फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले | Friedrich August Kekule

फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले | Friedrich August Kekule

रसायन विज्ञान पढ़ने वाला हर विद्यार्थी फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले के नाम से भलीभांति परिचित है । आरम्भ में इनका नाम फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले था । लेकिन बाद में इन्होंने अपने नाम के साथ वॉन स्ट्रॉडोनिज़ (Von Stradonitz) और जोड़ दिया । उन्होंने कार्बनिक रसायनशास्त्र में बहुत से महत्त्वपूर्ण आविष्कार किए । फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले का जन्म ७ सितंबर १८२९ को हुआ था |

फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले ने ऐसी बहुत सी आकृतियों की रचना की, जिनसे यह प्रदर्शित होता है कि किसी अम्ल में परमाणु एक दूसरे से किस प्रकार जुड़े होते हैं । इस तरीके को उपयोग में लाकर उन्होंने यह बताया कि कार्बन के परमाणुओं की संयोजकता (Valency) 4 होती है ।

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फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले ने यह भी आविष्कार किया कि कार्बन के परमाणु एक दूसरे के साथ तीन विधियों से बंध सकते हैं – खुली श्रृंखलाओं में, बंद श्रृंखलाओं में और वलयाकार संरचनाओं में । इस आविष्कार ने दूसरे वैज्ञानिकों को नए पदार्थों के निर्माण करने का रास्ता दिखाया । वास्तव में यह अपने-आप में एक महत्त्वपूर्ण अनुसंधान था । इसके कारण ही बाद में वैज्ञानिक ७,००,००० से भी अधिक कार्बन यौगिकों का निर्माण करने में सफल हो सके ।

बैन्जीन की फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले के विषय में एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी है । इस कहानी से कुछ लोग स्वप्नों की सार्थकता पर विश्वास का दावा भी करते हैं । कहा जाता है कि फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले संरचना की खोज में लगे हुए थे । उनके मस्तिष्क में यह समस्या बुरी तरह घर कर गई थी ।

बैन्जीन एक जाना-माना कार्बनिक पदार्थ है और औद्योगिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । सन् १८६५ में वे यह पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि इस यौगिक में कार्बन के परमाणु किस प्रकार एक दूसरे से जुड़े रहते हैं । वैज्ञानिकों को तब तक यह तो पता था कि बैन्जीन के एक अणु में कार्बन के ६ परमाणु होते हैं लेकिन वे एक दूसरे से किस प्रकार जुड़े रहते हैं इसका किसी को भी पता नहीं था । कहा जाता है कि एक रात फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले को एक स्वप्न दिखाई दिया । इस स्वप्न में उन्होंने एक सांप देखा, जिसने अपनी पूंछ को मुंह में ले रखा था । इस स्वप्न से इनके मन में विचार आया कि शायद बैन्जीन के अणु में परमाणुओं की व्यवस्था एक वृत्ताकार रूप में है । इसी स्वप्न के आधार पर बैन्जीन के अणु में कार्बन के ६ परमाणुओं की वृत्ताकार रूप में व्यवस्थित होने की संकल्पना सिद्ध की गई ।

एक दूसरी कहावत के अनुसार यह माना जाता है कि इसी समस्या के विषय में फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले अपनी प्रयोगशाला में काम कर रहे थे । इनकी प्रयोगशाला में एक अंगीठी भी जल रही थी । दोपहर का समय था, काम करते-करते फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले थक गए थे । कुछ देर आराम करने के लिए वे अपनी कुर्सी पर बैठ गए । बैठे-बैठे थोड़ी ही देर में उन्हें नींद की झपकी आ गई । नींद में उन्हें एक स्वप्न दिखाई दिया । उन्होंने स्वप्न में देखा कि कार्बन के छः परमाणु उनकी प्रयोगशाला की अंगीठी की लपटों में एक दूसरे के साथ चारों ओर नाच रहे हैं । नाचते-नाचते अचानक ही ये परमाणु एक वृत्ताकार संरचना में व्यवस्थित हो गए ।

थोड़ी ही देर में जब फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले की आंख खुली तो उन्होंने स्वप्न की घटना के विषय में सोचा । उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हो न हो कि बैन्जीन में कार्बन के छः परमाणु एक वृत्त में व्यवस्थित हैं । इसके ऊपर उन्होंने प्रयोगात्मक कार्य आरम्भ कर दिया । प्रयोगों से कैकले ने निष्कर्ष निकाला कि बैन्जीन की संरचना बिल्कुल ऐसी ही है जैसी कि उसने स्वप्न में देखी थी । इस प्रकार स्वप्न के आधार पर फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले ने बैन्जीन की संरचना स्थापित करके एक बहुत बड़ी समस्या सुलझाई ।

इस कहानी में कितना सत्य है उसके विषय में कुछ भी कहना कठिन है लेकिन इतना निश्चित है कि फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले किसी भी समस्या के समाधान में इतने ध्यानमग्न हो जाते थे कि उन्हें उस समस्या के विषय में सपने तक आने लगते थे । वास्तविकता तो यह है कि यह बात केवल कैकले के विषय में ही सत्य नहीं है बल्कि अधिकतर वैज्ञानिक समस्याओं के समाधान में इतने निमग्न हो जाते हैं कि उन्हें स्वप्न में भी वही समस्याएं दिखाई देने लगती | यद्धपि उन्होंने आर्कीटेक्ट (Architect) बनने के इरादे से गीज़ल विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया था, लेकिन वहां वे जस्टस वान लीविग (Justus Von Liebig) से बहुत अधिक प्रभावित हुए और रसायनशास्त्र के अध्ययन में लग गए ।

सन् १८५२ में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने पेरिस में अध्ययन आरम्भ किया । यहीं वे चार्ल्स फ्रैंड्रिक गर्हार्ड के सम्पर्क में आए और कार्बनिक पदार्थों की संरचना के विषय में अपने विचारों का विकास किया ।

सन् १८५६ में वे हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय में रसायनशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हुए और सन् १८५८ में बेल्जियम के गेन्ट (Ghent) बिश्वविद्यालय में रसायनशास्त्र के प्रोफेसर बने। सन् १८६५ में वे बॉन आ गए ।

भवन निर्माण कला के क्षेत्र में उनकी आरम्भिक शिक्षा का, निश्चय ही संरचना सम्बन्धी सिद्धांतों को विकसित करने में काफी योगदान रहा । उन्होंने बहुत से कार्बनिक पदार्थों की संरचना प्रस्तुत की । उन्होंने मर्करी (Mercury) फलमीनेट, असंतृप्त अम्लों और थायो अम्लों पर महत्त्वपूर्ण अनुसंधान किए । उन्होंने कार्बन रसायनशास्त्र की चार पुस्तकें भी लिखी । काफी गौरव प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपने नाम के साथ वॉन स्ट्रॉडोनिज और जोड़ दिया।

फ्रेडरिक ऑगस्ट केकुले जीवन भर रसायन विज्ञान के अनुसंधानों में लगे रहे । विज्ञान की सेवा करते-करते १३ जुलाई, १८६९ को इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु हो गई ।

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