अघोरी भाग – 2 | Aghori Part – 2

अघोरी

अघोरी भाग – २

कृपया ध्यान दे !!!!! अघोरी भाग – २ से जुड़ी सभी बाते, घटनाए, सन, समय, सन घटनाए, स्थान, व्यक्ति व अन्य सभी तथ्य कल्पनिक है, और इसका वास्तविकता से किसी भी प्रकार का कोई भी संबंध नही है | ये सभी कहानिया केवल लेखक के दिमाग की सोच से जन्मी है, अगर इसका वास्तविकता से किसी भी प्रकार का संबंध पाया जाएगा तो इसे मात्र एक संयोग समझा जाए |




Aghori

पर कहते है न की, सभी दिन एक समान नही रहते है | एक दिन अचानक बाबा भोलेनाथ ने समाधि लेने का निर्णय लिया | उनके सभी शिष्यो ने उन्हे बहुत समझाया, पर बाबा ने मानो निर्णय ही ले लिया था | कुछ दिनो मे ये बात सारे अघोरियों मे फैल गई |

पर बाबा का निर्णय और उनकी बात, कौन टाल सकता था |

उसके कुछ दिनों के बाद, बाबा रात को ध्यान करते समय अपने प्राण त्याग दिए और उनका शरीर इसी ध्यान की अवस्था में रह गया, सुबह जब उनके शिष्यों को पता चला तब उन सब ने मिलकर उसी स्थान पर उनकी समाधि बना दी |

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कुछ महीनो तक तो सब कुछ सामान्य की तरह चलता रहा | फिर आया बाबा का पुराना शिष्य कोच्चीनाथ, जो बहुत पहले इस गाव से निकाला जा चुका था | बाबा ने स्वयं उसे जाने का आदेश दिया था, कारण क्या था ? ये किसी को भी पता नहीं |

कोच्चीनाथ, भी बाबा की तरह ताकत व शक्ति से भरपूर था | सभी को ये लगता था, की कोच्चीनाथ ही आगे इस आश्रम को सम्हालेगा, पर सभी अघोरियो का भ्रम उस समय टूटा, जब कोच्चीनाथ इस गाव को छोड़कर चला गया |

कोच्चीनाथ में बाबा की तरह ताकत व शक्ति तो थी ही | शरीर और कद-काठी से भी मजबूत था | बड़ी-बड़ी जटा, बड़े-बड़े नाख़ून, बड़ी-बड़ी दाढ़ी और आखो में एक अलग ही तेज, मानो सारी शक्तियो का बखान कर रही हो, दुनिया जितना चाहती हो |

कोच्चीनाथ के यहाँ आने के बाद, मानो यहाँ की हवाए ही बदल गयी | अघोरियो का अलग-अलग दल बनना शुरू हो गया | इन सब में सबसे बड़ा दल था, कोच्चीनाथ का |

कोच्चीनाथ का दल ध्यान और काली शक्तियों का पूजा करता | इस दल में सभी कोच्चीनाथ के शिष्य थे |

धीरे-धीरे दूसरे अघोरीयो ने एक-एक कर यहा से जाना शुरू कर दिया और कुछ समय बाद इस आश्रम मे सिर्फ कोच्चीनाथ के शिष्य और कोच्चीनाथ ही रह गए |

काली शक्तियों का पूजा करते-करते कोच्चीनाथ और भी ज्यादा ताकतवर होता जा रहा था | ताकत और शक्तिया पाने की भूख इतनी ज्यादा थी की अब जानवरो के अलावा अपनी पुजा मे इन्सानो की भी बली देना शुरू कर दिया था |

कोच्चीनाथ के डर के कारण आसपास के आदिवासी गाव भी धीरे-धीरे खाली होना शुरू हो गए |


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