मार्क्सवाद क्या है | What is Marxism
मार्क्सवाद (Marxism) उस संसार का, जिसमें हम रहते हैं, और मानव समाज (Humane Sociery) का, जो उस संसार का एक भाग है, एक सामान्य सिद्धान्त है। मार्क्सवाद (Marxism) का नाम कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के नाम पर पड़ा है। कार्ल मार्क्स (Karl Marx) (१८१८-१८८३) ने फ्रेडरिक एंगेल्स (Friedrich Engels) (१८२०-१८९५) के साथ मिलकर पिछली शताब्दी के मध्य और अन्तिम भाग में इस सिद्धान्त को विकसित किया था ।
कार्ल मार्क्स (Karl Marx) और फ्रेडरिक एंगेल्स(Friedrich Engels) की खोजबीन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि मानव समाज का आज जो रूप पाया जाता है, वह ऐसा क्यों है; उसमें परिवर्तन क्यों होते हैं तथा आगे चलकर मनुष्य जाति को और क्या-क्या परिवर्तन देखने पड़ेगे ? अपने अध्ययन से वे इस परिणाम पर पहुँचे कि ये परिवर्तन बाह्य प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों की ही भाँति-अकस्मात नहीं हो जाते, बल्कि कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार होते हैं। इस सत्य की खोज के बाद यह संभव हो जाता है की मानव समाज के बारे में एक ऐसे वैज्ञानिक सिद्धान्त (scientific theory) का निरूपण किया जाय, जो मनुष्य-जाति के वास्तविक अनुभवों पर आधारित हो और जो धार्मिक-विश्वासों, नस्ली-अहंकार और वीर-पूजाओं, व्यक्तिगत भावनाओं या काल्पनिक स्वप्नों के आधार पर बनी हुई, समाज के, बारे में पहले की अस्पष्ट धारणाओं से भिन्न हो ।
कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने इस सामान्य सिद्धान्त को उस समाज पर जिसमें वह रहते थे यानी पूंजीवादी (capitalist) ब्रिटेन के समाज पर लागू किया, और इस प्रकार पूंजीवाद (capitalist) के आर्थिक सिद्धान्त को खोज निकाला । कार्ल मार्क्स (Karl Marx) की सबसे अधिक ख्याति इसी सिद्धान्त को लेकर हुई है । परन्तु उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि उनके आर्थिक सिद्धान्तों को उनके ऐतिहासिक और सामाजिक सिद्धान्तों से अलग नहीं किया जा सकता । शुद्ध आर्थिक समस्याओं के रूप में मुनाफे और मंजूरी का एक सीमा तक ही अध्ययन किया जा सकता है |
समाज के विकास की वैज्ञानिक समझ, विज्ञान की दूसरी सभी शाखाओं की तरह ही, अनुभव पर, इतिहास के तथा हमारे चारों ओर पाये जानेवाले संसार के तथ्यों पर आधारित है। अतः मार्क्सवाद (Marxism) पहले से अपने में सम्पुर्ण और सोलह आने तैयार कोई सिद्धान्त नहीं है । जैसे-जैसे इतिहास की नई-नई परते खुलती जाती हैं, जैसे-जैसे मनुष्य और अधिक अनुभव प्राप्त करता जाता है, वैसे-वैसे मार्क्सवाद (Marxism) का भी अनवरत विकास किया जा रहा है, और उसे उन नये-नये तथ्यों पर घटाया जा रहा है जो अब प्रकाश में आते जा रहे हैं । मार्क्स और एंगेल्स की मृत्यु के उपरान्त इस विकास में सबसे महत्वपूर्ण योग देने का काम वी.आई.लेनिन (V.I.Lenin) ने (१८७०-१९२४) और जोसेफ़ स्तालिन (Joseph Stalin) ने (१८७९-१९५३) (जिन्होंने रूस में नये समाजवादी समाज के निर्माण के लेनिन के काम को जारी रखा) किया है ।
जिस तरह हर प्रकार के विज्ञान की समझ बाह्य प्रकृति को बदलने के काम आ सकती है, उखी तरह समाज के अध्ययन से प्राप्त हुई वैज्ञानिक समझ भी समाज को बदलने के काम में लाई जा सकती है । परन्तु साथ ही साथ, इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि समाज की गति को निर्धारित करने वाले सामान्य नियम भी उसी प्रकार के नियम होते हैं जिनसे कि बाह प्रकृति का संचालन होता है । दूसरे शब्दों में, इन्हीं सामान्य नियमों को जिनकी सत्ता सार्वभौमिक है, और जो इन्सानों तथा वस्तुओं, दोनों ही का निर्देशन करते हैं मार्क्सवादी दर्शन (Marxist philosophy) अथवा संसार का मार्क्सवादी दृष्टिकोण (Marxist view) कहा जा सकता है।
यह ध्यान में रखना चाहिये कि मार्क्सवाद (Marxism) जीवन से असम्बंधित, नैतिकता के कुछ हवाई सिद्धान्तों पर आधारित होने के कारण अपनी मानता का दावा नहीं करता, बल्कि अपनी मानता का दावा वह इसलिये करता है क्योंकि वह सत्य है । और चूँकि वह सत्य है इसलिये आज के समाज में सबको परेशान करने वाली बुराइयों और तकलीफ़ों से मानवता को हमेशा के लिये छुटकारा दिलाने तथा समाज के एक उच्चतर रूप की स्थापना करके सभी स्त्री-पुरुषों को अपना पूर्ण विकास करने में मदद देने के लिये इसका उपयोग किया जा सकता है, और ऐसा करना हमारा कर्तव्य है ।