सरदार भगत सिंह | भगत सिंह की कहानी | भगत सिंह का जीवन परिचय | Bhagat Singh Ki Jivani

सरदार भगत सिंह | भगत सिंह की कहानी | भगत सिंह का जीवन परिचय | Bhagat Singh Ki Jivani

भगत सिंह का जन्म २७ सितम्बर १९०७ मे पश्चिमी पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव मे हुआ था (उनके जन्म की सही तिथि ज्ञात नहीं है) । भगत सिंह के पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था ।

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बंगा के स्कूल से आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भगत सिंह को लाहौर के डी.ए.वी. कालेज में भेज दिया गया । वहां वह दो ऐसे शिक्षकों के प्रभाव में आये, जो पुराने राष्ट्रवादी थे और जिन्होंने भगत सिंह के दिल-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ी । वह छात्र समुदाय के नेता बने, लेकिन महात्मा गांधी के ‘असहयोग’ के आह्वान के जवाब में उन्होंने डी.ए.वी. कालेज छोड़ दिया ।

बाद में उन्होंने लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित नेशनल कालेज में प्रवेश लिया और सन् १९२८ में स्नातक परीक्षा पास की । सन् १९२३ से लेकर सन् १९३१ में फांसी चढ़ाए जाने तक, भगत सिंह अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए लड़ते रहे ।

सन् १९२५ में उन्होंने युवाओं में क्रांति की ज्योति जगाने के लिए लाहौर में नव-जवान भारत सभा की स्थापना की । उनका परिचय सुखदेव, यशपाल, चन्द्रशेखर आजाद, यतीन्द्रनाथ दास जैसे अन्य क्रांतिकारियों से हुआ, जो युवाओं के साथ काम कर रहे थे । दास ने उन्हें क्रूड बम बनाना सिखाया ।

३ फरवरी १९२८ को जब साइमन कमीशन बंबई पहुंचा, कांग्रेस ने काले झंडे लेकर जुलूस निकालने का आह्वान किया । लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक विशालकाय जुलूस ने काले झंडों से साइमन कमीशन का स्वागत किया और बदले में उन पर लाठियां बरसाई गयीं । भगत सिंह, राजगुरु और आजाद ने लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसाने के संदिग्ध उत्तरदायी श्री स्कॉट की हत्या करने का फैसला किया ।

१७ दिसंबर १९२८ को पुलिस के एक सहायक अधीक्षक सांडर्स को उन्होंने स्कॉट समझकर मार डाला । ८ अप्रैल १९२९ को भगत सिंह और उनके सहयोगी बी.के. दत्त ने सेंट्रल असेंबली में सत्र चलते वक्त, बम फेंका और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए आत्म-समर्पण कर दिया । उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । बाद में, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर मुकदमा चलाकर २३ मार्च १९३१ को शाम साढ़े सात बजे लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी चढ़ा दिया गया । जनता के आक्रोश के डर से पुलिस ने उनके मृत शरीर तक उनके परिवारजनों को नहीं सौंपे और आधी रात को सतलज के किनारे उनका दाह-संस्कार कर दिया ।

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