आइज़क न्यूटन का जीवन परिचय | आइज़क न्यूटन का जीवन | आइज़क न्यूटन कौन थे | आइज़क न्यूटन की शिक्षा | आइज़क न्यूटन के आविष्कार | isaac newton in hindi | isaac newton story in hindi | isaac newton history | isaac newton biography | isaac newton discoveries | isaac newton childhood | isaac newton education | isaac newton death

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आइज़क न्यूटन का जीवन परिचय | Isaac Newton Biography


आइजक न्यूटन (Isaac Newton) के बारे में भला कौन नही जानता, उन्होने अपने बगीचे में पेड़ से एक सेब को गिरते हुए देखा था और इस घटना के माध्यम से उन्होने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त (Law of Gravitation) को खोज निकाला था | ये घटना लिकोन्शायर (Lincolnshire) में वूल्सथोर्प (Woolsthorpe) स्थित उसके पुराने मकान के बगीचे में घटित हुई थी |

आइज़क न्यूटन का जन्म | Isaac Newton Birth


आइजक न्यूटन (Isaac Newton) का जन्म सन् ४ जनवरी १६४३ में वूल्सथ्रोप निवासी हन्नाह न्यूटन (Hannah Newton) के यहाँ हुआ था | पर यूरोपियन ओल्ड स्टाइल कलेंडर के अनुसार २५ दिसबर १६४२ माना जाता है |

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जब आइजक न्यूटन (Isaac Newton) मात्र तीन वर्ष थे , तब उनकी माँ ने दूसरा विवाह कर लिया और बालक आइजक न्यूटन (Isaac Newton) अपनी दादी की देखभाल में रहने लगा था, दादी के लाड़-प्यार में, आइजक न्यूटन (Isaac Newton) एक बिगड़े हुए बालक के रूप में बड़ा होने लगा |

आइजक न्यूटन की शिक्षा | Isaac Newton Education


सन् १६५४ में आइजक न्यूटन (Isaac Newton) को ग्रान्थम (Grantham) के ग्रैमर स्कूल में दाखिल करा दिया गया, आइजक का मन पढ़ने में नहीं लगा | सन् १६५६ में आइजक के सौतेले पिता वार्नबस स्मिथ (Barnabas Smith) की मृत्यु हो गई |

आइजक की माता अकेली रह गई, अपने खेत की देखभाल में हाथ बटाने के लिए उन्होंने बालक आइजक को अपने पास बुला लिया | इन दिनों बालक आइजक का मन पढ़ने में लगने लगा था | आइजक का मन ज्ञान प्राप्ति की ओर लगा रहता था, परन्तु उसके स्थान पर आइजक को खेती से सम्बन्धित कार्य करने पड़ते थे |

आइजक न्यूटन (Isaac Newton) एक प्रकार की निराशा में रहने लगा था | आइजक के मामा विलियम आइकोफ (William Ayscouph) को बालक आइजक पर दया आ गई और उन्होंने आइजक को फिर से स्कूल में भर्ती करा दिया |

यह सन् १६६० की बात है, इस समय तक आइजक एक अध्ययनशील बालक बन चुका था | ५ जून, १६६१ को उसे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिल करा दिया गया |

किशोरावस्था के आगमन तक आइजक उस शक्ति का अध्ययन करने लगे थे, जो गेंदों को ढालू तख्ते पर नीचे की ओर धकेलती है | यदि तख्ते को उल्टी ओर झुका दिया जाए, तो गेंदें कितनी दूरी तक जा सकेंगी आदि प्रश्न न्यूटन के मन को परेशान करने लगे थे | कौन सी ऐसी शक्ति थी जो पतवारों को चलाने वाली हवा को चलाती थी, तारागण को सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने को विवश करती थी, आदि गैलिलियो बता चुके थे कि तारागण चलते थे, परन्तु आइजक ने जानना चाहा कि ऐसा क्यों होता है ?

अपने स्कूल-जीवन में ही वह यान्त्रिक रचनाएँ करने लगे थे | जैसे पतंगें, ट्रैडमिल में बन्द चूहे द्वारा चलाई जाने वाली मिल आदि |

जनवरी १६६५ में आइजक न्यूटन (Isaac Newton) ने B.A. की उपाधि प्राप्त कर ली, इसके साथ ही आइजक के गणित सम्बन्धी प्रशिक्षण की सफलता दिखाई देने लगी |

आइज़क न्यूटन के आविष्कार | Isaac Newton Discoveries


सन् १६६६ में आइजक न्यूटन (Isaac Newton) ने बाइनोमिनल प्रमेय (Binominal Theorem) की खोज की और कुछ ही दिनों बाद उन्होने इण्टीग्रल कैल्क्युलस के सिद्धान्तों (Principles of Integral Calculus) एवं वक्र रेखाओं अथवा ठोस पदार्थों के मालूम करने के नियमों का उद्घाटन किया |

इसी समय में आइजक न्यूटन (Isaac Newton) ने पेड़ से गिरते हुए सेब को देखकर गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी शोध की थी |

अपने द्वारा स्थापित सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण (universal gravitation) के नियम के आधार पर उन्होने चन्द्रमा तथा अन्य नक्षत्रों की गतियों को व्याख्यापित करने का प्रयत्न किया, परन्तु इस प्रयास में आइजक को आंशिक सफलता ही प्राप्त हो सकी |

गैलिलियो द्वारा निर्मित दूरबीन से आइजक न्यूटन (Isaac Newton) संतुष्ट नहीं थे, उन्होने एक नये प्रकार की दूरबीन का निर्माण किया | दूरबीन का यह स्वरूप आज तक मान्य है, न्यूटन द्वारा स्थापित प्रकाश के विश्लेषण की पद्धति आधुनिक खगोल विद्या में आज तक शोध कार्य का आधार बनी हुई है |

सन् १६६७ में एक फैलो के रूप में आइजक कैम्ब्रिज वापस आ गये, यहाँ रहते हुए कुछ वर्षों तक उन्होंने प्रकाश सम्बन्धी खोजों में तथा दूरबीन (Telescope) के निर्माण में अपना समय लगाया | आइजक न्यूटन (Isaac Newton) ने ६” लम्बी एक दूरबीन बनाने में सफलता प्राप्त कर ली | इसकी सहायता से आइजक ने बृहस्पति ग्रह के उपग्रहों को देख लिया |

सन् १६६९ में न्यूटन की नियुक्ति ट्रिनिटी कॉलेज में गणित के प्रोफेसर के पद पर हो गई | आइजक न्यूटन ने स्वनिर्मित्त प्रिज्म (Prism) की सहायता से अनेक प्रयोग किए और आलेख लिखे |

आइजक न्यूटन के तीन प्रमुख क्रान्तिकारी खोजें ये थी –

प्रकाश सम्बन्धी नियम (The Laws of Optics),

द्रव-स्थिति एवं गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी नियम (Laws of Dynamics and Gravity),

डिफरेंशियल कैल्कुलस (Differential Calculas) के नियम

आइजक न्यूटन के कार्य


अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रिंसिपिया (Principie) के प्रकाशन के बाद न्यूटन वस्तुतः सार्वजनिक जीवन में आ गए | बादशाह जेम्स II (King James II) के नियमों की उपेक्षा करके फादर एलवन फ्रांसिस (Father Alban Francis) को एम. ए. की उपाधि प्रदान करना चाहता था | इसका विरोध होने लगा | न्यूटन ने इस संदर्भ में विरोधियों का साथ दिया, फलतः उसको कन्वेन्शन पार्लियामेण्ट (Convention Parliament) में सन् १६८९ में स्थान प्राप्त हुआ | इस स्थान पर वह एक वर्ष तक, सन् १६९० तक रहे |

अपने मित्रों के प्रयास से आइजक न्यूटन (Isaac Newton) को १६९५ में टकसाल के संरक्षक (Warden of the Mint) का पद प्राप्त हुआ, चार वर्ष बाद उनको मास्टर ऑफ दी मिण्ट (Master of the mint) बना दिया गया | उसके बाद उनको विज्ञान की फ्रैंच अकादमी (French Academy of Science) के आठ विदेशी संयुक्त सदस्यों (Foreign Association of the French Academy of Science) में एक सदस्य का स्थान प्रदान किया गया |

सन् १७०१ में उसको विश्वविद्यालय की ओर से पुनः संसद का सदस्य बना दिया गया, इस पद पर आइजक न्यूटन (Isaac Newton) जीवन पर्यन्त रहे, सन् १७०३ में आइजक न्यूटन (Isaac Newton) को रॉयल सोसाइटी का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया | इसके बाद अंतिम समय तक उनको प्रतिवर्ष इस पद पर निर्वाचित किया जाता रहा था, इस पद पर रहते हुए उन्होने अपनी व्यक्तिगत देखरेख में फ्लेम्सटीड के ग्रन्थ ग्रीनविच आब्जरवेशन्स (Flamsteed Greenwich Observations) का प्रकाशन कराया था |

चौवालीस वर्ष की अवस्था के बाद न्यूटन ने अपने विषय गणित में रुचि लेना बन्द कर दिया था और वह बाइबिल की ओर झुक गया था |

आइजक न्यूटन को प्राप्त सम्मान


ज्ञान के क्षेत्र में अनेक सम्मान प्राप्त करने वाले आइजक न्यूटन को सन् १७०५ में रानी-एनी (Queen Anne) ने न्यूटन को सर (Knighthood) की उपाधि द्वारा अलंकृत किया था |

आइजक न्यूटन का निधन


सन् १७२७ के आरम्भ में सर आइजक न्यूटन गम्भीर रूप से बीमार हो गये, अन्ततः पथरी के रोग के कारण वह कैन्सिंगटन (Kensington) में ३१ मार्च, १७२७ को स्वर्गवासी हुए, पर यूरोपियन ओल्ड स्टाइल कलेंडर के अनुसार २० मार्च १७२६ माना जाता है | २४ मार्च के दिन वह वैस्टमिन्स्टर एवं (Westmisnter Abbey) में उनको दफन किया गया | सन् १७३१ में उस स्थान पर एक स्मारक का निर्माण किया गया |

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