कई वर्षों तक सुरक्षित रखते हैं तिब्बत में शव |Dead bodies are preserved for many years in Tibet

कई वर्षों तक सुरक्षित रखते हैं तिब्बत में शव

प्रसिद्ध लेखक अरूण कुमार शर्मा द्वारा लिखित

कई वर्षों तक सुरक्षित रखते हैं तिब्बत में शव

उस समय हम भारत-तिब्बत सीमा से कोई पंद्रह मील दूर लद्दाख में थे । जहाँ और जिधर नजर जाती थी, ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियाँ दिखायी देती थीं । वे पर्वत-श्रेणियाँ कई प्रकार और कई रंगों की थीं । कुछ बहुत निकट दिखायी देती थीं और कुछ बहुत दूर थीं । लेकिन वे कितनी निकट और कितनी दूर थीं, यह बताना कठिन था । पहाड़ी क्षेत्रों में इस बात का अनुमान लगाने के लिए काफी अनुभव की आवश्यकता होती है, जो हमें नहीं था ।

स्ताकून, कारू, चुम्तांग और सौमुरारी होते हुए चुमार गोंपा का यह रास्ता बड़ा ऊबड़-खाबड़ है । पूरे मार्ग पर ऐसी शांति छायी हुई है जैसे वह कहीं टूटी ही न हो । कदाचित् इस शांति से प्रभावित होकर बौद्ध भिक्षुओं ने इसे अपनी उपासना का केन्द्र बनाया हो ।

हमारी मंजिल अब बहुत दूर न थी । हमारी उत्सुकता चरम सीमा पर थी । हम मंजिल को करीब पाकर सफर की थकान और परेशानी भूल गये । मठ के दिखाई पड़ते ही हमारे कदम अपने-आप तेज हो गये । एक चढ़ाई और चढ़कर हम मठ में पहुँच गये ।

मठ में वह प्रमुख लामा पद्मासन लगाये बैठे थे । उनकी शांत-ठण्डी दृष्टि हमारे अंदर तक धँसती चली गयी । उनके चेहरे पर स्वर्ण-चूर्ण तथा सुगंधित पदार्थों का लेप था । शरीर पर परंपरागत परिधान था । हम सब उन्हें मंत्रमुग्ध-से देखते रहे ।

मुझे लगा कि अभी प्रमुख लामा उठकर अपनी शांत मुस्कराहट से हमारा स्वागत करेंगे और हमें आशीर्वाद देंगे । लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था ? प्रमुख लामा को मरे तो २० साल से ऊपर हो चुके थे किन्तु जो वास्तविकता हमारी आँखों के सामने थी, उसे हम जादुई कैसे समझ सकते हैं ? हम आत्मविभोर हो गये थे । प्रमुख लामा की उस जीवन्त मुद्रा से जैसे हम बँध गये थे । लगता था कि हमारे मन में जो विचार उठ रहे थे, वे वास्तविकता से ही प्रेरित थे जैसे हम किसी अन्य लोक में पहुँच गये हों, जहाँ जीवन केवल शान्ति का नाम हो और मौन ही वाणी हो । पद्मासन लगाये गौतम बुद्ध की मूर्ति के समक्ष खड़े होने पर जो अनुभूति हमें हुयी वही प्रमुख लामा की ‘ममी’ को देखकर हुई ।

प्रमुख लामा के शव को सुरक्षित रखने की एक कहानी है । कहते हैं कि अपने निर्वाण से पहले लामा ने शिष्यों को यह आदेश दिया था, “तुम लोग मेरे शरीर को सुरक्षित रखना । मैं तथागत के आदेश के अनुसार फिर जन्म लूँगा और मेरी आत्मा मेरी इसी शरीर में प्रवेश करेगी ।“

कहते हैं कि शिष्यों को यह आदेश देने के कुछ समय बाद ही लामा का निर्वाण लेप लगा कर और उन्हें परंपरागत वस्त्र पहना कर पद्मासन की मुद्रा में बैठा दिया गया था । उसी मुद्रा में वे आज भी विराजमान हैं । स्थानीय ग्रामीण कहते हैं कि इस बीच प्रमुख लामा की दाढी के बाल कुछ बढ़ गये थे ।

मठ बहुत छोटा है । उसमें तीन कक्ष हैं । पहले ही कक्ष में, जो प्रवेशद्वार के पास ही है, प्रमुख लामा पद्मासन लगाये बैठे हैं । दूसरा कक्ष प्रार्थना के लिए है और तीसरे कक्ष में पुस्तकालय है ।

लामा के पुनर्जन्म लेने की कहानी प्रसिद्ध है । इसके संबंध में उस क्षेत्र में बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं । हाल में एक अफवाह यह फैली है कि प्रमुख लामा ने कालिम्पोंग में जन्म ले लिया है । उनकी आयु अभी बहुत कम है और वे भूटान के एक तांत्रिक दोजाम रिम्पोशे के पास अध्ययन कर रहे हैं ।

मठ के पुस्तकालय वाले कक्ष में स्वर्ण-चूर्ण तथा सुगंधित पदार्थों की लेप लगे दो नारी हाथ भी हैं । ये हाथ भी उतने ही पुराने हैं और देखने में उतने ही सजीव हैं, जितना प्रमुख लामा का शरीर है । इन हाथों की कथा भी बड़ी विचित्र है ।

यह कथा करीब २० साल पुरानी है । एक दिन चुमार गाँव के निवासी एक मैदान में जमा थे । उनके चेहरों पर एक विचित्र प्रकार की व्यग्रता और आक्रोश झलक रहा था । उनके सामने एक सुन्दर युवती रस्सियों से एक पेड़ के साथ बँधी हुई थी और एक पुजारी देवताओं से प्रार्थना कर रहा था कि वे ऐसी औरत से उनके गाँव की रक्षा करें । पेड़ से बँधी युवती दहाड़ें मार-मार कर रो रही थी । वह गाँव वालों को पुकार-पुकार कर कह रही थी, ‘मुझे बचाओ!’ लेकिन किसी ने उसकी चीख-पुकार पर ध्यान नहीं दिया ।

वहाँ उपस्थित हर आदमी एक ही बात कर रहा था, ‘अब देर क्यों? जितनी जल्दी हो इसे मार डाला जाए, उतना ही अच्छा । इसे जल्दी से जल्दी नरक भेज देना चाहिए।’ महिलाएँ भी यही चाहती थीं ।

आखिर पूजा-पाठ समाप्त हुआ । वाद्यों और लोगों के शोर में उस युवती का चीखना-चिल्लाना दब गया था । वह जान गयी थी कि अब उसकी मृत्यु निश्चित थी, उसकी कोई रक्षा नहीं कर सकता था । वह आतंक से भयभीत होती जा रही थी और उसका कण्ठ सूखकर अवरुद्ध होता जा रहा था ।

रंग-बिरंगे कपड़े पहने एक युवक धीरे-धीरे पेड़ की तरफ बढ़ा । उसके हाथ में एक कटार थी । जैसे-जैसे वह पेड़ की ओर बढ़ता जा रहा था, लोगों का शोर भी बढ़ता जा रहा था । वाद्यों का शोर तेज होता जा रहा था ।

युवती आँखें फाड़कर अपनी मौत को अपनी ओर आते देख रही थी । आतंक से उसका चेहरा विकृत हो गया था ।

युवती उसी गाँव में जन्मी और पली-पुसी थी । भीड़ में कितने ही युवक और युवतियाँ थीं, जिनके साथ वह खेली थी । गाँव के और आस-पास के कई गाँवों के कई युवक उससे प्रेम की भीख माँग चुके थे । आस-पास के गाँवों में वह सब लड़कियों में सुन्दर थी ।

युवक की कटार युवती के पेट में घुसकर उसके दिल को चीरती हुई निकल गयी । युवती के मुख से एक चीख भी न निकल सकी । खून का फौआरा फूट पड़ा और उसका सिर एक ओर झुक गया । लोग पेड़ को घेर कर नाचने लगे । उसके बाद पुजारी ने सबको प्रसाद बाँटा ।

अब केवल एक अनुष्ठान शेष था । एक तलवार लायी गयी और उससे युवती के दोनों हाथ काट कर अलग कर दिये गये । उसके बाद उसका शव गाँव के बाहर जला दिया गया और इन हाथों को मठ में ले जाकर उन पर स्वर्ण-चूर्ण और सुगन्धित पदार्थों की लेप कर उन्हें पुस्तकालय कक्ष में रख दिया गया । युवती को यह सजा उसके १२वें पति के मरने के बाद दी गयी थी । एक-एक कर एक-एक पति के मरने के बाद युवती ने अपनी बारह शादियाँ की थी । उसका बारहवाँ पति भी जब मर गया, तो गाँव वालों ने पंचायत की और पंचायत ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया कि वह युवती चुड़ैल थी और वह अपने पतियों को खा गयी थी । अगर वह जीवित रही, तो जाने और कितने पुरुषों को खा जाएगी । वह इतनी सुन्दर थी कि कोई भी पुरुष उसके साथ विवाह करने से इन्कार ही नहीं कर सकता था ।

उसके हाथ काट कर इसलिए सुरक्षित रख लिये गये, ताकि वहाँ की स्त्रियों को यह चेतावनी मिलती रहे कि चुड़ैल को क्या दण्ड मिलता है ।

लद्दाख के गाँवों में कई जगह कई शव शताब्दियों से सुरक्षित पड़े हुए हैं । उनमें से कई स्वर्ण-चूर्णों और सुगन्धित पदार्थों की लेप से सुरक्षित नहीं रखे गये हैं । वे प्रकृति की कृपा से ही आज भी ज्यों के त्यों हैं । यहाँ की कई घाटियों में बारहों महीने भयानक ठण्ड रहती है, जिसके कारण शव सड़ते-गलते नहीं ।

दौलत बेग ओल्दी का किस्सा भी बहुत मशहूर है । दौलत बेग ओल्दी एक डकैत था । उसके नाम पर ही इस स्थान का नाम पड़ा है । वह तिब्बत ‘सिल्क-रूट’ पर आने-जाने वाले व्यापारियों को घेर कर उनसे नजराना वसूल करता था । जो व्यापारी उसे नजारना नहीं देता था उसे मार कर वह उसके शव को मार्ग पर खड़ा कर देता था वे शव उसी तरह हमेशा खड़े रहते थे और यात्रियों को बताते रहते थे कि ओल्दी को नजराना न देने का परिनाम क्या होता है कहते है कि वे शव ओर प्राकृतिक दुघटनाओ से मरे हुए  कितने ही व्यक्तियों के शव आज भी बर्फ से हमेशा ढकी रहने वाली घाटियों में सुरक्षित पड़े हैं । इनमें से कई तो शताब्दियों पुराने हैं ।

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