सर हम्फ्री डेवी की जीवनी | सर हम्फ्री डेवी के आविष्कार | Sir Humphry Davy Invention | Sir Humphry Davy in Hindi

सर हम्फ्री डेवी की जीवनी | सर हम्फ्री डेवी के आविष्कार | Sir Humphry Davy Invention | Sir Humphry Davy in Hindi

पिछली सदी के आरंभ तक कोयला खानों में मिथेन गैस में आग लग जाने से अनेक दुर्घटनाएं होती थी । इन दुर्घटनाओं का कारण मुख्य रूप से वे लैम्प थे, जो खानों में रोशनी करने के लिए प्रयोग होते थे ।

आग लगने से खानों में काम करने वाले अनेक मजदूर मौत के घाट उतर जाते थे । आग लगने की इन दुर्घटनाओं से मुक्ति दिलाई सर हम्फ्री डेवी (Sir Humphry Davy) के अभयदीप (Safety Lamp) ने, जिसका आविष्कार उन्होंने सन् १८१५ में किया था ।

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सर हम्फ्री डेवी उन दिनों ब्रिटेन के जाने-माने रसायनज्ञ थे । उन्होंने इस समस्या पर विचार किया और एक ऐसा सुरक्षित लैंप विकसित करने का इरादा किया, जो आक्सीजन को तो अंदर ले सके, लेकिन उसकी लौ से पैदा होने वाली गर्मी के कारण कोयला खानों में आग न लगे । उन्हें पता था कि किसी भी लैम्प की लौ को जलने के लिए आक्सीजन का होना अनिवार्य है लेकिन लौ से निकलने वाली ऊष्मा के कारण इसके चारों ओर उपस्थित ज्वलनशील गैस में सामान्यतः आग लग जाएगी । उनके मस्तिष्क में यह विचार आया कि यदि तेल से जलने वाली लैंप की लौ को किसी तार की जाली से चारों ओर से घेर दिया जाए तो आग लगने की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है । उन्हें पता था कि जाली में से लौ तक वायु तो पहुंच सकती है लेकिन लौ से पैदा होने वाली गर्मी बाहर की गैसों के सम्पर्क में आने से पहले ही जाली के तार की ऊष्मा चालकता के कारण समाप्त हो जाएगी । इस प्रकार की व्यवस्था में लैम्प से निकलने वाला प्रकाश तो थोड़ा सा जरूर कम हो गया लेकिन जाली से निकलने वाला प्रकाश खानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए फिर भी काफी था । सर हम्फ्री डेवी द्वारा निर्मित इस प्रकार के लैम्प आज भी प्रयोग किए जाते हैं । यद्यपि विद्युत बल्ब के आविष्कार के बाद इनका प्रयोग काफी कम हो गया है ।

आजकल इन लैम्पों का प्रयोग मुख्य रूप से खतरनाक गैसों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है क्योंकि इन लैम्पो की लौ पर ज्वलनशील गैसों का प्रभाव पड़ता है ।

सर हम्फ्री डेवी के आविष्कार केवल अभयदीप तक ही सीमित नहीं थे । उन्होंने अपना वैज्ञानिक जीवन सन् १७९७ से आरम्भ किया । इन्होंने अपने को जोखिम में डालकर रोगियों को बेहोश करने के लिए काम में आने वाले पदार्थ नाइट्रस आक्साइड (Nitrous Oxide) यानि लाफिंग गैस पर बहुत से अनुसंधान किए । सर हम्फ्री डेवी ने गैसों की कुछ मात्राए तैयार की और उसे एक रेशमी थैले में बंद कर नाक को बिना बंद किए, उसमें बांध एक मिनट तक सांस ली । पहले उन्हें चक्कर आने लगा और बाद में वे अचेत हो गए । गैस में कुछ और अधिक देर तक सांस लेने के बाद उन्हें ऐसा लगा जैसे वे हंस रहे हो । उन्हें यह अवस्था बहुत ही आनन्ददायक लगी । शीघ्र ही वे बेहोश हो गए और उन्हें लगा कि जैसे वे एक नयी दुनिया में पहुंच गए हो ।

लॉफिंग गैस में सांस लेने के आनंद का समाचार चारों ओर फैल गया । इस गैस में सांस लेने के लिए एक महिला को राजी किया गया । कुछ देर सांस लेने के बाद वह युवती मकान से बाहर निकल कर दौड़ लगाती हुई एक कुत्ते के ऊपर से कूद गई । सौभाग्यवश उसे एक व्यक्ति ने पकड़कर बचा लिया ।

इस गैस के आविष्कार के साथ सर हम्फ्री डेवी का यश लन्दन तक फैल गया । इस आधार पर सन् १८०० में उन्हें रॉयल इंस्टीट्यूट में प्राध्यापक नियुक्त किया गया । उन्होंने इस गैस के गुणों के विषय में एक सार्वजनिक व्याख्यान दिया । कुछ श्रोताओं ने गैस में सांस ली और एक विशेष अनुभव का आनंद प्राप्त किया ।

कई वर्षों तक इस गैस का उपयोग मनोविनोद सम्बन्धी पार्टियों में होता रहा । झगड़ाल पत्नियों का इलाज करने के लिए इस गैस को प्रयोग में लाया जाने लगा । एक पार्टी में हौरास वेल्स नामक एक दंत चिकित्सक ने इस गैस को सुंधा । उसी पार्टी में उस डाक्टर ने देखा कि जिस नवयुवक को यह गैस दी गई थी, वह एक बैंच से टकराया जिससे उसकी पिडली की खाल उतर गई लेकिन उस नवयुवक को चोट का कुछ पता न लगा । इस घटना से वेल्स को विश्वास हो गया कि इस गैस को बिना दर्द हुए दांत निकालने के लिए प्रयोग किया जा सकता है । शीघ्र ही गैस को बिना दर्द के दांत निकालने के लिए प्रयोग किया जाने लगा । इतना ही नहीं बाद में अनेक सर्जन आपरेशन के लिए इस गैस को मरीजों को बेहोश करने के लिए प्रयोग करने लगे । आज भी इस गैस का व्यापक रूप से इस काम के लिए प्रयोग होता है ।

लन्दन के रॉयल इन्स्टीट्यूशन के अनुसंधानकर्ता और वैज्ञानिक के रूप में उनकी ख्याति विश्व भर में फैल गई । उन्होंने धातु रंजन, कृषि रसायन और वोल्टीय सैलों पर काफी अनुसंधान किए, जिनसे उन्हें और भी अधिक मान्यता प्राप्त हुई ।

सन् १८६० में उन्होंने सोडियम और पोटेशियम को विद्युत विश्लेषण द्वारा प्राप्त किया और सन् १८०९ में इसी विधि से उन्होंने दूसरी धातु प्राप्त की । सुहागे (Borex) को पोटाशियम के साथ गर्म करके उन्होंने बोरोन प्राप्त की । उन्होंने क्लोरीन की रंग उड़ाने की क्रिया को समझाया और यह सिद्ध किया कि क्लोरीन एक तत्व है ।

सन् १८१३ में प्रसिद्ध वैज्ञानिक फैराडे ने इनके सहायक के रूप में काम करना आरम्भ किया । इसी वर्ष ये दोनों यूरोप की यात्रा पर निकले । इस यात्रा के दौरान इन्होंने आयोडीन का अध्ययन किया और यह सिद्ध किया कि हीरा कार्बन का ही एक रूप है । बाद के वर्षों में फैराडे के साथ इनके द्वारा किए गए अनुसंधान मुख्यतः विद्युत चुम्बकत्व से सम्बन्धित थे । बाद में इन दोनों वैज्ञानिकों में काफी मतभेद हो गया था ।

सर हम्फ्री डेवी ने एलिमेन्ट्स ऑफ कैमकल फिलॉसफी (Elements of chemical Philosophy) नामक पुस्तक का प्रथम खंड प्रकाशित कराया । इन्होंने ज्वालामुखियों के फटने और समुद्री पानी में तांबे की उपस्थिति के सम्बन्ध में भी अध्ययन किया ।

डेवी को अपने जीवनकाल में अनेक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किये गए । सन् १८१२ में इन्हें ‘सर’ की उपाधि से विभूषित किया गया । सन् १८२० में इन्हें रॉयल सोसायटी का अध्यन चुना गया ।

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