प्राचीन भारतीय सिक्के | भारतीय सिक्कों का इतिहास | Old Indian Coins | Old Indian Currency

Punch Marked Coins

प्राचीन भारतीय सिक्के | भारतीय सिक्कों का इतिहास | Old Indian Coins | Old Indian Currency

सौराष्ट्र के प्राचीन सिक्के


सुराष्ट्र के सिक्के लगभग १५ ग्रेन वजन के और आकार में छोटे और पतले हैं । उन पर चिन्ह लगभग अपने पूरे स्वरूप में अंकित मिलता है; किन्हीं-किन्ही सिक्कों पर किनारे का भाग कटा होता है । इन पर मुख्य रूप से छोटे-छोटे कतिष्ण चिह्नों से घिरे वृष का चिन्ह है । यों इन सिक्कों पर पाये जाने वाले चिन्ह के कई वजन के हैं और बनावट तथा चिन्ह-व्यवस्था में एक सरीखे ही हैं । वे सभी आकार में रूप हैं । अन्य तीन जनपदों – शरमेन और दोनों पंचालों के सिक्के लगभग २५ ग्रेन छोटे पर मोटे टुकड़े हैं और उन पर चिन्ह का अंश मात्र टंकित प्राप्त होता है । उत्तर पंचाल के सिक्कों के प्रमुख चिन्ह मत्स्य, दृष, हाथी (सवार सहित अथवा रहित) है । शूरसेन के सिक्कों पर बिल्ली अथवा सिंह की आकृति का कोई पशु है जो दो वृत्तों पर खड़ा है, जो कदाचित् पर्वत के प्रतीक है । पशु के दायीं ओर दो-तीन छोटे चिह्न हैं । इन दोनों ही जनपदों के अधिकांश सिक्कों का पट भाग सादा है ।

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दक्षिण पंचाल के सिक्के इनसे सर्वथा भिन्न है । इसके सिक्कों पर लगभग सौ प्रकार के चिन्ह देखने में आये है । और वे सभी गोल आकृति के हैं और बिन्दुओं, भरे और खोखले वृत्तों, रेखाओं, चतुर्भुजों आदि अनेक छोटे चिह्नों के संयोजन द्वारा बनाये गये हैं । यह संयोजन नाना प्रकार से किया गया है, जिसके कारण प्रत्येक लांछन के स्वरूपों का अपना निजस्व है । किन्तु सिक्कों के आकार से ठप्पे बड़े होने के कारण किसी भी सिक्के पर ये चिन्ह अपने पूर्ण रूप में देखने में नहीं आते, उनका बाहरी भाग सदैव कटा मिलता है | इन सिक्कों के पृष्ठ भाग पर बड़ी संख्या में नन्हे-नन्हें चिह्न देखने में आते हैं । इन नन्हें चिह्नों को इतने जोरों से टंकित किया गया था कि हथौड़े की चोट और निहाई के प्रतिरोध के बीच चित ओर के लांछन प्रायः पिस गये हैं और उनका स्वरूप अस्पष्ट हो गया है ।

गन्धार के प्राचीन सिक्के


गन्धार के सिक्कों का आकार असाधारण है । वे एक से पौने-दो इंच लम्बे वर्तुलाकार शलाका सरीखे है । ये शलाकाएँ धातु की लम्बी पट्टियों को काटकर बनायी गयी प्रतीत होती हैं । इनकी लम्बाई चौड़ाई के अनुपात में है पर मोटाई में लगभग सब एक-से ही हैं । ऐसा जान पड़ता है कि धातु की पट्टियाँ ऐसी चौड़ाई में काटी जाती थीं कि अन्य दो आयामों के साथ मिलकर अपेक्षित भार के टुकड़े तैयार हो सकें । टुकड़ों को काटने के बाद वजन संतुलित करने के निमित् आवश्यक होने पर दोनों छोरों के कोनों को कतर दिया जाता था और अगल-बगल से छील दिया जाता था । इस प्रकार बने टुकड़ों के दोनों सिरों पर एक ही चिन्ह टंकित किया जाता था । सम्भवतः इन सिक्कों का टंकण लकड़ी की निहाई पर रखकर धातु के गर्म रहते किया जाता था जिससे शलाका झुककर वर्तुलाकार रूप धारण कर लेती थी । इन सिक्कों को आहत करने वाले ठप्पे शलाका की चौड़ाई से बड़े होते थे । इस कारण लांछन की पूरी आकृति कम ही सिक्कों पर देखने में आती है । इन सिक्कों के चिन्ह का स्वरूप ६ वर्तुलाकार त्रिशूल तथा एक दण्ड से बना चक्र सरीखा है । कभी-कभी इन सिक्कों के चित भाग पर छोटे-छोटे चिह्न भी देखने में आते हैं जो कदाचित् परीक्षा चिह्न के रूप में बाद में अंकित किये गये होंगे ।

सामान्यतः अवस्था के अनुसार इन सिक्कों का वजन १५० और १८० ग्रेन के बीच पाया जाता है । ये सिक्के देश के उसी भू-भाग में मिलते हैं जो ई. पू. छठी शती के अन्त से ई. पू. चौथी शती के मध्य तक ईरानी साम्राज्य का अंग था । इस कारण कुछ विद्वानों को धारणा है कि ये सिबके ईरानी सिगलास (Siglos ) के भार-मान पर बने हैं । इन सिक्कों के खरीज स्वरूप ९०, ८०, ४३, २० और ७ ग्रेन के सिक्के भी देखने में आते हैं । ये छोटे सिक्के आकार में बेडील कटोरोनुमा पाये जाते है और उन पर वही चिन्ह केवल एक वार टंकित है, जो बड़े सिक्कों पर देखा जाता है ।

बंग जनपद के सिक्के


बंग जनपद के सिक्के पतले, चौकोर और आकार में आधे इंच के और वजन मे ५०-५२ ग्रेन के है । उन पर तीन चिन्ह है – (१) एक तल्ला पोत (नाव); (२)चक्र; (३) दुहरे वृत्त का छ: बाणों से घिरा षडर चक्र पाये जाते है ।

आठ जनपदों के सिक्कों पर चार-चार चिन्ह पाये जाते हैं । वत्स,कोसल, काशी, मगध, कलिंग, और आन्ध्र के सिक्के बनावट में पतले और मल्ल तथा मूलक के मोटे और बेडौल है । इन जनपदों के सिक्कों पर जो चार चिन्ह है उनका संयोजन तीन रूपों में देखने में आता है – (१) कुछ पर दो-दो युग्मों के दो चिन्ह मिलकर चार चिन्ह का रूप धारण करते हैं । (२) कुछ पर एक चिन्ह का युग्म और दो भिन्न चिन्ह मिलकर चार चिन्ह का समूह बनाते हैं । (३) कुछ सिक्कों पर चारों चिन्ह एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न है । मगध और वत्स के सिक्कों पर तीनों ही प्रकार का संयोजन देखा जाता है। काशी के सिक्कों का संयोजन केवल प्रथम प्रकार का है । मूलक में दूसरा और आन्ध्र में दूसरा तथा तीसरा तथा कोसल, मल्ल और कलिंग में केवल तीसरा रूप देखने में आता है ।

वत्स के सिक्के


वत्स के सिक्के गोलनुमा पतले और एक इंच के हैं । उन पर चिन्ह के रूप में ज्यामितिक आकार, पशु, चक्र, षडर चक्र और वृश्चिक सदृश आकृतियाँ पायी जाती है । इन पर वृश्चिक सदृश आकृति प्रमुख है । ये सिक्के वजन में ५० से ५४ ग्रेन तक है । कोसल के सिक्के दो बनावटों के है । एक, जो पहले के हैं, चौड़े, पतले और गोल हैं । पट ओर नन्हें चिह्नों से काफी आहत किये जाने के कारण इन सिक्कों के चित ओर के चिन्ह चिपटे हो गये हैं। दूसरे अर्थात् बादवाले सिक्के औसत मोटाई के है । उन भी पट ओर छोटे चिह्न पाये जाते हैं किन्तु उनके कारण चित ओर के चिन्ह में किसी प्रकार की विकृति नहीं देखने में आती । इन सिक्कों के अधिकांश चिन्ह ज्यामितिक आकृति, हाथी, बैल अथवा शशक (खरगोश) है । उनमें एक-दो वृक्ष के रूप भी देखने को मिलते हैं । इन सिक्कों का प्रमुख चिन्ह एक छोटे वृत्त चारों ओर अंग्रेजी के एस (8) सरीखे वक्र रेखाओं से घेरकर बना है । ये सिक्के केवल ४२ ग्रेन के हैं । काशी के सिक्के अण्डाकार आकृति के है; इस दृष्टि से कोसल के पूर्ववर्ती सिक्कों के क्रम में रखा जा सकता है; किन्तु उनके आहत प्रक्रिया है, उसके कारण वे कटोरीनुमा प्रतीत होते हैं। इन सिक्कों पर चिन्ह का एक युग्म दूसरे युग्म से आकार में छोटा है । इनके चिन्ह एक जटिल आकृति के चक्र से हैं । उसमें चार भुजाओं से अनेक शाखाएँ प्रस्फुटित होकर चक्र का रूप धारण करती हैं । कुछ चिन्ह कमल आकृति के भी प्रतीत होते हैं । इनका वजन लगभग ७५ ग्रेन है ।

आन्ध्र के सिक्के


आन्ध्र के सिक्के छोटे, पतले और बेडौल हैं किन्तु चिन्ह का टंकण स्पष्ट हुआ है । इन पर हाथी प्रमुख चिन्ह है जो दक्षिणाभिमुख अथवा वामाभिमुख दोनों रूपों में मिलता है और प्रायः सभी सिक्कों पर देखने में आता है । इन पर प्राय मिलने वाला एक अन्य चिन्ह वृक्ष का एक रूढ़िगत स्वरूप है । अन्य चिन्ह वृत्त, बिन्दु, वर्तुलाकार रेखा आदि से बनी ज्यामितिक आकृतियाँ हैं । किन्हीं-किन्हीं सिक्कों पर वृष भी है । इनका भार २० ग्रेन के लगभग है । कलिंग के सिक्के भार और बनावट में आन्ध्र के सिक्कों सरीखे ही हैं और उनके चिन्ह भी वे ही हैं जो यान्त्र के एक भांत के सिक्कों पर पाये जाते हैं। इन पर आन्ध्र के सिक्कों की अपेक्षा टंकण हलका है ।

मल्ल जनपद के सिक्के


मल्ल जनपद के सिक्के दो प्रकार के हैं । एक प्रकार के सिक्के मोटे टुकड़े सरीखे लगते हैं और वे वजन मे ६५ ग्रेन है । उन पर दो चिन्ह हैं, एक छोटा और एक बड़ा और वे केवल रेखाओं से बने हैं । दूसरे प्रकार के सिक्के दो भारमानों के हैं । एक तो बड़े ४८ ग्रेन के हैं और उन पर चार चिन्ह हैं और दूसरे छोटे केवल १०-१२ ग्रेन के हैं और उन पर केवल दो चिन्ह है । इन चिन्ह की आकृति भी सरल ज्यामितिक है ।

मगध के सिक्के


मगध के सिक्के मुख्य रूप से दो कालों के हैं । एक तो उस समय प्रचलित रहे होंगे जब वह मात्र जनपद था । उन्हें स्थानिक सिक्के कह सकते हैं । इन सिक्कों के कई समूह हैं, जो एक-दूसरे से अनेक बातों में भिन्न हैं । इनका अभी कोई सम्यक् अध्ययन नहीं हो पाया है ।

दूसरे वे हैं जो उसके साम्राज्य-विस्तार काल में प्रचलित किये गये और देशभर में बिखरे मिलते हैं । ये सिक्के अजातशत्रु के समय से लेकर मौर्य वंश के समय ई. पू. दूसरी शती तक चलते रहे । वे सिक्के एक समान भारमान के है । उनका भार लगभग ५६ ग्रेन था | ताना दिखाई पड़ने वाले सिक्के इस भार से ऊपर नहीं जाते । सामान्य रूप से ये सिक्के ५०-५२ ग्रेन के मिलते है । वे अधिकांशतः धातु की चादरों को काटकर बनाये गये थे पर उनकी लम्बाई-चौड़ाई निश्चित नहीं है ।

वे १.२५” के भी हैं और ‘४” के भी । उनकी मोटाई भी ०२” से १२५” इंच तक पायी जाती है । इन सभी सिक्कों पर चित ओर समान रूप से पाँच चिन्ह पाये जाते हैं । इन चिन्ह की संख्या कई सौ है, जो विभिन्न ढंग के ज्यामितिक, अलंकृत वृत्त, चक्र, सूर्य, मानव, वृष, हाथी, शशक, मृग, गैंडा, मछली, मगर, कछुआ, पक्षी, धनुष-वाण आदि रूपों में पाये जाते हैं । इन सिक्कों के पांच चिन्ह के समूह में प्रत्येक चिन्ह का अपना एक निश्चित स्थान है चिन्ह की इस क्रम-व्यवस्था के आधार पर ये सिक्के ५०० से अधिक भाँतों में पहचाने गये हैं । इन भाँतों को विभिन्न वर्ग और समूहों में और फिर ६ या ७ श्रेणियों में समूहीकृत किया जा सकता है ।

बनावट के आधार पर इन श्रेणियों को काल-क्रम का भी निरूपण दिया जा सकता है । बनावट की दृष्टि से प्रथम दो श्रेणियों के सिक्के पतली चादर के, उसके बाद की दो श्रेणियों के सिक्के मध्यम चादरों के हैं । तीसरी श्रेणी के सिक्कों में कुछ पतली चादर के भी देखने में आते हैं । इसी प्रकार चौथी श्रेणी के सिक्कों में कुछ मोटे भी है । पाँचवीं श्रेणी के सिक्के मध्यम ओर मोटी चादरों के मिश्रित मिलते हैं । छठी-सातवीं श्रेणी के सिक्के पूर्णतः मोटी चादरों के हैं । प्रथम चार श्रेणी के सिक्कों के पट ओर वैसे ही नन्हें चिह्न देखे जाते हैं जिस प्रकार के चिह्न कतिपय जानपदीय सिक्कों पर मिलते हैं । पाँचवों श्रेणी के सिक्कों की पीठ पर इन नन्हें चिह्नों के अतिरिक्त एक नये प्रकार के चिह्न भी देखने में आते हैं । इस आधार पर इन सिक्कों को पूर्ववर्ती सिक्कों से अलग किया जा सकता है । छठी श्रेणी के अधिकांश सिक्कों की पीठ पर चित ओर के चिन्ह की तरह का ही एक बड़ा चिन्ह देखने में आता है और पट ओर के ये चिन्ह समूह अथवा भाँत-विशेष के सिक्कों पर सर्वदा एक-से मिलते हैं ।

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