ईसा के कफ़न की पहेली | Riddle of The Shroud of Jesus

ईसा के कफ़न की पहेली | Riddle of The Shroud of Jesus

तुरिन में रखा हुआ एक कफ़न तथा उस पर लगे खून के धब्बे ईसाई समाज के लिए एक सदियों पुरानी पवित्र धरोहर तो मानी जाती है, किन्तु इसे लेकर विवाद अभी भी जारी है कि क्या यह कफन असली है अथवा किसी जालसाज द्वारा बुना गया फरेब है ?

कैथोलिक संप्रदाय के गिरजे इसे फरेब ठहराते हैं, जबकि वे ऐसा कोई तर्क प्रस्तुत नहीं करते । इसके विपरीत वे श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ इसे प्रतिवर्ष प्रदर्शित भी करते हैं । ईयान विल्सन अपनी किताब ‘ब्लड एण्ड साउड’ (खून तथा कफ़न) में कई नए प्रमाण प्रस्तुत करते हुए इसे असली कफन ठहराते हैं, जिसमें लपेटकर ईसा मसीह को कब्र में उतारा गया था ।

सन् १३८९ में फ्रांसीसी बिशप पियरे-द-आर्किस ने कहा था कि सन् १३५० में उसके पूर्ववर्ती बिशप को इस बात का पता चला कि कपड़े पर किसी ने बड़ी बारीकी से जालसाजी की है तथा कपड़े पर मनुष्य के हाथों से चित्र बनाए गए हैं । सन् १९८८ में विश्व प्रयोगशालाओं ने कार्बन डेटिंग पद्धति से इस कपड़े का काल निर्धारण किया कि यह कपड़ा सन् १२६० से १३९० के बीच का है ।

इस मामले में पहली बार विज्ञान तथा अध्यात्म ने एक स्वर में अपनी बात कही कि यह कपड़ा जालसाजी का नमूना है । विशप-द-आर्किस के बारे में कहा जाता है कि वे उस गिरजा घर के प्रतिद्वंद्वी थे, जहां यह कफन दर्शनार्थ रखा हुआ था तथा लोगों की भीड़ वहां इसे देखने को उमड़ पड़ती थी । बिशप के विरोध के बावजूद पोप क्लेमेंट छठे ने इसे लोगों के दर्शन के लिए खुला रखा और इसे बंद नहीं किया । सन् १५३२ में गिरजाघर में लगी आग से कपड़े को भी आंच आई तथा वह काला पड़ गया । इस पर चढ़ा चांदी का कलाबत्तू नष्ट हो गया । ईयान विलसन का तर्क यह है कि इस कफन को लेकर जालसाजी के गढ़े गए आरोप अर्थहीन हो चुके हैं ।

क्या कपड़े पर चित्रकारी की गई है ? मशहूर चित्रकारों ने तो यहां तक कहा है कि कफन पर उभरी छवि को तकनीकी ढंग से चित्रित करना असंभव है । यह जरूर कहा जा सकता है कि कपड़े पर उभरा चित्र किसी फोटो का नेगेटिव हो सकता है, किन्तु १४वीं सदी में कैमरे का आविष्कार ही नहीं हुआ था । इसी तरह विल्सन इन तथ्यों को भी नकारते हैं, कि कार्बन डेटिंग का वैज्ञानिकों ने वेटिकन के संरक्षण में काम किया था । उन्होंने इस संभावना से भी इनकार कर दिया कि महान् वैज्ञानिक लियोनार्दो द विंची ने १४९२ में यह जालसाजी तैयार की थी, क्योंकि ऐसे कई उल्लेख मिलते हैं कि यह पवित्र कफन लियो नार्दो द विंची के समय से पहले ही अस्तित्व में था ।

वे इसी तरह के अन्य कई आश्चर्यजनक तथ्यों का भी बयान करते हैं कि कफन पर पाए गए एक पुष्पित परागण की काल गणना वैज्ञानिकों ने फिलिस्तीन में पहली सदी में पाए जाने वाले पौधे के समय की है । एक अन्य वैज्ञानिक ने कफन पर मिले रक्तकणों का वर्गीकरण करते हुए उसे एबी ग्रुप के मनुष्य का रक्त ठहराया है । एक अन्य ने इस रक्त की मानवीय डी.एन.ए. तलाश ली है । विलसन के अनुसार प्रश्न यह उठता है कि क्या यह ईसा मसीह (परमात्मा के पुत्र) का खून है ? इसका सीधा अर्थ यह है कि ईसा मसीह के पिता भी थे । विलसन का यह तर्क भी महत्त्वपूर्ण है कि ईसा को परमात्मा का पुत्र सिद्ध करने तथा उनके मानव संतान न होने की धारणा को बल पहुंचाने के लिए ही वेटिकन इस पवित्र कफन को जालसाजी ठहराता रहा है, किंतु साथ-ही-साथ इसे लोगों के दर्शनार्थ भी रखता रहा है ।

विलसन के तर्क में भले ही विसंगतियां हों, किंतु एक बात निश्चित है कि या तो यह कफन ईसा मसीह को सूली पर लटकाते समय लपेटा गया कपड़ा है, अन्यथा यह एक ऊंचे दर्जे की जालसाजी है । अगर जालसाजी है, तो इसे किस प्रकार किया गया ? उस काल में ऐसी कौन-सी तकनीक विकसित थी, जिसके आधार पर मानव शरीर की सही प्रतिकृति यथार्थ रूप में इतनी कुशलता से उतारी गई । आखिर वह किसका मस्तिष्क था, जो इतनी बड़ी जालसाजी को कुशलता से निभा गया । लगता है कि अन्वेषण से इन प्रश्नों के उत्तर भी हमें शीघ्र ही मिल जाएं । फिलहाल आज भी ईसा का कफन एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है ।

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