रत्नों का विवरण | राशि रत्न | मणि
Details Of Ratna | Rashi Ratna
कुछ
पुराणों का मत है कि दैत्यराज बलि का वध करने के लिए भगवान त्रिलोकीनाथ ने वामन
अवतार धारण
किया और उसके गर्व को चुर किया । इस समय भगवान के चरण स्पर्श से दैत्यराज बलि का
सारा शरीर रत्नो का बन
गया, तब
देवराज इंद्र ने उस पर वज्र की चोट की, इस प्रकार
टूटकर बिखरे हुए बलि के रत्नमय खंडों को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल में धारण कर लिया
और उसमें नवग्रह
और बारह राशियों के प्रभुत्व का आधार करके पृथ्वी पर
गिरा दिया। पृथ्वी पर गिराये गये इन खंडों से ही विभिन्न रत्नों की खानें पृथ्वी
के गर्भ में बन गयीं ।
रत्नों की उत्पत्ति
रत्नों की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य कथा भी
ग्रंथों में आती है । देवता और दैत्यों ने समुद्र मंथन
किया तो १४ रत्न पदार्थ निकले । उसमें लक्ष्मी, उच्चैश्रवा, ऐरावत
आदि के कौस्तुभ मणि को प्रभु ने अपने कंठ
में धारण कर लिया
| इससे
निकले अमृत को लेकर देव और
दानवों में संघर्ष हुआ । अमृत का स्वर्ण कलश असुरराज
लेकर भाग खड़े हुए। कहते हैं की इस छीना-झपटी में अमृत
को कुछ बून्दे जहां-जहां
गिरीं वहां सूर्य की किरणों द्वारा
सूखकर वे अमृतकण प्रकृति की रज में मिश्रित होकर
विविध प्रकार के रत्नो में
परिवर्तित हो गए |
प्रमुख मणि-रत्न
रत्न चौरासी माने गये हैं । नौ प्रमुख रत्न तथा
शेष उपरन्त माने
जाते हैं। इन नौ प्रमुख रत्नों
का नव-ग्रहों
से संबंध माना जाता है। सूर्य – माणिक्य, चंद्रमा
– मोती,
मंगल – मूंगा, बुध – पन्ना, बृहस्पति – पुखराज, शुक्र –
हीरा, शनि – नीलम, राहु –
गोमेद, केतु –
लहसुनिया।
पुराणों में कुछ ऐसे मणि रत्नों का वर्णन भी गाया
जाता है जो पृथ्वी पर नहीं पाये जाते। चिंतामणि, कौस्तुभ मणि, रुद्र मणि और स्यमंतक
मणि ।
ऐसा माना जाता है कि चिंतामणि को स्वयं ब्रह्माजी
धारण करते हैं । कौस्तुध मणि कोनारायण घारण करते हैं। रुद्रमणि को भगवान शंकर धारण
करते हैं । स्यमंतक मणि को इंद्र देव धारण
करते हैं । पाताल लोक भी मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। इन सब मणियों
पर सर्पराज वासुकी का अधिकार रहता है । प्रमुख मणियां
९ मानी जाती हैं, घृत मणि, तैल
मणि, भीष्मक
मणि, उपलक
मणि, स्फटिक
मणि, पारस
मणि, उलूक
मणि, लाजावर्त
मणि और
मासर मणि ।
इन मणियों के संबंध में कई बातें प्रचलित है |
घृतमणि की माला धारण कराने से बच्चों को नजर
से बचाया जाता है । इस मणि को धारण करने से कभी भी लक्ष्मी नहीं रूठतीं ।
तैल मणि को धारण करने से बल-पौरुष की वृद्धि
होती है ।
भीष्मक मणि धनधान्य वृद्धि में सहायक है ।
उपलक मणि को धारण करने वाला व्यक्ति भक्ति व
योग को प्राप्त करता है ।
उलूक मणि को धारण करने से नेत्र रोग दूर हो
जाते हैं ।
लाजावर्त मणि को धारण करने से बुद्धि में
वृद्धि होती है।
मासर मणि को धारण करने से पानी और अग्नि का
प्रभाव कम होता है ।