राजा विक्रमादित्य कौन थे | अपराधी कौन | Raja Vikram Betal
बेताल के न भागने के कारण राजा विक्रमादित्य प्रसन्न था । उसे विश्वास हो गया कि अब वह अपने उद्देश्य में सफल हो जाएगा । वह तेज-तेज कदमों से चला जा रहा था । बेताल चुपचाप पीठ पर लटका था । कुछ देर बाद बोला— “राजा विक्रम ! अभी सफर कुछ शेष है, तब तक मेरी एक और कहानी सुन लो ।”
विक्रम उसके न भागने के कारण खुश था । बोला-“अच्छा सुनाओ।”
बेताल बोला—”राजा विक्रम ! प्राचीनकाल में चेदि देश में एक ब्राह्मण रहता था । वह हृष्ट- पुष्ट था, पर शरीर से बदसूरत था । रंग काला और उसका चेहरा भद्दा था । इस कारण उसका विवाह न हो रहा था ।
ब्राह्मण काम पीड़ित हो रहा था, पर कोई भी स्त्री उसे घास न डालती । इस कारण वह ब्राह्मण बड़ा दुखी था । अपने ब्राह्मण कर्मकांड में उसका मन न लग रहा था ।
वह प्रायः ताक-झांक में लगा रहता था और किसी स्त्री को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता था ।
हे राजा विक्रम ! जब मनुष्य काम पीड़ित हो जाता है, तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाया करती है । धर्मदत्त नामक इस ब्राह्मण की यही दशा थी । वह पथभ्रष्ट होता जा रहा था । फिर भी ब्राह्मण होने के कारण कर्मकांड का उसे काम मिलता ही रहता था । अतएव उसे एक विवाह सम्पन्न करने का कार्य मिला । धर्मदत्त ने विधिपूर्वक विवाह संस्कार कराया । जब कन्या वरमाला लेकर आई तो वह देखता ही रह गया । कन्या अत्यन्त रूपवती थी ।
ब्राह्मण धर्मदत्त उस पर मोहित हो गया । विवाह सम्पन्न कराने के बाद उसने वर से कहा कि कन्या में मंगल का दोष है । अतएव तत्काल विदाई न करना शास्त्र की दृष्टि से ठीक है ।
वर पक्ष मान गया । फिर उसने मंगल दोष समाप्त करने के लिए नाटकीय ढंग से विधि-विधान कर कहा कि कन्या उसके साथ यज्ञ वेदी पर अकेली रहेगी । सारी रात पूजा-पाठ के उपरान्त शुद्ध हो जाएगी ।
सुनो राजा विक्रम ! ब्राह्मण पर विश्वास कर मंगल दोष निवारण हेतु यह कन्या रात्रि में उसे सौंप दी गई । काम पीड़ित उस ब्राह्मण ने पूजा के बहाने उस युवती का शीलभंग कर दिया । हे राजन ! वह कुछ न बोली । सारी रात वह ब्राह्मण भोग-विलास करता रहा । प्रातः काल कन्या विदा हो गई ।
कुछ काल के उपरान्त उस कन्या के गर्भ से धर्मदत्त के पुत्र ने जन्म लिया । बिल्कुल वैसा ही रूप-रंग, काला-कलूटा इस पर उसका पति आश्चर्य कर बैठा ।
“यह संतान कैसे हो गई ?”
उसकी पत्नी ने सब बतला दिया । इस पर पति ने उसे घर से निकाल दिया । वह अपनी फरियाद लेकर राजा के पास गई ।
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
अब बोलो राजा विक्रम ! उस राजा को कैसा न्याय करना चाहिए था ? उस युवती ने शोर क्यों नहीं किया ? बाद में पति के पूछने पर सब बतलाया ? पति ने निकाल दिया । दण्ड का भागी अब कौन बना ?
उसका पति…ब्राह्मण धर्मदत्त या कन्या के माता-पिता ?”
विक्रम कुछ न बोला ।
“बताओ राजा विक्रम।” बेताल ने अपना प्रश्न पुनः किया ।
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
इस पर विक्रम बोला–“सुनो बेताल । अगर इस प्रकार की घटना मेरे सामने आती तो मैं कैसा न्याय करता, यही जानना चाहते हो न?”
“हां, राजन!” बेताल बोला।
“देखो ! प्रथम युवती नहीं बोली । न उसने विरोध किया । न ही शोर किया । संतान जन्म के उपरान्त पति को सब बतलाया ?”
“हां। ऐसा ही है।”
“युवती का इसमें जरा भी दोष नहीं है।” विक्रम ने कहा-“वह निस्संदेह अत्यन्त अबोध बाला रही होगी । पापी ब्राह्मण ने जो किया, उसे उस अनजानी ने पूजा-पाठ का ही एक अंश माना । इस कारण इसकी चर्चा न की।”
विक्रम आगे कुछ न बोला ।
“दण्ड का भागी कौन हुआ, राजा विक्रम!”
‘इसके लिए धर्मदत्त ब्राह्मण भी दोषी नहीं है। “
“तब कन्या के माता-पिता ?”
‘”हां, बेताल । इस प्रकार की मूर्खतापूर्ण बात कि लड़की का मंगल-दोष है, पर विश्वास कर उस अबोध बाला को पापी ब्राह्मण के पास रात भर अकेला क्यों छोडा ? ऐसे माता-पिता ही पाप के भागी हैं अतएव दंड उनको ही मिलना चाहिए । अपराधी वह होता है, जिसके व्यवहार से अपराध जन्म लेता है।“
विक्रम के इस उत्तर पर बेताल भयानक अट्टहास कर उठा ।
उसके अट्टहास से सारा जंगल एकबारगी कांप उठा । राजा विक्रम सावधान हो गया । बेताल अब भागेगा । सचमुच बेताल भाग खड़ा हुआ । राजा विक्रम के बलिष्ठ हाथों को एकबारगी झटका मारकर वहा निकल गया । राजा विक्रम हतप्रभ रह गया ।
“अरे! भाग गया।” हठात् उसके मुंह से निकल गया ।
राजा विक्रम तेजी से दौड़ा । पर वह फिर भी बेताल को पकड़ न पाया । वह जाकर फिर पेड़ पर उल्टा लटक गया ।
“क्यों रे धूर्त पापी । तू न मानेगा।” विक्रम ने उसकी गरदन दबोची ।
“हाय ! मर गया।”
“मुर्दा तो तू पहले से ही है । मरेगा क्या !”
विक्रम ने उसे पीठ पर लाद लिया । तेजी से चल पड़ा । बेताल चुपचाप लटका रहा । कुछ देर बाद बोला – “राजा विक्रम ! तुम्हारा न्याय सही था पर राजा ने उस पापी ब्राह्मण को फांसी का हुक्म दिया ।
उसे फांसी पर लटका दिया गया।”
विक्रम ने जवाब न दिया ।
“वह कन्या निर्दोष मानी गई । पति से अपनाने को कहा गया, तो उसने इन्कार कर दिया । तब राजा ने उसे अपनी महारानी की सेविका के रूप में रख लिया।”
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
बेताल कहता जा रहा था । विक्रम चुपचाप सुनता जा रहा था । बेताल ने लंबी ठंडी सांस छोड़कर कहा – “राजा विक्रम ! इस प्रश्न का उत्तर देना । पापी ब्राह्मण ने ऐसा क्यों किया ?”
“काम पीड़ित था वह ?”
“यह काम क्या सभी को पीड़ित करता है ?”
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
‘हां, पर विद्वान जन इस पर नियंत्रण कर लेते हैं । काम पर जो नियंत्रण नहीं कर पाता, वह अवश्य पाप करता है । काम पर नियंत्रण करने वाला तेजस्वी ओजस्वी होता है।”
“तुम ठीक कहते हो राजा विक्रम!” बेताल बोला—”यह काम वास्तव में मनुष्य के पतन का कारण है । यह भाइयों को दुश्मन बना देता है ।
मैं अंगज देश के दो नवयुवकों की कहानी सुनाता हूं। वह दोनों ही काम पीड़ित हो, क्या कर बैठे !”
“तुम अपनी बकवास बंद रखो।”
‘बकवास नहीं, कहानी है, राजा विक्रम !”
बेताल की बात का कुछ उत्तर न दिया विक्रम ने ।
कुछ देर के मौन के उपरान्त बेताल ने कहना शुरू कर दिया । विक्रम सुनकर भी अनसुनी कर रहा था । बेताल का कर्कश स्वर उस बियाबान जंगल के सन्नाटे में दूर-दूर गूंजने लगा । उसके स्वर के कारण वातावरण और भी भयानक हो गया ।
बेताल कहानी कहता जा रहा था । विक्रम तेज-तेज बढ़ता जा रहा था । सप्तर्षि पश्चिमाकाश में और नीचे खिसकते जा रहे थे ।