लक्ष्मी स्रोत | Laxmi Stotra

Table of Contents (संक्षिप्त विवरण)

Laxmi Stotra

|| लक्ष्मी स्रोत ||

पुराणों में एक कथा कही गयी है। अहंकारी देवराज इंद्र को महर्षि दुर्वासा ने श्री हीन हो जाने का श्राप दिया | तब लक्ष्मी देवलोक छोड़कर चली गयीं| उनके जाने से सारे देवता तेजहीन और दीन हो गये। देवराज इंद्र ने तब भगवान विष्णु और पितामह ब्रह्मा का आदेश पाकर भगवती महालक्ष्मी का पूजन किया। उन्होंने ऐश्वर्य की देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए जिस स्तोत्र का पाठ किया था, उसे सिद्धि का साधन माना जाता है जो लोग दीन दुःखी हैं, जो संकट से घिरे हैं, जो गरीब और कर्जदार हैं, जिनके घर में संकट आते रहते हैं, जिनके परिवार में असाध्य रोगी है, उन्हें श्रद्धापूर्वक तीनों समय इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पाठ में एकाग्रता होगी तो इसका फल अवश्य मिलेगा। एकाग्र भाव से अर्थ समझकर इस स्तोत्र का पाठ करने वाले साधक को सांसारिक संपदाएं मिलती हैं और उसका मनोबल दिनोंदिन बढ़ता है।

स्त्रोत इस प्रकार है –

नमः कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नमः ।
कृष्णप्रियायै सततं महालक्ष्म्यै नमो नमः ।।
पद्धपत्रेक्षणायै च पद्धास्यायै नमो नमाः ।
पद्धासनायै पद्धिन्यै वैश्वण्यै व नमो नमः ।।
सर्व सम्पत स्वरूपिण्यै सर्वाराध्ये नमो नमः ।
हरि भक्ति प्रदात्र्यै व हर्षदात्र्यै नमो नमः।।
कृष्ण वक्षस्थितायै च कृष्णेशायै नमो नमः ।।
चंद्रशोभा स्वरूपायै महादेव्यै नमो नमः ।।
सम्पत्य धिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नमाः ।
नमो वृद्धि स्वरूपायै वृद्धिदायै नमो नमः।।
बैकुण्ठे या महालक्ष्मी या लक्ष्मी क्षीर सागरे।
स्वर्गलक्ष्मीरींद्रगेहे राजलक्ष्मीर्नृपालये।।
गृहलक्ष्मीश्च गृहिणाम् गेहे च गृहदेवता।
सुरभिः सागरे जाता दक्षिणा यज्ञ कामिनी।।
अदितिर्देव माता त्वम् कमला कमलालया।
स्वाहा त्वं च हविर्दाने कव्य दाने स्वधा स्मृता ||
त्वं हि विष्णु स्वरूपा च सर्वाधारा वसुंधरा।
शुद्ध सत्वस्वरूपा त्वं नारायण परायणा।।
क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा शारदा शुभा।
परमार्थ प्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा।।
यया विना जगत्सर्व भस्मीभूतभसारकं ।
जीवन मृतं च विश्वं च शश्वत् सर्व यया विना।।
सर्वेषाम् च परा माता सर्व बांधव रूपिणी।
धर्मार्थ काम मोक्षाणां त्वं च कारण रूपिणी।।
यथा माता स्तनन्धानं शिशूनां शैशवे सदा ।
तथा त्वां सर्वदा माता सर्वेषां सर्वरूपतः।।
मातृहीन स्तनन्धस्तु स च जीवित दैवतः।
त्वया हीनो जनः कोऽपि न जीवत्येव निश्चितं ।।
सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मां प्रसन्ना भवाम्बिके।
वैरिग्रस्तं च विषयं देहि मह्यं सनातनि।।
अहं यावत् त्वया हीनो बंधु हीनश्च भिक्षुकः ।
सर्व संपद्विहीनश्च तावदेव हरिप्रिये।।
ज्ञानं देहि च धर्म च सर्व सौमाग्यमीप्सितं ।
प्रभावं च प्रतापं च सर्वाधिकार मेव च।।
जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमेव च ।

माता कमलवासिनी को नमस्कार, देवी नारायणी को बार-बार नमस्कार, कृष्ण-प्रिया भगवती महालक्ष्मी को अनेक बार नमस्कार ! कमल पत्ते के समान नेत्रवाली कमलमुखी भगवती महालक्ष्मी को नमन् ! पद्मासना पद्मिनी और वैष्णवी नाम से शोभित महालक्ष्मी को बार-बार नमस्कार | सभी संपत्तियों की स्वरूपा, सबकी आराध्या देवी को नमस्कार! प्रभु श्रीहरि में भक्ति उत्पन्न करनेवाली, हर्ष देने वाली देवी को बार-बार नमस्कार

माता रत्न पदम्ये शोभने आप भगवान श्रीकृष्ण के वक्षस्थल पर विराजमान हैं। आपका स्वरूप चंद्रमा जैसा मनोहारी है। मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। सारी संपत्तियों की अधिष्ठात्री महादेवी को बार-बार नमन् । वृद्धि स्वरूपा और वृद्धि प्रदा भगवती को अनेक प्रणाम ॥

देवी आप दैकुंठ में महालक्ष्मी, क्षीरसागर में लक्ष्मी, शासकों के भवन में राज्य लक्ष्मी इंद्र के स्वर्ग में स्वर्ग लक्ष्मी, गृहस्थो के घर में गृहलक्ष्मी और गृह देवता, सागर के आवास में सुरभि और यज्ञ में दक्षिणा रूप से विराजमान हैं। आप देवताओं की माता अदिति हैं, आप कमला और कमलालया है। हव्य देते समय स्वाहा और कव्य देते समय स्वधा का उच्चारण आपके लिए ही किया जाता है। सभी जीवो को धारण करने वाली विष्णुमयी पृथ्वी आप ही हैं। आप भगवान नारायण की उपासना में सदा लगी रहती है। आपका सत्वमय विग्रह परम शुद्ध है। आप में क्रोध और हिंसा का लेश भी नहीं है। आपको ही वरदा, शारदा, शुभा, परमार्थदा और हरिदास्यप्रदा कहते हैं।

जगदंबा आपके न होने पर सारा संसार सत्वहीन होकर भस्म हो जाता है। प्राण रहते हुए भी संसार की स्थिति मृतक जैसी हो जाती है। आप संपूर्ण प्राणियों की श्रेष्ठ माता हैं, आप सबके बांधब रूप में आई है, आपकी कृपा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते हैं।

जगदंबा जिस प्रकार बचपन में दुधमंहे बच्चे के लिए माता है वैसे ही सारे संसार की जननी रूप में आप सबकी इच्छाएं पूरी करती हैं। स्तनपान करनेवाला शिशु माता के रहने पर भी भाग्यवश जीवित रह सकता है, लेकिन तुम्हारे बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। अंबिका, सदा प्रसन्न रहना आपका स्वाभाविक गुण है। आप मुझ पर प्रसन्न हों।

हरिप्रिया जब तक मुझे तुम्हारा दर्शन नहीं मिला था तभी तक मैं बंधुहीन, भिक्षुक और संपत्तियों से शून्य था, किंतु अथ मुझे ज्ञान, धर्म, अखिल, अभीष्ट, सौभाग्य, प्रभाव, प्रताप, सर्वाधिकार, परम ऐश्वर्य, पराक्रम और युद्ध में विजय प्राप्त होनी चाहिए।

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