तुलसी विवाह की कहानी | Tulsi Vivah

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तुलसी विवाह की कहानी | Tulsi Vivah

हिन्दुओ मे ये मान्यता है की तुलसी
सभी पौधो मे सर्वेश्रेष्ट है
| भारत मे ऐसे कई वृक्ष है, जिन्हे पावन माना जाता है
और उनकी पूजा की जाती है
| लेकिन तुलसी उनमे सर्वोपरी है | तुलसी एक पावन पौधा या छोटा सा एक वृक्ष है, जो बेहद
पवित्र है
| तुलसी को एक देवी का दर्जा भी दिया जाता है, जो विष्णु की अर्धांगिनी है और विष्णु प्रिय भी | इसलिए
हिन्दुओ मे तुलसी का पत्ता भी पूजा मे इस्तमाल किया जाता है
| विष्णु और उनके सभी रूपो की पूजा विशेष रूप से तुलसी से ही की जाती है और
बिना तुलसी पत्तों के वो पूरी नही मानी जाती
|

मंदिरो मे तुलसी पौधे का एक विशेष
स्थान होता है और घरो के आगन मे उनकी मौजूदगी बेहद शुभ मानी जाती है
| हिन्दू घरो मे लोग सुबह-शाम तुलसी के आगे धूप
और दिया करते है
, उन्हे जल चढाते है और उनकी आराधना करते है | कुछ घरो मे ये पूजा विशेषकर कन्याओ से कराई जाती है | तुलसी पौधे की मिट्टी भी उतनी ही पावन मानी जाती है जितनी की स्वयं तुलसी
|  

हिन्दू पूराणों मे तुलसी का दूसरा
नाम है वैष्णवी यानी विष्णु की पत्नी
| मूल रूप से वह वृंदा के नाम से भी जानी जाती है | वृन्दा
जालंधर नाम के असुरो के राजा के विवाहित थी
| वृंदा की प्रार्थना, भक्ति और शक्ति के स्वरूप उनका पति जालंधर अजय और अमर बन गया था | जिसे पराजित करना बेहद मुश्किल था | त्रिदेव मे से एक
स्वयं भगवान शिव भी उसे हरा पाने मे असमर्थ हो गए थे
| तब शिव
भगवान ने विष्णु से विनती की की वो इसका समाधान निकाले
| वृंदा
एक पतिव्रता स्त्री थी
, जिनकी पवित्रता पर कोई संदेह नही कर सकता
था लेकिन एक वही थी जो जालंधर की ढाल बनकर हर मुसीबत से उनकी रक्षा कर रही थी
| इसी बात को ध्यान मे रख विष्णु ने इस समस्या का हल निकाला और भेष बदलकर धरती
पर जा पहुचे
| विष्णु मे असुर जालंधर का ही रूप लिया और वृंदा
के समक्ष आ खड़े हुए
| उन्होने न सिर्फ वृंदा को छला बल्कि उनकी
पवित्रता और तप को भंग कर जालंधर की रक्षा कर रहे कवच को भी नष्ट कर दिया
| इसके परिणामस्वरूप जालंधर कमजोर पड गया और अपनी सारी शक्तिया खोकर भगवान शिव
के हाथो मारा गया
| जालंधर की मृत्यु पर शोक करते हुए वृंदा ने
विष्णु को श्राप दिया की उनका रंग काला पड जाएगा और वो भी अपनी पत्नी से अलग हो जाएगे
| ये श्राप तब फलित हुआ जब विष्णु शालिग्राम नाम के काले पत्थर
मे बदल गए
| वृंदा का दूसरा श्राप विष्णु के राम अवतार मे धरती
पर अवतरित होकर सीता से बिछड़ जाने पर पूरा हुआ
| श्राप देकर वृंदा
ने खुद को समुद्र के हवाले कर दिया
| तब विष्णु ने उनकी जीवात्मा
को एक पौधे का रूप दिया जो तुलसी के नाम से प्रचलित है
|

वृंदा की तरह ही तुलसी का पौधा
बेहद पावन माना जाता है और उनके तप को ध्यान मे रख तुलसी की पूजा की जाती है
|

एक और कहानी के अनुसार तुलसी लक्ष्मी
का अवतार है
| माना जाता है
की उन्होंने धरती पर अवतरित होकर एक राक्षस का वध किया था और फिर तुलसी के रूप मे धरती
पर ही रह गई थी
| इसलिए तुलसी को लक्ष्मी रूप मे सुख और समृद्धि
की देवी भी माना जाता है
|

लेकिन वृंदा की लोकप्रिय कहानी
मे विष्णु मे वृन्दा को उनके तप के फलस्वरूप एक आशीर्वाद दिया था
| विष्णु ने वृन्दा को वरदान देते हुए कहा था
की अगले जन्म मे वो स्वयं उनसे विवाह करेंगे और इसलिए प्रबोधनी एकादशी के दिन शालीग्राम
का विवाह तुलसी से किया जाता है
, जो विष्णु और वृंदा का की स्वरूप
है
| विष्णु रूप मे शालीग्राम का स्थान विष्णु अवतार कृष्ण और
राम को भी दिया जाता है
|

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार 11वे
चंद्रमास यानी कार्तिक पूर्णिमा के दौरान शुक्ल पक्ष मे आमतौर पर प्रबोधनी एकादशी मनाई
जाती है
| इसकी मान्यता
11वे या 12वे चंद्रदिन पर ही मानी जाती है बल्कि यही मान्यता एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र
मे चंद्रमा की फेर बदल पर भी निर्भर करती है
|

तुलसी विवाह मानसून के समाप्त
होने और हिन्दू विवाह के प्रारम्भ होने का प्रतीक है
| प्रबोधनी एकादशी के दिन लोग व्रत रखते है और
शाम होने तक व्रत को पूरी निष्ठा के साथ निभाते है
| शाम होने
पर तुलसी और शालीग्राम को नहलाया जाता है
, नए वस्त्र पहनाए
जाते है
| औरते तुलसी का शृगार करती है | उन्हे एक दुल्हन की तरह सजाती है | सोलह शृंगार किया
जाता है
| विष्णु रूप मे पूरे साजो समान के साथ शालीग्राम को
दूल्हा बनाया जाता है
| एक पवित्र धागे के साथ तुलसी और शालिग्राम
को बंधन मे बांध दिया जाता है
| फिर एक मंडप सजता है और पूरे
रीतीरिवाज और गाने बजाने के से साथ दोनों का विवाह होता है
| विवाह सम्पन्न होने पर मीठा प्रसाद आपस मे बांटा जाता है जिसमे गन्ना, मूंगफ़ल्ली, फल और पतासा रखा जाता है |

हिन्दुओ मे ये दिन एक बड़े उत्सव
की तरह देखा जाता है
| लोग अपने
घरो के आगन या मंदिरो मे पुजा करते है
| कूवारी कन्याओ के लिए
इस दिन की महत्ता एक अलग ही स्थान रखती है
| कहा जाता है की यदि
वो अपने हाथो से तुलसी का शृंगार और उनका विवाह करती है तो खुद उनका विवाह भी जल्द
हो जाता है और उन्हे मन चाहा वर भी मिलता है
| और इसी शृखला को
आगे बढाते हुए तुलसी के श्रुगार का सामान बाद मे किसी कुवरी कन्या या ब्राम्हनी को ही
दिया जाता है
|

तुलसी और विष्णु का विवाह एक प्रतीक
है
, प्रबोधनी एकादशी के दिन इनके
विवाह के साथ ही एक शुभ घड़ी का आगमन होता है
, जब हिन्दुओ मे विवाह
मुहर्त की शुरूआत होती है
| बड़े पैमाने पर शादिया होती है और
खुशियो का आगमन होता है
|

एक पारंपरिक प्रार्थना मे उल्लेख
है की तुलसी की शाखाओ मे ब्रम्हा निवास करते है
, तुलसी की टहनियो मे देवताओ का वास है, तुलसी की जड़ो मे गंगा बहती है, तुलसी के ऊपरी भाग मे
चारो वेदो का वास है
| यहा तक की तुलसी के पत्तों मे भी देवी-देवताओ
का कुछ अस्तित्व बसता है
| जिस पावन भूमि पर तुलसी का पौधा उगाया
जाता है
, उसे वृन्दावन भी कहते है |

मंदिरो मे दर्शन करने जाने वाले
सभी भक्तो को पुजारियो द्वारा तुलसी का पत्ता पानी के साथ दिया जाता है
| जिसे दोनों हाथो से स्वीकारते है, और उसे माथे से लगाकर फिर मुह मे डालते है | माना जाता
है की ऐसा करना आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है और सभी दुखो से आपको राहत देता
है
|                

19वी सदी मे बंगाल मे कुछ परिवारों
ने तुलसी को अपने अभिभावक और इष्टदेवता का दर्जा दिया तो वही ब्रिटिश के कुछ उत्तर
पश्चिम परदेशो ने खुद को तुलसी का उपासक बताया
|

उड़ीसा मे वैशाख महीने के पहले
दिन से लेकर पूरे महीने भर तुलसी को एक अनोखी परंपरा से सीचा जाता है
| एक छोटे से बर्तन मे छेदकर उसमे पानी भरकर तुलसी के पौधे पर कोमलता से छिडका जाता है | वैशाख का महिना अप्रैल-मई
मे आता है
, जब गर्मी अपनी चरम सीमा पर होती है | इसलिए लोगो का मानना है की उस दौरान यदि तूलसी को ठंडे पानी से राहत दी जाए
या उसे गर्मी से बचाने के लिए छाया मे रखा जाए तो वो शीघ्र मानसून लाता है
|

भारत के पश्चिमी भाग मे बसा सौराष्ट्र
भगवान राम के दो मंदिरों से सुसज्जित है
| वहा भी तुलसी विवाह बड़ी धूमधाम और सटीकता से मनाया जाता है | हिन्दू शादियो की तरह ही यहा तुलसी और शालिग्राम रूपी विष्णु का विवाह पूरे
विधिविधान के साथ किया जाता है जिसके दौरान एक मंदिर से दूसरे मंदिर मे शादी का न्यौता
भेजा जाता है और दोनों ओर से तुलसी और शालिग्राम के विवाह की सारी तैयारीया की जाती
है
| फिर परंपरा समेत दोनों को प्रबोधनी एकादशी के दिन जन्म-जन्म
के लिए विवाह बंधन मे बांध दिया जाता है
|

एक मान्यता है की जो भी व्यक्ति
तुलसी को नियमित जल चढाता है
, और उसकी देखरेख करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है फिर भले ही वह विधिविधान
के साथ तुलसी की पूजा करना न जानता हो
| 

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