विक्रम बेताल की अंतिम कहानी | बराबर का हक | Vikram Betaal Ending
विक्रम चलता रहा । अब बेताल उसे अंतिम कहानी सुनाने लगा – “सुनो राजा विक्रम !
बाती द्वीप में मदन और रतन नामक दो युवक थे । दोनों बहुत गहरे मित्र थे । दोनो बहुत योग्य थे । दोनों एक साथ मिलकर व्यापार करने गए । व्यापार में उन दोनों को बड़ा लाभ मिला । वह वापस लौटते समय एक वृक्ष के तले एकांत में बैठकर अपना बचा सामान और सम्पत्ति की गणना करने लगे । वह अपने काम में लगे थे कि एक रूपसी वहां आ गई ।
दोनों आश्चर्य से देखने लगे ।
“तुम कौन हो सुन्दरी ?” मदन ने पूछा ।
उसने बतलाया कि वह अपने पति के साथ जा रही थी । रास्ते में चोरों ने उसके पति की हत्या कर डाली और सब माल लूटकर भाग गए । वह युवती अपनी बात कहकर विलाप करने लगी । अब उसका कोई सहारा नहीं रह गया है । अपने माता-पिता या अन्य परिजनों के पास जाकर क्या करेगी ? आत्महत्या कर लेगी ।
मदन और रतन ने उसे सांत्वना और संतोष प्रदान किया, तथा हर संभव सहायता करने का आश्वासन दिया । युवती ने धीरज पाया । मदन और रतन दोनों उसे साथ लेकर आगे चल पड़े । रास्ते में यही विचार कर रहे थे कि उस युवती का क्या करें ?
“इसका विवाह कर दिया जाए।” मदन बोला ।
“हम दोनों में से कोई शादी कर ले।” रतन ने कहा ।
दोनों ने जब युवती से इस बारे में पूछा तो उसने कहा – “मुझे तो दोनों अच्छे लगते हो।’
मदन और रतन कोई निर्णय न कर पा रहे थे वह युवती उनके साथ थी ।
अन्त में दोनों ने परची डालना स्वीकार किया ।
पर्ची डाली गई ।
युवती मदन के हिस्से में आई । मदन ने उससे विवाह कर लिया । समय का फेर देखो राजा विक्रम ! एक संतान के जन्म के बाद मदन का देहान्त एक दुर्घटना में हो गया । तब वह महिला रतन की सम्पत्ति से अपना भाग मांगने लगी ।
विक्रम बेताल के सवाल जवाब
बेताल के सवाल :
मदन की कोई भागीदारी रतन के साथ न थी, पर फिर भी वह अपना भाग मांगने लगी ? अब बताओ राजा विक्रम उसकी यह मांग कहां तक जायज है ?”
“मामला राजदरबार में गया होगा ?”
“हां गया था । निर्णय का पता है । राजा ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया था । तुम्हारा क्या निर्णय होता।”
राजा विक्रमादित्य के जवाब :
“मेरा निर्णय ! ” विक्रम मुस्कराया— “मेरा निर्णय होता कि उसे मिलना चाहिए।”
‘क्यों ?” पूछा बेताल ने।
“भले ही परची से जीत हुई थी, पर एक प्रकार से वह सम्पत्ति दोनों की बराबर थी । मतलब उसे उत्तराधिकार तो है ही ।”
“तुम ठीक कहते हो, राजा विक्रम!” बेताल खिल-खिलाकर हंस पड़ा ।
राजा विक्रम सावधान हो गया । मंजिल अब पास आ गई थी । अगर बेताल भाग गया, तो बड़ा मुश्किल हो जाएगा । इस बार विक्रम ने उसे मजबूती के साथ पकड़ लिया । बेताल खिलखिलाकर हंस पड़ा ।
“अब मैं नहीं भागूंगा राजा विक्रम।” उसने कहा -“अब तुम्हारी मंजिल आ गई है । समय भी अब नहीं है । मैं तुम्हारा साथ दूंगा ।”
बेताल के इस आश्वासन के उपरान्त भी विक्रम को विश्वास न आया । वह बेताल को पूरी ताकत से पकड़े था ।
अब श्मशान की चिता दिखने लगी तो बेताल बोला—“राजा विक्रम ! वह साधु महाधूर्त है । वह तुम्हारी हत्या करने की योजना में है । वह तुमको साष्टांग प्रणाम करने को कहेगा और जब तुम ऐसा करोगे, तो वह तुम्हारी गर्दन तलवार से उड़ा देगा । सावधान रहना।”
और सच में वैसा ही हुआ । विक्रम सावधान था । उसने तांत्रिक का सिर धड़ से अलग कर दिया । ऐसा होते ही श्मशान में भयानक अट्टहास गूंज गया । वह अट्टहास बेताल का था । राजा विक्रम आश्चर्य में पड़ गए ।
तभी बेताल सामने आ गया ।
“अरे तुम… !”
“हां राजा विक्रम!” बेताल बोला – “इस संन्यासी की बलि चढ़ाकर तुमने मुझे जीवनदान दिया है । अगर तुम उसकी बलि न देते तो मेरा पुनर्जीवन असंभव था । मैं आपका आभारी हूं राजा विक्रम।”
राजा ने देखा । बेताल का रूप-रंग बदल गया था । अब वह एक सुन्दर पुरुष में बदल गया था । राजा विक्रम ने पूछा-“अब तुम क्या करोगे ?”
“जो आप कहें।”
राजा विक्रम ने कहा – “तब तुम मेरे साथ रहो । मैं तुम्हें अपने यहां मंत्री पद दूंगा।”
बेताल प्रसन्न हो गया ।
“मैं आपकी पूरी ईमानदारी से सेवा करूंगा।” बेताल ने आभार प्रकट किया—“राजा विक्रम । यह संन्यासी मेरा ही बड़ा भाई है । इसने तंत्र विद्या के बल पर मुझे मुर्दा बेताल बना दिया था । मेरी पत्नी का अपहरण कर लिया । अब वह तुम्हारा राज्य अपहरण करना चाहता था । तुमने उसका खात्मा कर दिया ।
तुम्हारा नाम दुनिया में रोशन रहेगा। तुम्हारी कीर्ति अमर रहेगी।”