन हूं और सदा अच्छा जर्मन रहूंगा ।

आइकमन को मौत का दंड दिया गया । मरने के पहले उसने नारा लगाया – हिटलर जिंदाबाद ! नाजी पार्टी जिन्दाबाद ! जर्मनी जिंदाबाद ! आइकमन का अपहरण और उसका मुकदमा महीनों तक संसार-भर के अखबारों का मुख्य समाचार बना रहा । इजराइली गुप्तचरों और उनके मुखिया टूविया फ्रीडमन की कारगुजारी की सब तरफ प्रशंसा हुई । आइकमन की मौत पर उसके घर वालों को और कुछ कट्टर नाजियों को छोड़कर किसी ने भी आंसू न बहाए, पर संयुक्त राष्ट्र संघ में जरूर यह सवाल उठा कि इजराइल ने दूसरे देश से एक व्यक्ति का अपहरण कर अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया है । इसके उत्तर में इजराइल की तत्कालीन विदेशमंत्री, जो बाद में वहां की प्रधानमंत्री भी बनीं, श्रीमती गोल्डा मायर ने कहा, “मैं इसके लिए अर्जेंटाइना गणतंत्र से क्षमा मांगती हूं, पर सच यह है कि इस मामले में नैतिक नियम इजराइल की तरफ हैं ।”

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