उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को रखा जाता है, इस दिन भगवान की पूजा का विधान है । एकादशी का व्रत रखने वाले दशमी के दिन शाम को भोजन नहीं करते ।
एकादशी के दिन ब्रह्मवेला में भगवान श्रीकृष्ण की पुष्प, जल, धूप, अक्षत से पूजा की जाती है । इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है । यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेवों का संयुक्त अंश माना जाता है । यह अंश दत्तात्रेय के रूप में हुआ था । यह मोक्ष देने वाला व्रत माना जाता है ।
उत्पन्ना एकादशी की कथा | Utpanna Ekadashi Vrat Katha
सतयुग में एक बार मुर नामक दैत्य ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इन्द्र का अपदस्थ कर दिया । देवता भगवान शंकर की शरण में पहुँचे । भगवान शंकर ने देवताओं को विष्णुजी के पास भेज दिया ।
विष्णुजी ने दानवों को भी परास्त कर दिया परन्तु मुर भाग लिया । विष्णु ने मुर को भागता देखकर लड़ना छोड़ दिया और बद्रिकाश्रम की गुफा में आराम करने लगे । मुर ने वहाँ पहुँचकर विष्णुजी को मारना चाहा । तत्काल विष्णुजी के शरीर से एक कन्या का जन्म हुआ जिसने मुर का वध कर दिया ।
उस कन्या ने विष्णुजी को बताया – मैं आपके अंश से उत्पन्न शक्ति हूँ । विष्णुजी ने प्रसन्न होकर उस कन्या को आशीर्वाद दिया कि – तुम संसार में माया जाल में उलझे तथा मोह के कारण मुझसे विमुख प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम होगी । तुम्हारी आराधना करने वाले प्राणी आजीवन सुखी रहेंगे । यही कन्या एकादशी कहलाई । वर्ष की 24 एकादशीयों में यही एकादशी ऐसी है जिसका माहात्म्य अपूर्व है ।