पुनर्जन्म की सच्ची कहानियां | पुनर्जन्म की कहानी|Rebirth Stories

की सच्ची कहानियां

प्रसिद्ध लेखक अरूण कुमार शर्मा द्वारा लिखित

पुनर्जन्म की सच्ची कहानियां :  आदिकाल से मानव यह प्रश्न करता रहा है कि, ‘मानव क्या है, कहाँ से आता है और कहाँ जाता है ?’ उसका प्रारम्भ इस जन्म से होता है, अथवा जन्म के पहले भी उसका अस्तित्व था ? यदि उसका अस्तित्व था, तो किस रूप में था ? क्या मृत्यु ही जीवन की अंतिम परिणति है ? जहाँ संसार के समस्त धर्मावलंबी मृत्यु को ही जीवन का अंत मानते हैं—वहीं समस्त संसार को इस नये विज्ञान का ज्ञान देते हुए भारतीय संस्कृति मानती है कि मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है।

पुनर्जन्म भारतीय संस्कृति के तत्व ज्ञान का एक मौलिक अंग है। देहांत के साथ शरीर गत आत्मा की मृत्यु न होकर वह आत्मा उस देह में प्राप्त संस्कारों के साथ दूसरी देह में चली जाती है। इसी को पुनर्जन्म कहते हैं। परामनोवैज्ञानिक दृष्टि से आत्मतत्व, परलोक तत्व, जीव और जीवन तत्व आदि के अलावा मैने पुनर्जन्म के मूलभूत सिद्धांतों और मूलभूत तथ्यों पर भी गहन शोध, खोज और चिंतन-मनन किया है। प्रस्तुत रचना उसी का मौलिक परिणाम है।

जीव का जन्म, मृत्यु के पश्चात् तुरन्त इसी लोक में होता है या परलोक जाकर उसे लौटना पड़ता है? शास्त्रों में ऐसा कहा गया है और पारलौकिक विद्या को जानने  वाले विद्वान् भी ऐसा मानते हैं कि मृत्यु के बाद जीवात्मा तुरंत ही इस भूलोक में दूसरे शरीर में जन्म लेता है। कोई-कोई यह भी कहते हैं कि यदि जीवात्मा का – जो कि अमर है-परलोक जा सकने योग्य विकास न हुआ हो, तो भूलोक में तुरन्त उसका जन्म होगा। मरने वालों का भूलोक की ओर आत्याकर्षण भी मरणोत्तर तुरंत पुनर्जन्म का कारण हो सकता है। वैसे मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की स्थिति तीन वर्षों तक कभी भी संभव बतलाई गयी है।

मनुष्य अपने पिछले जन्मो के संस्कारों को लेकर पुन: इस मृत्युलोक में जन्म लेता है और उन संस्कारों का सारभूत उसे स्मरण रहता है-जब तक कि वह इस दुनिया के मायाजाल में भ्रमित नहीं हो जाता। प्रत्येक बार अंतरात्मा जन्म लेती है और प्रत्येक बार विश्व प्रकृति के उपादानों से  एक मन प्राण और शरीर की रचना होती है यह रचना अंतरात्मा के भूतकाल के विकास और उसके भविष्य की आवश्यकता के अनुसार होती है।

शरीर छोड़ने के बाद जीव अपने मनोमय और प्राणमय व्यक्तित्व को फेक देता है और अपने भूतकाल के सारतत्व की आत्मसात करने तथा नये जीवन की तैयारी के लिए विश्राम में चला जाता है। यह तैयारी ही नये जनम की परिस्थितियां निश्च्ति करती है एक नये व्यक्तित्व के गठन मे और उसके उपादानों के चुनाव में उसका पथ-प्रदर्शन करती है ।

मृत्यु के बाद अंतरात्मा सूक्ष्म शरीर से निकल जाता है। जब जीव किसी विगत व्यक्तित्व या व्यक्तियों को अपने वर्तमान विकास के अंग के रूप में साथ लगता जाता है केवल तभी विगत जन्म की बातों को मरण रखने की संभावना रहती है। अन्यथा स्मृतियाँ पुनर्जन्म तक नहीं कुछ ही समय तक ठहरती हैं। अगर ऐसा न होता तो विगत जन्मों की स्मृति नया शरीर लेने के बाद भी अपवाद न होकर नियम होती। यह संभव है कि एक जन्म के संबंध बाद के जन्मों में आसक्ति के बल पर टिके रहें, किन्तु यह नियम नहीं है।

पुनर्जन्म के लिए वापस आने वाली अंतरात्मा नये शरीर में कब प्रवेश करती है- इसका कोई नियम नहीं है। व्यक्ति-व्यक्ति की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। यानी जन्म या देहान्तरण का मूलभूत निर्धारण मृत्यु के समय होता है। उस समय चैत्य पुरुष यह चुनाव करता है कि अगले पार्थिव प्राकट्य में उसे क्या करना है ? और परिस्थितियाँ उसी के अनुरूप संयोजित हो जाती हैं ।

आधुनिक मन के लिए पुनर्जन्म एक कल्पना है। एक मत है। वह कभी भी आधुनिक विज्ञान की पद्धतियों से प्रमाणित नहीं हुआ। फिर भी आधुनिक आलोचक के पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे वह पुनर्जन्म की सत्यता या असत्यता को प्रमाणित कर सके। वास्तव में पुनर्जन्म मनोविज्ञान और परामनोविज्ञान का विषय है और उसका निर्णय भौतिक की अपेक्षा इन दोनों विज्ञानों के प्रमाणों से करना होगा ।

पुनर्जन्म परामनोविज्ञान का एक अनसुलझा विषय है। योग, तंत्र और भूत-प्रेतों की तरह पुनर्जन्म भी मेरे शोध और खोज का विषय रहा है। जिन दिनों मैं उपर्युक्त तमाम सिद्धांतों के आधार पर परामनोवैज्ञानिक ढंग से पुनर्जन्म पर खोज-कार्य कर रहा था उसी समय मेरे जीवन में एक ऐसी अलौकिक और अविश्वसनीय घटना घट गयी, जिसने पुनर्जन्म से संबंधित मेरी खोज की दिशा को ही एकबारगी बदल दिया।

 मेरे एक मित्र थे नाम था रघुनाथ तिवारी | बनारस के भदैनी मोहल्ले मे रहते थे वह । प्रथम श्रेणी में एम०ए० करने के बाद उन्होंने एक कॉलेज में नौकरी कर ली। प्राध्यापक का पद था। वेतन भी अच्छा था। तिवारी जी काफी सीधे-सादे और सरल स्वभाव के थे। रहन-सहन भी उनका साधारण था। जब नौकरी लग गयी, तो उनके परिवार के लोग विवाह के लिए उन पर दबाव डालने लगे। पहले तो तिवारी जी ना-नुकर करते रहें, पर बाद में तैयार हो गये।

तिवारी जी के पिता का नाम था रामनाथ तिवारी। बनारस जिले में ही उनकी जमींदारी थी। गाँव में हवेलीनुमा पक्का मकान था। किसी बात की कमी न थी उन्हें। परिवार में उनके पत्नी देवकी और एकमात्र पुत्र रघुनाथ तिवारी थे।

शादी पक्की हो गयी। रामनाथ तिवारी के एक अभिन्न मित्र थे सूर्य नारायण मिश्र उन्हीं की इकलौती लड़की श्यामा से शादी होनी निश्चित हुई थी। मिश्रा जी भी काफी सम्पन्न व्यक्ति थे। श्यामा ही उनकी एकमात्र संतान थी। इसीलिए शादी में उन्होंने दिल खोलकर खर्च किया था। दहेज भी काफी दिया था।

श्यामा पढ़ी-लिखी, सुन्दर और आकर्षक युवती थी। गोरा रंग, इकहरी देह और लंबा कद था उसका। घर-गृहस्थी के कामों में निपुण तो थी ही वह अपने मृदु और सरल स्वभाव से ससुराल वालों का दिल जीत लिया उसने। रघुनाथ तिवारी सुशिक्षित और सद्गृहणी पत्नी पाकर प्रसन्न थे। वे श्यामा को इतना प्यार करते थे और इतना चाहते थे कि उसके बिना एक पल रहना उनके लिए मुश्किल था।

संयोगवश दो साल बाद एक छोटी-सी बीमारी में श्यामा का स्वर्गवास हो गया। रघुनाथ तिवारी अपनी प्राणप्रिया पत्नी के वियोग में तड़प उठे और पागलों की तरह घूमने लगे। रात-दिन बड़बड़ाते रहते, ‘श्यामा तुम कहाँ गयी, कहाँ गयी तू मुझे छोड़ कर ।’ दिन-प्रतिदिन उनकी हालत दयनीय होती जा रही थी। बाल उलझे रहते। तन बदन का खयाल न रहता। कपड़े-लत्ते भी न बदलते। खाना-पीना और सोना तो एकबारगी छूट ही गया था उनका। रघुनाथ तिवारी मेरे अभिन्न मित्र थे। मुझसे उनकी यह दशा देखी नहीं जाती थी। लेकिन मैं कर ही क्या सकता था भला।

उन्हीं दिनों एक महात्मा काशी के बंगाली टोला मोहल्ले में रहते थे। उनका नाम था भोला गिरी। योगी पुरुष थे वह। प्रायः समय मिलने पर मैं उनके यहाँ चला जाया करता था। बड़ी शान्ति मिलती थी मुझे उनके निकट। एक दिन मैं विक्षिप्त रघुनाथ तिवारी को वहाँ ले गया अपने साथ।

उस समय मुझे घोर आश्चर्य हुआ जबकि मुझे देखते ही गिरी महाशय बोले, ‘इन पत्नीवियोगी को लेकर यहाँ क्यों आए?’

मैं उनसे कभी इस संबंध में चर्चा नहीं की थी। सोचा, बाबा अवश्य ही अपनी योगविद्या से सब कुछ जान गये होंगे।

क्या सोच रहे हैं शर्मा जी! बाबा ने पुनः मुस्कराकर कहा। मैं गम्भीर होकर बोला, मैं जो कुछ सोच रहा हूँ उसे आप समझ रहे हैं। मुझसे क्यों पूछ रहे हैं? कुछ उपाय करें-जिससे तिवारी जी की आत्मा को शांति मिले। मेरी बात सुनकर गिरी महाशय ने गहरी दृष्टि से एक बार तिवारी जी की ओर देखा और फिर कुछ सोचने लगे। करीब आधा घण्टा बाद बोले, ‘अगली अमावस्या की रात में इनको लेकर आइएगा तभी कुछ हो सकता है। और हाँ, आते समय अगरबत्ती और सुगंधित फूलों की चार मालाएँ भी लेते आना।’

अमावस्या की रात में गिरी महाशय कौन-सा उपाय करेंगे यह न समझ सका मैं। खैर, अमावस्या की साँझ के समय अगरबत्ती और माला लेकर तिवारी जी के साथ जब मैं उनके घर पहुंचा, तो देखा वे पल्थी मारकर ध्यान की मुद्रा में आँख बंद किये बैठे हुए थे। मैं सामान रखकर सामने बैठ गया। तिवारी जी भी हाथ जोड़कर एक ओर बैठ गये।

पूरे दो घण्टे बैठना पड़ा। मगर यह क्या? बाबा को समाधि से उठते ही तिवारी जी अचेत हो गये और उनकी आँखें मुँद गयीं।

बाबा ने तिवारी जी को गहरी नजरों से एक बार देखा और फिर उनके सामने अगरबत्ती सुलगाकर रख दिया। बोले, ‘इन पर इनकी पत्नी की आत्मा आ गयी है। इतना कहकर बाबा ने उन पर जल फेका ।

तिवारी जी का चेहरा लाल हो गया और होंठ फड़फड़ाने लगे। अचानक वे बोलने लगे।

गिरी महाशय ने पूछा, तुम कौन हो ?

मैं श्यामा हूँ।

सूर्य नारायण मिश्र की लड़की और रघुनाथ तिवारी की पत्नी ।

बहुत ठीक! इस समय तुम कहाँ से बोल रही हो? मैं कलकत्ता के एक मारवाड़ी सेठ के घर में लड़की के रूप में पैदा हुई हूँ। एक बात याद रखिए। मुझे यहाँ देर तक मत रोकिएगा। मैं इस समय अपनी माँ के साथ सो रही हूँ। माँ भी सो रही हैं। उनके जागने के पहले मुझे अपने वर्तमान शरीर में वापस जाना होगा। वर्ना वे लोग घबराएँगे। हो सकता है वे लोग मुझे मरी हुई समझकर गंगा में प्रवाह न कर दें।

क्या तुम्हारी आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर को लेकर यहाँ आई है? गिरी महाशय ने पूछा।

हाँ ।

लेकिन इतने से तुम्हारे पति रघुनाथ तिवारी को संतोष न होगा। हो सकता है यह खबर पाकर कलकत्ता के लिए वे चल पड़ें और तुम्हें खोज कर तुमसे मिलने का प्रयास करें। आप ऐसा करने से उन्हें रोकिएगा। मेरी अवस्था इस समय कुल तीन महीने की है। मैं तो शिशु के शरीर से निकलकर और अपने पति के वयस्क शरीर के माध्यम से बात कर रही हूँ। मेरी आत्मा मेरे वर्तमान शरीर में इतनी विकसित रूप में बातचीत नहीं कर सकेगी। तब उन्हें निराशा होगी और अधिक दुःखी हो जाएँगे।

एक आमंत्रित आत्मा के द्वारा यह सारी बात सुनकर मैं एकबारगी स्तब्ध रह गया। पहली बार मैंने आत्मा का आवाहन देखा था और इस प्रकार की बातें सुनी थीं। मैंने बाबा से अनुरोध किया कि मुझे कुछ प्रश्न करने की आज्ञा दें।

बाबा ने स्वीकृति दे दी मुझे।

मैंने पहला प्रश्न किया, क्या तुम यह बतला सकती हो कि जीवन और मृत्यु बीच तुमको कैसा अनुभव हुआ था ?

हाँ, बतला सकती हूँ। तीन दिनों से मुझे बुखार आ रहा था मगर चौथे दिन बुखार काफी तेज हो गया। दोपहर को दवा खाकर मैं जैसे ही लेटी थी कि एकाएक सर चकराने लगा और उसके बाद सीने में दर्द होने लगा। मैं उठकर बैठ गयी। किसी को चाहा, मगर बुला न सकी, तबीयत भी घबराने लगी। आँखें झपकने लगीं और नींद सी लगने लगी। मैं फिर लेट गयी और न जाने कब गहरी नींद में सो गयी। काफी देर बाद ‘बहू-बहू’ की आवाज कानों में पड़ी।

शायद मेरी सास मुझे पुकार रही थीं। मेरी नींद खुल गयी। लेकिन घोर आश्चर्य मुझे इस बात का हुआ कि मैं अपने शरीर को खाट पर पड़ी हुई देख रही थी। मेरी सास और गाँव की कुछ औरतें मेरे शरीर को चारों ओर से घेरकर बैठी जोर-जोर से रो रही थीं। मैं अपने शरीर को छूना चाहा मगर ऐसा न कर सकी। काफी देर तक बैठे रही अपने शरीर के पास। बाद में मुझे जब यह मालूम हुआ कि मैं मर चुकी हूँ तो बड़ा दुःख हुआ मुझे। मेरे पति उस समय बनारस में थे। मैं उनसे यह बतलाने के लिए वहाँ से चल पड़ी कि मैं अब मर चुकी हूँ। कैसे अब उनसे मुलाकात होगी ?

तुम्हारे गाँव से बनारस करीब १५-१६ मील है। तुम कैसे गयी रघुनाथ तिवारी के पास ? बस जैसे ही सोचा कि उनसे मुझे मिलना चाहिए तुरन्त उनके पास पहुँच गयी मैं। लेकिन तुम तो मर चुकी थी ? पति से बात कैसे की तुमने ?

बात कहाँ कर सकी मैं। जब वहाँ पहुँची, तो वे उस समय किसी आदमी से बात कर रहे थे। मैं उनके सामने जाकर खड़ी हो गयी और उनके मन में यह भावना भर दी कि मैं मर चुकी हूँ। गाँव जल्दी जाएँ।

उसके बाद क्या हुआ ?

मैं भी गाँव लौटकर अपने शरीर को देखना चाहती थी। मगर ऐसा न कर सकी। मुझे लगा कि कोई अदृश्य शक्ति मेरे अस्तित्व के चारों ओर घूम रही है। फिर मैं सब कुछ एकाएक भूल गयी। यह भी भूल गयी कि मैं मर चुकी हूँ और संसार से मेरा कोई नाता नहीं रह गया है। उस समय मुझे घोर शान्ति का अनुभव हो रहा था।

क्या उस समय तुम इसी संसार में अपने अस्तित्व का बोध कर रही थी

नहीं! सब कुछ भूल जाने के बाद उस शान्ति के बीच मैं एक ऐसे वातावरण में अपने आपको पा रही थी जहाँ घना कुहरा छाया हुआ था और चारों तरफ चाँदनी जैसा शुभ्र प्रकाश फैल रहा था।

फिर तुम्हारा कलकत्ता में जन्म कैसे हुआ ?

मैं न जाने कब तक और कितने दिनों तक उस स्थिति में और उस वातावरण में विचरण करती रही और इधर-उधर भटकती रही, बतला नहीं सकती। एक दिन अचानक न जाने कहाँ और किधर से ५-६ लड़कियों ने आकर मुझे घेर लिया।

कैसी थीं वे लड़कियाँ ?

बहुत सुन्दर थीं। किसी के हाथ में पूड़ी-मिठाई की थाली थी, किसी के हाथ में पानी से भरा गगरा था, तो किसी के हाथ में रेशमी साड़ियाँ थीं।

सभी ने एक साथ मिलकर कहा- लो खाना खा लो ! पानी पी लो और यह साड़ी पहन लो ।

मैंने चुपचाप खाना खाकर साड़ी जब पहन ली, तो वे लड़कियाँ मुझे एक बहुत बड़े महल में ले गयीं अपने साथ। महल के चारों ओर सुन्दर फूलों के बाग थे और वहाँ काफी भीड़ थी। महल के भीतर एक तख्त पर काफी मोटा ताजा एक व्यक्ति सर झुकाए हुए बैठा हुआ था। उसके बेडौल शरीर पर गेरुवे रंग का रेशमी चोंगा झूल रहा था।

उसके सामने ले जाकर लड़कियों ने खड़ा कर दिया। उस व्यक्ति ने अपना बड़ा- सा सर उठाकर मेरी ओर घूरते हुए देखा और फिर हाथ से कोई इशारा किया। जिसका मतलब मैं नहीं समझी। उसके बाद फिर क्या हुआ बतला नहीं सकती। अच्छा, अब मुझे जाने दें। इतना कहकर श्यामा की आत्मा वापस चली गयी और उसके वापस जाते ही तिवारी जी सचेत होकर फटी-फटी आँखों से चारों ओर देखने लगे।

क्या बात है तिवारी जी! मैंने पूछा।

श्यामा कहाँ गयी? अभी-अभी तो थी वह वहाँ ? चौंकते हुए उन्होंने पूछा

आपने श्यामा को देखा था ? बाबा ने पूछा।

हाँ, देखा ही नहीं, बल्कि उससे मैंने बातें भी कीं।

तो आपने पत्नी को देख लिया और उससे बातें भी कर लीं । यही चाहते थे

तिवारी जी को यह सुनकर जैसे होश आया। चौंककर बोले, हाँ! महाराज मैंने आपसे इसी के लिए प्रार्थना की थी। मुझे शान्ति मिल गयी अब।

रघुनाथ तिवारी को तो शान्ति मिल गयी। मगर मेरा मन एकबारगी अशांत हो उठा। एक साथ कई प्रश्न उभर आये मानस में। इस घटना से मेरी कई जिज्ञासाओं का एक साथ समाधान हो गया। कलकत्ता जाकर मैंने श्यामा के पुनर्जन्म के संबंध में उसके बताये हुए पते पर छानबीन की, तो बात सच की निकली। कलकत्ता स्ट्रीट के एक मारवाड़ी परिवार में तीन मास पूर्व जन्म लिया था एक लड़की ने। श्यामा ने अपने वर्तमान माता-पिता और परिवार के लोगों के जो नाम बतलाए थे-वे सही थे।

मरने के बाद श्यामा को उन रहस्यमयी लड़कियों के द्वारा जो पूड़ी-मिठाई और साड़ी मिली थी—वह इस तथ्य की पुष्टि करती है कि मृतक के नाम से जो कुछ भी इस लोक में दान-पुण्य किया जाता है—वह अवश्य उसी रूप में उसे मिला है।

बाबा ने बतलाया कि जब तक जन्म लेने वाला शिशु बोलना और भाषा समझना नहीं सीख जाता तब तक उसे अपने पूर्व जीवन-जगत और पूर्व मति-गति का स्मरण बराबर बना रहता है। भोला गिरी निश्चय ही एक सिद्ध योगी पुरुष थे। आत्म विद्या में वे पारंगत थे। मुझे अपनी खोज की दिशा में काफी सहयोग मिला। मेरे यह पूछने पर कि जब श्यामा की आत्मा ने जन्म लिया था तो फिर अपने आपको उसने अपने पति के सामने कैसे प्रकट किया? पूर्व शरीर तो नष्ट हो चुका था। वह नवीन देह धारण कर चुकी थी।

तो बाबा ने बतलाया कि जैसे जीवात्मा की पूर्वजन्म संबंधी स्मृति बनी रहती है उसी प्रकार उसे पूर्वशरीर के आकार-प्रकार और रूप-रंग का भी ज्ञान बना रहता है, पुनर्जन्म के कुछ समय बाद तक। अपने पूर्वसंस्कार, गुण, कर्म आदि की स्मृतियों के साथ अपने

पूर्वपार्थिव शरीर के ज्ञान को सम्मिलित कर अपने भौतिक शरीर का निर्माण कुछ समय के लिए वे कर लेती हैं। इसमें आश्चर्य की बात नहीं। यहाँ इस तथ्य को भी समझ लेना चाहिए कि आकाश यानी ‘इथर’ में जैसे शब्द के कंपन कुछ समय तक बने रहते हैं वैसे ही रूप के भी आकार-प्रकार वहाँ बने रहते हैं दीर्घकाल तक। जिसकी आत्मा जितनी प्रखर और शक्तिशाली होती है-उसके पार्थिव शरीर के रूप का आकार-प्रकार भी उसी के अनुसार दीर्घकाल पर्यन्त ‘इथर’ में बना रहता है। ऐसी आत्माएँ यदि कहीं जन्म भी ले चुकी हैं, तो आवश्यकता पड़ने पर वे इस प्रकार अपने पूर्वशरीर के द्वारा कहीं भी प्रकट हो सकती हैं।

यह हम स्वीकार करते हैं कि आपका विज्ञान ग्रहों और नक्षत्रों पर अपना आधिपत्य जमा रहा है, लेकिन कितने आश्चर्य की बात है कि वह अभी तक आत्मा के बारे में कोई ऐसा तथ्य खोज नहीं पाया है-जिसका सिद्धान्त प्रकट कर वह आत्मा की अमरता और उसके भूत-भविष्य के बारे में सर्वसुलभ मार्ग का दर्शन करा सके। वैसे हमारे देश के मनीषी इस विषय पर काफी कुछ लिख गये हैं

किन्तु उनका इस युग में वैज्ञानिकीकरण आवश्यक है। जीवात्मा के पुनरागमन से संबंधित विवरण तो वैज्ञानिक तथ्यों के इतना निकट है कि हमें अपने मनीषियों के प्रति श्रद्धानत हो जाना पड़ता है। प्रत्येक मानव शरीर का निर्माण पंच भौतिक तत्वों से होता है। किन्तु किस तत्व का कितना अंश शरीर में होता है और किस रूप में रहता है-इसकी जानकारी के पीछे आज के वैज्ञानिक पड़े हैं। चिकित्सा विज्ञान का यह गूढ़ और स्थूल विषय है।

बाबा ने बतलाया कि जीव जब मरता है, तब उसका शरीर शीतल हो जाता है। यानी अग्नि तत्व निकल जाता है। उसके बाद वायु की जो नलिकाएँ हैं-वे धीरे-धीरे बंद होने लगती हैं। इसे ही श्वास की गति का बंद होना कहते हैं। जब तक शरीर की नलिका में वायु शेष रहती है तब तक मनुष्य को मरा हुआ घोषित नहीं किया जा सकता। अंगों में किसी न किसी रूप में संचालन क्रिया अवश्य होती रहती है। यह वायु ही अंतिम तत्व है, जो अंत में शरीर के बाहर निकलता है। यह वायु तीन प्रकार का होता है- स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मतम। वे तीनों प्रकार से वायु एक-दूसरे से घुले-मिले होते हैं और शरीर से निकल कर बाहरी वायु-मण्डल की लहरों पर बैठी विचरण करती रहती हैं।

लंदन में बोली गयी बात वायु लहरों पर बैठी एक क्षण के सौवें हिस्से में टोकियो पहुँच जाती है—ठीक इसी तरह मनुष्य के शरीर से मरते समय निकली हुई वायु विचरण करती-कहाँ से कहाँ पहुँच रही है-इसका क्या ठिकाना ? कभी-कभी वह वायु अपने स्थूल रूप में श्वास के द्वारा किसी अन्य जीवित व्यक्ति के भीतर प्रवेश कर जाती है। यदि वह व्यक्ति प्रजनन क्रिया में लीन है, तो उसके योग से जो स्त्री गर्भ धारण करती है- उसके गर्भ में उस मृतक की आत्मा का आविर्भाव हो जाता है। वैसे यह एक दुर्लभ संयोग है|

ऐसे संयोग हमेशा नहीं होते हैं, पर होते अवश्य हैं और जब कभी इस तरह के दुर्लभ योग-नियोग से कोई आत्मा इस संसार में आती है, तो वह अपनी पिछली जन्म-कथा बयान कर लोगों को आश्चर्य में डाल देती है।

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