शनिवार व्रत कथा । शनि व्रत कथा और पूजन विधि | Shanivar Vrat Katha

शनिवार व्रत कथा । शनि व्रत कथा और पूजन विधि | Shanivar Vrat Katha

एक ब्राम्हण हो वो रोज भगवान की पूजा करतो । गंगाजी न्हावण जावतो । एक दिन शनि भगवान मिल्या और बोल्या म्हे थन लागूं । यान रास्ता म बीन रोज केंवता । ब्राम्हण दुबलो होबा लागग्यो,

एक दिन ब्राम्हणी पूछी थे दुबला क्यान होबा लागग्या । म्हे तो थाने चोखी रोटी घालू हूँ। ब्राम्हण बोल्यो म्हारा मन की बात कुण सुण |काला कपड़ा पेरयोडो, तेल म भिग्योडो रोज बोल म्हे थन लागूं ब्राम्हणी बोली वे तो शनि महाराज है।

ब्राम्हणी बोली बाने बोलजो आज लाग जावो। ब्राम्हण न्हावण न जा रहयो हो शनि महाराज रोज की ज्यान बोल्या कि म्हे थन लागूं । ब्राम्हण बोल्यो रोज रोज कांई बोलो आज लाग जावो । शनि भगवान बोल्या साढे सात साल को लागू । ब्राम्हण बोल्यो सहन कोनी होय संवा बरस को लागूं । ब्राम्हण बोल्यो सहन कोनी होव । सवा महिना को लागूं । ब्राम्हण बोल्यो सहन कोनी होव । शनि भगवान बोल्या सवा घण्टा को तो कोई न भी कोनी छोड़ू। ब्राम्हण आपकी लुगाई न बोल्यो आज म्हने शनि भगवान की दशा लागणे वाली हैं । तू घर म ही रेईजे । टाबरां न भी घर म राखीजे । काला कुत्ता न रोटी डालीजे । चीलां न गुलगुला, बडा बणार डालीजे म्हे गंगाजी क तीर तपस्या करण जावूं ।

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ब्राम्हण तपस्या करण बैठग्यो । नदी म दो काकडी दो मतोरा बेवता जा रहया हा| ब्राम्हण सोच्यो काकडी को साग करां मतीरा को राइतो बणावा नदी म सूं निकालर गोडा हेट रख लिया । अठिन राजा को कंवर शिकार खेलण गयो हो पाछो कोनी आवो। खूब सम्भालो करयो मिलयो कोनी । पूरा गांव का लोगा न पूछया ब्राम्हण के घर गया ब्राम्हणी न पूछया गुरुजी कठ है ? ब्राम्हणी बोली गंगाजी की तीर पर तपस्या करण गया हैं । सिपाही गंगाजी का तीर गुरुजी न देखण गया आगे देख तो गुरुजी ध्यान लगार बैठया हा ।

सिपाही बोल्या गुरुजी गोडा क नीचे कांई हैं ? देख्या तो गोडा क नीचे राजकुंवर की मुंडी ही लोठो खून से भरयोडो हो । सिपाही राजा न जार बोल्या महाराज ब्राम्हण जूलुम कर दियो वो राजकुंवर न मार न्हाक्यो । राजा पूछयो न ताछयो ब्राम्हण न फांसी (सूली) को हुकुम दे दियो। राजा का नौकर ब्राम्हण न सूली पर चढ़ावण लाग्या तो सूली चढ़ कोनी । सूली सोना की होयगी तेल का घडा म शनि महाराज राजा न दर्शन दिया ।

बोल्या म्हारा गुरुजी न म्हे ही मारु म्हे ही दण्ड देवूं दण्ड देने वाला थे कूण हो। जिता म सवा पहर दिन चढ चुक्यो हो। ब्राम्हण की सवा पहर की महादशा उतर चुकी थी । राजा का कुंवर शिकार खेलर खमा खमा करता पाछा घर आयग्या । राजा बोल्यो म्हे तो ब्राह्मण न सूली को हुकुम दे दियो हो। प्रायश्चित कठ उतारुं | राजा खुला केसां, नंगा पांव ब्राह्मण क जार पगां पडयो । राजा बोल्यो गुरुजी थ्हाने ईशी दशा क्यान होयगी ।

ब्राह्मण बोल्यो म्हने सवा पहर की शनि की दशा आयी ही । जिकासूं तीन युग बता दिया। जदे राजा ब्राह्मण न पूछयो म्हाने आव तो म्हे कांई करणू ब्राह्मण बोल्यो खूब अन्न, धन, सोनो, चांदी दान देणू। ब्राह्मण भोजन कराणू । तेल को दान करणू । शनि भगवान की पूजा करणू राजा पूछयो कोई गरीब गुरबा न आव तो बो क्यान करणू। ब्राम्हण बोल्यो गरीब गुरबा न आवे तो बो पीपल सींचणू । कूं कूं चांवल, गुड सूँ पीपल की पूजा करणू । काला कुत्ता न रोटी देणू । डाकोत्या न तेल और पेइसा देणू । कीडी नगरो सींचणू । सात बार शनि देवता को नाम लेवणू ।

शनि शनि केव तो सत्तर पीडा टल जाव । हे शनि देवता राजा का कष्ट टाल्या ज्यान सबका कष्ट टालिजो ब्राम्हण क दशा लागी ब्यान कोई क भी मती लागीजो

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