चार्ल्स डार्विन कौन था | चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत | चार्ल्स डार्विन इन हिंदी | charles darwin in hindi | charles darwin theory in hindi

चार्ल्स डार्विन कौन था | चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत | चार्ल्स डार्विन इन हिंदी | charles darwin in hindi | charles darwin theory in hindi

चार्ल्स डार्विन ब्रिटेन के प्रकृति वैज्ञानिक थे, जिन्होंने जीवों के क्रमिक विकास का सिद्धात प्रतिपादित किया । उनसे पहले यह विश्वास किया जाता था कि धरती के अलग-अलग जीवों की उत्पत्ति अलग-अलग रूपों में हुई है और इन रूपों में कोई भी परिवर्तन नहीं हुआ है ।

उन्होंने इस धारणा को गलत सिद्ध किया और अपने अध्ययनों के विकासवाद की नींव डालने वाला आधार पर यह सिद्ध किया कि सभी जीवों का आज का रूप किसी एक सरल प्राणी से हुआ है, जो करोड़ों वर्ष पूर्व इस धरती पर पैदा हुआ था । इसी प्राणी से सभी पेड़-पौधों और जन्तुओं की उत्पत्ति हुई और एक क्रमिक विकास के अंतर्गत उन्होंने आज का रूप धारण किया ।

चार्ल्स डार्विन का जन्म शजबरी नामक स्थान पर १२ फरवरी सन् १८०९ में हुआ था । आठ साल की उम्र से इनकी देखभाल इनकी सबसे बड़ी बहन ने की । बालक के रूप में कीड़े-मकौड़े और भांति-भांति के खनिज एकत्रित करने का इन्हें काफी शौक था । ये रसायन शास्त्र के सरल प्रयोग भी किया करते थे ।

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१६ वर्ष की अवस्था में इन्हें आयुर्विज्ञान के अध्ययन के लिए एडिनबरा विश्वविद्यालय में भेजा गया, लेकिन ये बहुत ही नेक और संवेदनशील स्वभाव के थे, जो चिकित्साशास्त्र के अध्ययन के लिए एक प्रकार की कमी थी । शल्य चिकित्सा को देखकर ये भयभीत हो जाते थे क्योंकि उन दिनों बेहोश करने की दवाओं का आविष्कार नहीं हुआ था और सभी ऑपरेशन बड़े ही निर्दयतापूर्ण ढंग से किए जाते थे ।

इन सब बातों के कारण वे आयुर्विज्ञान के अध्ययनों में सफल न हो सके । सन् १८२८ में उन्होंने एडिनबरा विश्वविद्यालय छोड़ दिया और ये आध्यात्मशास्त्र पढ़ने के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिए गए । कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इन्होंने अपने अध्ययन विषय आध्यात्मशास्त्र पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया बल्कि भ्रूण (Beetles) इकट्ठा करने में लगे रहे । अपने विषय का इन्होंने केवल इतना अध्ययन किया कि उन्हें डिग्री प्राप्त हो गई । लेकिन इस अध्ययन के दौरान विश्वविद्यालय में वनस्पति शास्त्र और भूगर्भ शास्त्र के कई प्रोफेसर इनके मित्र बन गए ।

सन् १८३१ में इनके भाग्योदय का आरम्भ हुआ । इसी वर्ष इंग्लैण्ड के बीगल (Beagle) नामक समुद्री जहाज को संगार की वैज्ञानिक यात्रा पर जाना था, जिसमें एक प्रकृति वैज्ञानिक की आवश्यकता थी । यह यात्रा कैप्टन फिज रॉय (Fitz Roy) की देखरेख में सम्पन्न होनी थी । इस काम के लिए कैम्ब्रिज के इनके दो दोस्तों ने इस पद के लिए डार्बिन का नाम सुझाया । चार्ल्स डार्विन इस यात्रा पर गए । यह यात्रा लगभग ५ वर्ष तक चली ।

इस यात्रा के दौरान डार्विन ने विश्व के अनेक जीव-जन्तओं के विषय में जमकर अध्ययन किया । उन्होंने अनेक विलप्त जीवों के अवशेष एकत्रित किए तथा इन अवशेषों की जीवित प्राणियों से तुलना की । इन्होंने गालापागोस (Galapagos) द्वीप समूह पर प्रवालों कछओ इगनाओ (Igunao) का अध्ययन किया । इन जन्तुओं को देखकर उनका मस्तिष्क हैरान हो गया ।डार्विन ने देखा कि द्वीप में रहने वाले जन्तु दूसरे द्वीपों में रहने वाले जन्तुओं से केवल आकार में ही भिन्न नहीं थे, बल्कि रंग, गोलाई आदि अनेक अन्य बातों में भी भिन्न थे । इन्हीं निरीक्षणों ने बाद में उन्हें विकासवाद के सिद्धांत को प्रस्तुत करने में बड़ी मदद की ।

इस विश्व यात्रा से लौटने के बाद डार्विन कुछ दिन इंग्लैंड में रुके और उन्होंने अपनी यात्रा के अनुभवों को लिखा । उनके पास इकट्ठे किये गए नमूनों का भारी खजाना था ।

सन् १८३९ में उन्होंने ऐम्मावेजवड (Emmawedgwood) नाम की महिला से शादी कर ली और १८४४ में वे केट में डॉन नामक स्थान पर लौट आए । इसी अवधि में उन्हें अल्फ्रेड रसेल वेलेस (Alfred Russel Wallace) नामक प्रकृति वैज्ञानिक से एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें वेलेस ने भी विकासवाद के विषय में वही निष्कर्ष निकाले थे, जो चार्ल्स डार्विन ने । इन दोनों वैज्ञानिकों ने सन् १८५८ में एक संयुक्त शोध पत्र प्रस्तुत किया ।

सन् १८५९ में इनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द ओरिजन ऑफ स्पिशीज बॉय नेचरल सलेक्शन’ (The Origin of Species by Natural Selection) प्रकाशित हुई, जिसका प्रथम संस्करण छपते ही बिक गया । इस पुस्तक में उन्होंने अपने पास से एकत्रित नमूनों के आधार पर इस बात के प्रमाण दिए थे कि आज के जीवों के अनेक रूप किसी एक ही पूर्वज से विकसित हुए हैं । उन्होंने यह भी बताया कि जीवन के संघर्ष में केवल उपयुक्त प्राणी ही जीवत रह पाते हैं और दूसरे मर जाते हैं ।

उनका निष्कर्ष था कि एक ही पूर्वज से पैदा हुए प्राणी वातावरण के प्रभाव से धीरे-धीरे परिवर्तित होते गए और आज के रूप में आ गए ।

इस पुस्तक ने चारों ओर खलबली मचा दी क्योंकि इसमें जीवों की उत्पत्ति के विषय में प्रचलित धार्मिक विचारों का खंडन किया गया था, लेकिन बाद में इस पुस्तक में दिए विचारों को सभी जीव वैज्ञानिकों ने मान्यता प्रदान की।

सन् १८६८ में चार्ल्स डार्विन ने दूसरी पुस्तक प्रकाशित की । इस पुस्तक का नाम था “द वेरियेशन ऑफ एनिमल्स एण्ड प्लांट्स अंडर डोमेस्टिकेशन” (The Variation of Animals and Plants under Domestication) इस पुस्तक में यह दर्शाया गया था कि गिने-चुने जन्तुओं का चयन करके कबूतरों, कुत्तों और दूसरे जानवरों की नई नस्लें पैदा की जा सकती हैं। इसी प्रकार नए पेड़-पौधों की भी नई नस्लें पैदा की जा सकती हैं।

इन्होंने और भी पुस्तकें लिखी, जिनमें ‘इनसेक्टीवोरअस प्लांट्स’ (Insectivorous Plants), ‘द पावर ऑफ मूवमेंट इन प्लांट्स’ (The Power of Movement in Plants), ‘डिसेंट ऑफ मैन’ (Discent of Man) आदि बहुत प्रसिद्ध हुई।

इस महान वैज्ञानिक की ७४ साल की उम्र में ४ जुलाई १९३४ को मृत्यु हो गई । इन्हें वेस्ट मिनिस्टर ऐब में दफनाया गया । इनकी समाधि से कुछ ही दूर नयूटन की समाधि है। इनके १९ बच्चे हुए जिनमें से केवल ७ जिन्दा रहे । उसके ४ बेटे उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक हुए जिनमें से ३ अपने पिता की भांति ही रॉयल सोसायटी ऑफ लन्दन का फैलो नियुक्त किया गया।

चार्ल्स डार्विन को वैज्ञानिकों की दुनिया ने अनेक सम्मान प्रदान किए लेकिन कोई भी सम्मान इनके सरल जीवन में परिवर्तन न ला सका ।

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