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आहत सिक्के क्या है | सिक्कों से संबंधित प्रश्न | History of Coins
आदिकालिक ये आहत-मुद्राएँ बहुत बडी मात्रा में और देश में लगभग सर्वत्र बिखरी मिली हैं । इनमें प्राचीनतम सिक्के तो वे हैं जो किसी स्थान अथवा प्रदेश विशेष तक ही सीमित रहे; उन्हें उन जनपदों अथवा महाजनपदों ने प्रचलित किये होंगे जो महाभारत युद्ध (ई. पू. ग्यारहवीं शती) के बाद बच रहे थे और जिन्हें पीछे मगघ साम्राज्य ने आत्मसात् कर लिया । इस मगध साम्राज्य का उदय ई. पू. पाँचवीं शती में हुआ और ई. पू. चौथी शती आते-आते वह लगभग सारे देश पर छा गया ।
जिन जनपदों के सिक्के ज्ञात हो पाये हैं वे हैं – शूरसेन (मथुरा के आसपास फैली व्रज- भूमि), उत्तर पंचाल (रुहेलखण्ड का क्षेत्र), दक्षिण पंचाल (गंगा से चम्बल तक विस्तृत दो-आब का भाग), वत्स (गंगा के दक्षिण अवन्ति अथवा उज्जैन की सीमा तक फैला भू-भाग), कोसल (पश्चिम में गोमती, दक्षिण में सपिका आधुनिक सई, पूर्व में सदानीरा आधुनिक गण्डक और उत्तर में नेपाल के पर्वतों से घिरा भू-भाग), काशी (वाराणसी के चारों ओर स्थित भूभाग जिसमें जौनपुर, गाजीपुर और मिर्जापुर जिलों का भाग सम्मिलित है), मल्ल (देवरिया जिला और उससे लगा गोरखपुर जिले का भूभाग), मगध (उत्तर में गंगा, पश्चिम में सोन, दक्षिण में छोटा नागपुर के पठार तक फैला वन-प्रान्त, ओर पूरब में भागलपुर के क्षेत्र से घिरा भूभाग), बंग (बंगाल), कॉलंग (उड़ीसा में वैतरणी से लेकर आंध्र की सीमा तक का समुद्रीय तटवर्ती प्रदेश जो पश्चिम में अमरकण्टक के पर्वतीय वन-प्रदेश तक विस्तृत था), आंध्र (कृष्णा और गोदावरी का काँठा), अश्मक (गोदावरी के दक्षिण महाराष्ट्र का भूभाग), सुराष्ट्र (काठियावाड़ प्रदेश) और गन्धार (अफगानिस्तान की सीमा से लगा पश्चिमोत्तर प्रदेश) |
इन जनपदों में से कुछ अथवा सभी ब्राह्मण और उपनिषद्-काल में (ई. पू. आठवीं शती के आसपास) हिरण्य के रूप में धातु का प्रयोग करते रहे होंगे ।
तदनन्तर किसी समय इनमें से किसी एक जनपद में सिक्कों की कल्पना उद्भूत हुई होगी । किन्तु यह कहना सम्भव नहीं है कि इसे किसने और कब आरम्भ किया । इन जनपदों में से किसी के अद्यतम सिक्के भी पहचानना सम्भव नहीं है । इतना ही कहा जा सकता है कि इन सभी जनपदों में ई. पू. पांचवीं शती से बहुत पूर्व सिक्कों का प्रचलन था और मगध साम्राज्य के उदय होने पर ई. पू. चौथी शती के समाप्त होते-होते सभी जनपदों का अन्त हो गया ।
प्रत्येक जनपद के सिक्कों की बनावट, गढ़न, वजन, धातु-स्वरूप और लांछन एक-दूसरे से भिन्न पाये जाते हैं । शूरसेन, उत्तर और दक्षिण पंचाल, सुराष्ट्र और अश्मक जनपदों के सिक्कों पर केवल एक लांछन मिलता है और इन लांछनों का स्वरूप और गढ़न एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न है | इनमें अश्मक के अतिरिक्त अन्य जनपदों के सिक्के चाँदी के चादरों से काटे गये लांछित टुकडे हैं । अश्मक के सिक्के गली धातु को किसी सपाट वस्तु पर फैलाकर बनाये गये हैं और उन पर लांछन ऐसे समय छापे गये थे जब धातु पूरी तरह जम न पायी थी । ये सिक्के मोटे, गोल और अण्डाकार हैं तथा कटोरी की तरह कुछ गहराई लिये हुए हैं । उन पर अंकित लांछन गोल गहरे किनारे से आवृत, मोटा और उभरा हुआ है । उसके मोटे गोल किनारे वैसे ही हैं जैसे लाख पर मुहर की छाप देने पर किनारा उभर आता है । इस पर जो लांछन है वह बहुत सीधा-सादा है । देखने में वह एक बड़े पहिये के साथ बेल्ट से जुड़े दो छोटे पहियों का-सा है | ये सिक्के ९९ से १०८ ग्रेन, ४५ से ५८ ग्रेन और २१ से २८ ग्रेन अर्थात् तीन वजन के हैं ।