चन्द्रायन व्रत | चान्द्रायण व्रत विधि | Chandrayan Vrat Vidhi | Chandrayan Vrat Katha

चन्द्रायन व्रत

चन्द्रायन व्रत | चान्द्रायण व्रत विधि | Chandrayan Vrat Vidhi | Chandrayan Vrat Katha

चन्द्रायन व्रत पूर्णमासी से माह के समाप्त होने की पूर्णमासी तक करते हैं । यह व्रत पूर्णमासी से करें और यह ध्यान रखें कि प्रथम दिन एक-एक मक्का का हलवा बनाकर उसका केवल एक ग्रास ग्रहण करें और प्रतिदिन एक-एक ग्रास बढ़ाते जाएँ अर्थात् प्रथम दिन एक, दूसरे दिन दो इस प्रकार पन्द्रह दिनों तक पन्द्रह ग्रास तक करके व्रत करें । अब उतरते क्रम में करें अर्थात् अमावस्या के दूसरे दिन से घटते हुए एक-एक ग्रास कम करें । पन्द्रह-चौदह-तेरह ऐसे। यह अन्तिम पूर्णिमा तक करें। इस प्रकार यह मास पूर्ण करें । इस व्रत में चन्द्रमा एवं रोहिणी की पूजा-अर्चना करें । अन्त में ब्राह्मण एवं ब्राह्मणी को भोजन कराकर उन्हें शृंगार सामग्री – पाँच बर्तन, धोती, कुर्त्ता आदि अथवा अपनी श्रद्धा अनुसार दान दें ।

कार्तिक की कहानी | Kartik Maas Ki Kahani


एक बुढ़िया थी । वह कार्तिक नहाने को जाने लगी । तब उसके बेटे ने अपनी पत्नी से कहा कि – माँ के लिए तीस लड्डू बना दो और कुछ खाने का सामान भी बाँध दो ताकि पूजा-पाठ करके माँ कुछ खा-पी सकें । तब बहू ने जल-भूनकर तीस लड्डू बाँध दिये और बुढ़िया कार्तिक नहाने के लिए चली गयी ।

नदी किनारे कुटिया बनाकर रहने लगी । बुढ़िया रोज सुबह उठकर नहा-धोकर पूजा-पाठ करके जब लड्डू खाने बैठती तब हनुमान जी बंदर बनकर उसके सामने प्रकट होते तब बुढ़िया खुश होकर बन्दर को लड्डू खिला देती । इस प्रकार वह बन्दर रोज आकर बुढ़िया के लड्डू खा जाता ।

कार्तिक महीना समाप्त होने पर हनुमानजी प्रकट हुए और बुढ़िया की कुटिया महल बन गई । उस महल में धन-दौलत व अन्न के भण्डार भर गए । बुढ़िया निरोगी हो गई और वह बहुत धूम-धाम से अपने बेटे के पास धन-दौलत लेकर गई । तब वह बहू कहने लगी कि – अगले कार्तिक में मैं भी अपनी माँ को नहलाऊँगी ।

आया कार्तिक का महीना । उसने खूब सारा घी, मेवा डालकर लड्डू बनाए और अपनी माँ को तीस लड्डू बाँध दिये और माँ कार्तिक नहाने गई । वह रोज सुबह-सुबह उठकर लड्डू खाने बैठ जाती तब हनुमान जी बन्दर बनकर उसके सामने आते तो वह पत्थर मारकर कहती कि – मेरा ही पेट नहीं भरा तुम्हें कहाँ से दूँ ? इस प्रकार वह रोज सुबह-सुबह खाने बैठ जाती थी ।

कार्तिक मास के समाप्त होने पर हनुमान जी प्रकट हुए और उसकी कुटिया कचरे के ढेर में बदल गई और बुढ़िया डूकर बन गई । उसकी बेटी अपने पति से कहने लगी कि-कार्तिक महीना समाप्त हो गया है । मेरी माँ को बैंड बाजे के साथ धूम-धाम से लेकर आओ ।

जब वह अपनी सास को लेने नदी किनारे गया तब देखता है, ना तो वहाँ सास है ना ही कुटिया । कुटिया की जगह कचरे का ढेर है । उस ढेर पर बुढ़िया डूकर बनकर घूम रही है । तब हनुमान जी प्रकट होते हैं और कहते हैं कि बेटा ! तुम्हारी माँ ने सत से कार्तिक नहाया था, पूजा-पाठ करी थी, इसलिए तुम्हारी माँ पर कार्तिक देवता बरसे और यह बुढ़िया पापी मन से यहाँ रहती थी । इसने कार्तिक महीने में बेटी के घर का अन्न खाया, इसलिए कार्तिक देवता इस पर रुष्ट हो गए और यह डूकर बन गई । कार्तिक देवता जैसे माँ पर बरसे वैसे सब पर बरसें ।

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