कार्तिक मास की कथा | Kartik Maas Ki Katha

कार्तिक मास की कथा

कार्तिक मास की कथा | Kartik Maas Ki Katha

कार्तिक मास की कथा | कार्तिक मास का महत्व | कार्तिक मास के नियम | कार्तिक स्नान के नियम | कार्तिक स्नान की विधि

कार्तिक मास में हिन्दुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार दीपावली आता है । यह त्यौहार भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के चौदह वर्षों के वनवास के पश्चात् वापस अयोध्या लौटने पर उनका स्वागत पूरे राज्य में दीए जलाकर किया गया था । तभी से दीपावली मनाई जाती है । कार्तिक माह में आने वाले तीज-त्यौहार एवं व्रत निम्नलिखित हैं –

कार्तिक स्नान एवं व्रत


कार्तिक माह में स्नान का अपना विशेष महत्व है । साथ ही इसके अन्तर्गत आने वाले व्रत भी करने पर मनोवांछित फल प्राप्त होता है ।

कार्तिक माह में विशेषकर सोमवार को पवित्र नदियों-गंगा, यमुना आदि में स्नान करना विशेष महत्वपूर्ण है । स्नान के पश्चात् पाँच स्वच्छ पत्थरों को पथवादी के रूप में स्थापित करें और उनकी पूजा-अर्चना करें एवं राधा-कृष्ण की, पीपल के वृक्ष की एवं तुलसी की पूजा करें । कार्तिक मास की कहानी का श्रवण करें अथवा पढ़े ।

इस माह में यह प्रमुख व्रत करें

नारायण-तारायण


इस व्रत को करके स्नानादि के पश्चात् तारों को अर्घ्य दे तत्पश्चात् भोजन करें । अगले दिन दोपहर में भोजन करना चाहिए एवं तीसरे दिन भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए । इसी क्रम को अपनाकर यह व्रत सम्पूर्ण मास तक करें ।

तारा भोजन


कार्तिक मास के प्रारम्भ से लेकर पूर्ण माह तक व्रत करते हैं । प्रतिदिन रात्रि को तारों को अर्घ्य देकर भोजन करते हैं । व्रत के अन्तिम दिन उजमन करते हैं । उजमन में पाँच सीधे, पाँच सुराही ब्राह्मण को देते हैं तथा एक साड़ी ब्लाउज पर रुपये रखकर सास के चरण-स्पर्श करके देना चाहिए ।

छोटी-बड़ी साँकली


छोटी एवं बड़ी सांकली कार्तिक मास के पूर्णमासी से करते हैं । छोटी व बड़ी साँकली में अन्तर यह है कि छोटी साँकली में एक दिन निराहार रहकर दो दिन भोजन करें । इसके बाद एक दिन फिर भोजन न करें । इसके बीच में रविवार या एकादशी निराहार रहकर एक दिन भोजन करते हैं । बड़ी साँकली में एक दिन नीराहार रहकर एक दिन भोजन करते है | यह क्रम चलता रहता है पूरे कार्तिक मास तक ।

व्रत पूरे होने पर हवन और उजमन करते हैं । उजमन में 33 ब्राह्मणों और एक ब्राह्मण-ब्राह्मणी को भोजन कराना चाहिए । सासूजी को पैर स्पर्श करके साड़ी ब्लाउज पर ग्यारह रुपये रखकर दें ।

चन्द्रायन व्रत


चन्द्रायन व्रत पूर्णमासी से माह के समाप्त होने की पूर्णमासी तक करते हैं। यह व्रत पूर्णमासी से करें और यह ध्यान रखें कि प्रथम दिन एक-एक मक्का का हलवा बनाकर उसका केवल एक ग्रास ग्रहण करें और प्रतिदिन एक-एक ग्रास बढ़ाते जाएँ अर्थात् प्रथम दिन एक, दूसरे दिन दो इस प्रकार पन्द्रह दिनों तक पन्द्रह ग्रास तक करके व्रत करें । अब उतरते क्रम में करें अर्थात् अमावस्या के दूसरे दिन से घटते हुए एक-एक ग्रास कम करें । पन्द्रह-चौदह-तेरह ऐसे । यह अन्तिम पूर्णिमा तक करें । इस प्रकार यह मास पूर्ण करें । इस व्रत में चन्द्रमा एवं रोहिणी की पूजा-अर्चना करें । अन्त में ब्राह्मण एवं ९ब्राह्मणी को भोजन कराकर उन्हें शृंगार सामग्री – पाँच बर्तन, धोती, कुर्ता आदि अथवा अपनी श्रद्धा अनुसार दान दें ।

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