मूर्ति का रोना | मूर्ति के आँख से आसू | Murti’s Crying
घटना ६ अगस्त, १९४५ की है । पिट्सबर्ग के व्यापारी एलेन डेमेट्रियस की आर्ट गैलरी में पेंटिग्स तथा मूर्तियां रखी हुई थीं । इन मूर्तियों में एक जापानी लड़की की कांसे की बनी मूर्ति भी थी । उस दिन वह मूर्ति न जाने क्यों रोने लगी ।
डेमेट्रियस ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसी प्रकार वहां पानी के छींटे तो नहीं पहुंच गए, उन्होंने उसे कपड़े से अच्छी तरह पोंछ दिया, पर तब वह आश्चर्य चकित रह गए, जब थोड़ी ही देर में मूर्ति की आंखें पुनः गीली हो गई । डेमेट्रियस ने उन्हें पुनः सुखाया, किन्तु कुछ पल बाद वह फिर नम हो गई ।
इस प्रकार के कई प्रयोगों के बाद डेमेट्रियस को यकीन हो गया कि आंखों से लुढ़कने वाला तरल असावधानी से पड़ने वाला कोई जल-बिन्दु नहीं, बल्कि वह मूर्ति के रोने का परिणाम है ।
इसी पुष्टि के लिए उन्होंने स्थानीय रसायन वेत्ताओं को जांच के लिए आमंत्रित किया । कई रसायनवेत्ताओं ने अलग-अलग जांच की, पर सभी का निष्कर्ष एक ही था कि आंखों से बहने वाला तरल आसू ही है ।
मूर्ति ने उसी दिन रोना आरंभ किया, जिस दिन हिरोशिमा पर अणुबम गिराया गया था । मूर्ति के विलाप के कारण का पता आज तक नहीं चल सका ।
आखिर वह क्या था
बात २५ अप्रैल, १९७७ की है । जापान की मछली पकड़ने वाली नौका “जुइओ मारू” समुद्र में कार्यरत थी । नौका से जाल फेंके जा रहे थे तथा उनमें फंसकर आने वाली मछलियों को नौका में लादा जा रहा था ।
न्यूजीलैंड के समुद्र तट के पास जापानी मछुआरे एक ऐसी घटना से मिले, जिसने उनको स्तब्ध कर दिया । जब न्यूजीलैंड के समुद्री तट के पास जापानी मछुआरों ने जाल खींचा, तो उसमें एक ऐसा जीव फंसा हुआ था, जो पहले कभी भी नहीं देखा गया था, न ही उसके बारे में कोई जानकारी ही कहीं उपलब्ध थी ।
जाल में फंसा दैत्य जैसा जीव मृत था । उस दैत्य आकार के जीव का वजन १८०० किलोग्राम के करीब था तथा उसकी लंबाई साढ़े नौ मीटर के करीब थी । उसका आकार इतना बड़ा था कि नौका के कैप्टन को डर हुआ कि कहीं उसे नौका पर लादने से नौका का संतुलन ही न बिगड़ जाए । कैप्टन ने उस दैत्य जैसे जीव का दूर से ही एक चित्र खींचा तथा मछुआरों को उसको पुनः समुद्र में फेंक देने का आदेश दिया ।
वास्तव में उस विचित्र तथा अज्ञात जीव ने सभी को बुरी तरह डरा दिया था । नौका के कैप्टन द्वारा खींचे गए चित्र का जापान की याकोहामा नेशनल युनिवर्सिटी के प्रोफेसर टोकिओ शिमका ने अध्ययन किया, तो वह आश्चर्यचकित रह गए । उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह जीव कोई अज्ञात समुद्री, मैदानी या आसमानी जानवर नहीं था । प्रोफेसर शिमका के अनुसार, वह जींव किसी मछली की जाति का भी नहीं था । आज तक भी यह पहेली सुलझ नहीं पाई कि आखिर वह जीव क्या था ?