भैरव जयंती | भैरव अष्टमी पूजन | Bhairav Ashtami Puja Vidhi | Bhairava Jayanti

Bhairav Ashtami Puja Vidhi

Table of Contents (संक्षिप्त विवरण)

Bhairav Ashtami Puja Vidhi

मार्गशीर्ष मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को भैरव जयन्ती मनाई जाती है ।  इसे कालाष्टमी भी कहते हैं । इस तिथि को भैरवजी का जन्म हुआ था । इस दिन व्रत रखकर अर्घ्य देकर भैरवजी का पूजन करते हैं ।

भैरवजी की सवारी कुत्ता है । इसलिए कुत्ते का भी पूजन करते हैं । रात्रि जागरण करके शिव-पार्वती की कथा सुननी चाहिए । भैरवजी का मुख्य हथियार दण्ड है । इस कारण इन्हें दण्डपति भी कहते हैं ।

भगवान शिव के दो रूप हैं – भैरव और विश्वनाथभैरव का दिन रविवार और मंगलवार माना जाता है । इन दोनों दिन इनकी पूजा से भूत-प्रेत बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं ।

भैरव अष्टमी पूजन

एक बार ब्रह्मा तथा विष्णु में यह विवाद छिड़ गया, कि विश्व का धारणहार तथा परमतत्व कौन है ? इस विवाद को हल करने के लिए महर्षियों को बुलाया गया । महर्षियों ने निर्णय दिया कि, परमतत्व कोई अव्यक्त सत्ता है । ब्रह्मा तथा विष्णु उसी विभूति से बने हैं । विष्णुजी ने ऋषियों की बात मान ली । परन्तु ब्रह्माजी ने यह स्वीकार नहीं किया । वे अपने को ही परमतत्त्व मानते थे । परमतत्त्व की अवज्ञा बहुत बड़ा अपमान था ।  शिवजी ने तत्काल भैरव का रूप धारण करके ब्रह्मा का अष्टमी के दिन गर्व चूर-चूर कर दिया । इसलिए इस दिन को भैरव अष्टमी कहा जाने लगा ।

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