लक्ष्मी कवच | Laxmi Kavach

Table of Contents (संक्षिप्त विवरण)

Laxmi Kavach

|| लक्ष्मी कवच ||

विश्वसार तंत्र में लक्ष्मी कवच का वर्णन है। इस कवच पाठ से पहले विनियोग इस प्रकार करना चाहिए –

अस्याश्चतुरक्षरी विष्णुवनितायाः कवचस्य श्री भगवान शिव ऋषि: अनुष्टुप
छंदो, वाग्भवी देवता, वाग्भव बीजं, लज्जा शक्तिः, रमा कीलकं काम बीजात्मकं
बीजं मम सुकवित्व सुपाण्डित्य सर्व सिद्धि समृद्धये विनियोगः ।

विनियोग के बाद लक्ष्मी कवच का पाठ इस प्रकार करना चाहिए –

ऐँकारो मस्तके पातु वाग्भवी सर्व सिद्धिदा,
हीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षुर्युग्मे च शांतरी ।
जीहायां मुखवृत्ते च कर्णयोर्गण्डयोर्नसि,
ओष्ठाधरे दंतपंक्तो तालु मूले हनौ पुनः।।
पातु माम विष्णु वनिता लक्ष्मीः श्री वर्ण रूपिणी,
कर्णयुग्मे भुजद्ंद्धे स्तनद्ंद्धे च पार्वती।
हृदये मणिबंधे च ग्रीवायां पाश्र्वयो: पुनः,
पृष्ठदेशे तथा गुहो वामे च दक्षिणे तथा |।
उपस्थे च नितंबे च नाभौजंघाद्ये पुनः,
जानु चक्रे पद्ंदे घुटिके अंगुलि मूलिके।
स धातु प्राणशक्त्यात्म सीमान्यां मस्तके पुनः,
सर्वाङ्गे पातु कामेशीमहादेवी समुन्न्ति: ।।
व्युष्टिः पातु महामाया उत्कृटि: सर्वदाऽवतु,
ऋद्धिः पातु सदा देवी सर्वत्र शंभु वल्लभा ।
वाग्भवी सर्वदा पातु, पातु माम हर्गेहिनी,
रमा पातु सदा देवी पातु माया सुराट् स्वयं ।।
सरड्गे॰ पातु माम लक्ष्मी विष्णु माया सुरेश्वरी,
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम् ।
शिवदूती सदा पातु सुंदरी पातु सर्वदा,
भैरवी पातु सर्वत्र भेरुण्डा सर्वदाऽवतु ।।
त्यरिता पातु माम नित्यं उग्रतारा सदाऽवतु,
पातु माम कालिका नित्यं काल रात्रिः सदाऽवतु ।
वन दुर्गा सदा पातु कामाख्या सर्वदाऽवतु,
योगिन्यः सर्वदा पांतु मुद्रा पांतु सदा मम ||
मात्राः पांतु सदा देव्यश्चक्रस्था योगिनी गणाः,
सर्वत्र सर्व कार्येषु सर्व कर्मसु सर्वदा ।
पातु माम देव देवी च लक्ष्मीः सर्व समृद्धि दा||

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