पंचतंत्र की कहानियां हिंदी में – कौवे ने सांप को पछाड़ा | Panchtantra Ki Kahani in Hindi

पंचतंत्र की कहानियां हिंदी में – कौवे ने सांप को पछाड़ा | Panchtantra Ki Kahani in Hindi

एक बड़े बरगद के पेड़ पर एक कौवे और कौवी ने अपना घोंसला बनाया । वे अपने बाल-बच्चों के साथ उस घोंसले में रहने लगे ।

एक दिन एक बूढ़े से काले सांप ने भी उस बरगद के नीचे अपना बिल बना लिया और उसमें रहने लगा। काले सांप का इतना निकट रहना कौवे-कौवी को जरा भी नहीं भाया। पर वे कर भी क्या सकते थे ।

कौवी ने अण्डे दिये । कूछ दिनों बाद अण्डों में से बच्चे निकले । कौवा और कौवी बड़े प्यार से अपने बच्चों को पालने लगे । एक दिन कौवा और कौवी बच्चों के लिए खाना लाने गये थे। काला सांप पेड़ पर चढ़ गया । उसने कौवे के बच्चों को मार कर खा लिया । कौवा और कौवी जब लौटे और बच्चों को नहीं पाया तो बहुत दुखी हुए । उन्होंने सारे जानवरों और चिड़ियों से पूछा लेकिन कोई भी नहीं बता सका कि बच्चे कहां गायब हो गये हैं। दोनों खूब रोये । फिर दोनों ने तय किया कि अगली बार बच्चों को कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे।

कई महीने बीत गये। कौवी ने फिर अण्डे दिये । अंडों से बच्चे निकले । इस बार कौवा और कौवी बच्चों की खुब रखवाली करते। एक दाना लाने जाता तो दूसरा बच्चों के पास रहता । एक दिन कौबी ने देखा कि वही बुढ़ा काला सांप धीरे-धीरे रेंगता हुआ पेड़ पर चढ़ रहा है। वह सांप को भगाने के लिए जोर-जोर से कांव-कांव करने लगी लेकिन सांप पर इसका कोई असर नहीं हुआ। वह पेड़ पर चढ़ गया और कौवे के बच्चों को फिर मार कर खा गया।

कौवी बहुत रोयी उसके आंसू रुकते ही नहीं थे । उसका रोना-धोना सुनकर बहुत सारे कौवे वहां आ पहुंचे । सबने मिल कर सांप पर हमला करना चाहा पर सांप तो पहले ही अपने बिल में घुस गया था।

शाम को कौवा लौटा और उसने सूना कि काला सांप फिर बच्चों को खा गया तो वह बहुत दुखी हुआ। सिसकते हुए कौवी ने कहा कि हम लोग इस पेड़ को छोड़ कर कहीं और चलते हैं । इस काले सांप के पड़ोस में रहना ठीक नहीं।

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बच्चों के मरने से कौवा भी बहुत दुखी था। उसने कौवी को बहुत समझाया । पर कौवी तो एक न सुनी। वह काले सांप के पड़ोस में रहने को राजी न थी ।

कौवे ने कहा, “हम इतने सालों से यहां रह रहे हैं। अपने पुराने घर को छोड़ते हुए मुझको तो बहुत बुरा लगेगा ।”

कौवी ने कहा, “सो तो ठीक है पर इस दूष्ट सांप से हमें कौन बचायेगा ? “

कौवे ने कहा, “चलो हम सांप को भगाने या मारने की कोई न कोई तरकीब सोचें । लोमड़ी मौसी यहीं पास में रहती है। वह बहुत चतुर है। चलो उससे बात करें ।”

कौवी ने कौवे की बात मान ली। दोनों लोमड़ी के पास गये। और उसे सारी बात बतायी। वे बोले, “हमारी मदद करो मौसी । इस सांप से हमें बचाओ। नहीं तो हमें अपना घर छोड़ कर कहीं दूर जाना पड़ेगा ।”

लोमड़ी ने कुछ देर सोच कर कौवे से कहा, “तुम दोनों को अपना घर नहीं छोड़ना चाहिए। तुम दोनों बहुत दिनों से यहां रह रहे हो । मैंने सांप को मारने की एक बहुत अच्छी तरकीब सोची है । “

कल सबेरे महल से राजकुमारियां नदी में नहाने जायेंगी । पानी में घुसने के पहले वे अपने गहने और कपड़े उतार कर किनारे पर रख देंगी । उनकी रखवाली करने के लिये उनके साथ नौकर-चाकर भी होंगे ।

“तुम दोनों पहले देख आना कि वे गहने कहां रखती हैं। जब कोई देख न रहा हो तो कौवी उनमें से एक मोती का हार उठा कर उड़ जाए । तुम पीछे-पीछे कांव-कांव करते उड़ जाना ।

जोर से शोर मचाना जिससे नौकर-चाकर तुम्हे हार लेकर उड़ते हुए देख ले । वह तुम्हारा खूब पीछा करेंगे। तुम हार काले सांप के बिल में गिरा देना । फिर देखना क्या होता है।”

कौवे ने लोमड़ी की बताई तरकीब मान ली ।

दूसरे दिन सबेरे कौवा नदी के किनारे जा पहुंचा । थोड़ी देर में वहां राजकुमारियां नहाने आई। उनके साथ नौकरानियां भी थीं। राजकुमारियों ने अपने गहने-कपड़े उतार कर किनारे पर रख दिये और नहाने के लिए नदी में उतर गईं ।

कौवा और कौवी देख रहे थे । गहनों में मोतियों की एक माला भी थी । कौवी ने झपट कर चोंच में माला दबाई और उड़ गई । कांव-कांव करता हुआ कौवा भी उसके पीछे-पीछे उड़ चला।

नौकरों ने कौवी को माला उठाते देख लिया । उन्होंने शोर मचाया और कौवे के पीछे भागे। कौवी ने सांप के बिल में माला गिरा दी और उड़ गई ।

नौकरों ने सांप के बिल में माला को गिरते देख लिया । वे डंडों से बिल में से हार निकालने लगे। सांप को यह छेड़छाड़ अच्छी नहीं लगी। उसे बहुत गुस्सा आया । वह बिल के बाहर निकल आया और फन फैला कर उन्हें डसने को लपका । नौकरों ने सांप को घेर लिया और लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला । फिर वे माला लेकर चले गये ।

कौवा और कौवी पेड़ पर से सब तमाशा देख रहे थे । उन्होंने जब देखा कि उनका दुश्मन काला सांप मार डाला गया है तब उन्होंने सुख की सांस ली । कौवा और कौवी अपने पुराने घर में सुख से रहने लगे और हमेशा लोमड़ी के गुण गाते रहे ।

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