टी. लोबसांग राम्पा | लोबसांग रम्पा | Lobsang Rampa | Lobsang Rampa, The Third Eye
सन् १९५६ में ‘थर्ड आई’ (The Third Eye) नाम से एक अद्भुत पुस्तक प्रकाशित हुई । अपनी अलौकिक पाठ्य सामग्री के कारण इसने पश्चिम का ध्यान अपनी ओर खींच लिया । इसमें एक तिब्बती भिक्षु के अनोखे तथा रहस्यमयी संस्मरण थे । यह तिब्बती भिक्षु एक डॉक्टर तथा विमान चालक भी था । इसका नाम टी. लोबसांग राम्पा (Lobsang Rampa) था ।
पुस्तक के विलक्षण तथ्य जब विद्वानों के गले से नीचे न उतरे, तब कुछ विद्वानों ने लेखक की वास्तविकता का पता लगाने के लिए एक गुप्तचर से मदद ली । गहरी खोज के बाद जासूस ने यह पता लगाया कि अपने को राम्पा बताने वाला यह व्यक्ति वास्तव में इंग्लैंड का नागरिक हारिकंस है, जो रोजक्राफ्ट, टेम्स, डिटान में रहता था ।
जब राम्पा नाम से संस्मरण लिखने वाले लेखक पर जालसाजी लगाया गया, तब उसने यह विलक्षण स्पष्टीकरण दिया कि वह सच है । वह कभी हास्किंस नाम का व्यक्ति था, किन्तु कुछ साल पहले उसने राम्पा से अपने शरीर को बदला था ।
तिब्बती भिक्षु राम्पा अपने शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर में भ्रमण करने में दक्ष था । वह अपने शरीर को बदलने के लिए हास्किंस को सहमत करने के लिए उससे मिला था । पुस्तक के लेखक ने अपने रहस्य भरे स्पष्टीकरण में यह भी बताया कि १३ जून, १९४९ को हास्किंस एक वृक्ष पर उल्लू का चित्र खींच रहा था । अचानक डाल टूट गई तथा यह मुह के बल भूमि पर गिरा । अचानक वह स्वयं को अपने शरीर के ऊपर मंडराते हुए पाया ।
उसका और लोब सांग राम्पा का सूक्ष्म रूप मंडराता हुआ चला आ रहा था । राम्भा का सूक्ष्म रूप तिब्बत मुखी अलौकिक सूत्र से बंधा था । राम्पा ने हास्किंस के शरीर और उसके सूक्ष्म शरीर के बंधन को काट दिया तथा अपने सूक्ष्म रूप के साथ हास्किंस की शरीर में प्रवेश कर गया । शरीर से अलग हुआ हास्किंस का सूक्ष्म रूप विलुप्त हो गया ।