सम्पूर्ण पंचतंत्र हिन्दी कहानियाँ – गधे में दिमाग कहाँ | Panchtantra Moral Story

सम्पूर्ण पंचतंत्र हिन्दी कहानियाँ – गधे में दिमाग कहाँ | Panchtantra Moral Story

जंगल का राजा शेर, बूढ़ा और कमज़ोर हो गया था । अब वह पहले की तरह जानवरों का शिकार नहीं कर सकता था । कभी-कभी तो उसे दिन-दिन भर भूखा रहना पड़ता । दिनों- दिन वह अधिक कमज़ोर और बूढ़ा होता जा रहा था। एक दिन उसने सोचा, “इस तरह मैं कब तक जिऊंगा ? कोई न कोई तरकीब निकालनी चाहिए, जिससे मुझको हर रोज आसानी से खाने को मिल जाये ।”

बहुत सोच विचार के बाद उसने किसी को अपना मददगार बनाने का निश्चय किया । उसे लोमड़ी से अधिक उपयुक्त और कोई नजर नहीं आया । उसने लोमड़ी को बुलाया और बड़े प्यार से उससे बोला, “बहन लोमड़ी तुम तो जानती ही हो, मैं तुमको कितना चाहता हूं । इसका कारण है तुम्हारी चतुराई । तुम सबसे चतुर जानवर हो । मैं चाहता हूं तुम मेरी मंत्री बन जाओ और राजकाज में मेरी सहायता करो ।“

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लोमड़ी चालाक तो थी ही। उसे शेर की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन उसमें उसकी बात काटने की हिम्मत भी नहीं थी। उसने बड़े ही विनीत भाव से कहा, “महाराज आपकी बड़ी कृपा है। मैं आपकी आज्ञाकारिणी सेविका हूं । मैं जी जान से आपकी सेवा करूंगी।”

बूढ़ा शेर बहुत खुश हुआ। उसने कहा, “अच्छा, तो सुनो तुम्हारा काम क्या होगा । तुम जानती ही हो कि मैं जंगल का राजा हूं और राजा को अपना खाना ढूँढ़ने के लिए जानवरों के पीछे नहीं भागना चाहिए। इसलिये मेरे खाने का इन्तज़ाम करना तुम्हारा पहला काम होगा । तुम्हें हर रोज मेरे भोजन के लिए एक जानवर लाना होगा । मैं जानता हूं कि तुम यह काम आसानी से कर सकोगी ।”

“महाराज मैं जी जान से आपकी आज्ञा का पालन करूंगी।” ऐसा कहकर लोमड़ी शेर के लिए शिकार ढूँढ़ने निकली ।

चलते-चलते राह में उसने एक मोटे-ताजे गधे को घास चरते देखा । वह गधे के पास जाकर बोली, “अरे तुम अब तक कहां छिपे थे मेरे दोस्त ? मैं तो तुम्हें सत्तरह दिन से ढूंढ़ती-ढूंढ़ती थक गई हूं ।”

“क्यों ?” गधे ने पूछा, “मैं तो यहीं था । लेकिन यह भी तो बताओ कि तुमको मुझसे ऐसा क्या काम आ पड़ा है?”

“मैं तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर लाई हूं । तुम्हारे दिन फिर गये हैं । खुशी मनाओ। जंगल के राजा शेर के पास से सन्देश लेकर आई हूं । राजा ने तुमको अपना महामंत्री चुना है और यह बताने के लिए मुझे तुम्हारे पास भेजा है ।”

गधे ने डर कर कहा, “बाप रे बाप ! शेर ने बुलाया है ? मुझको तो डर लगता है। शेर ने मुझको महामंत्री क्यों चुना, मैं इस योग्य नहीं हूं । कृपा कर मुझे ऐसे ही रहने दो ।”

लोमड़ी हंसकर बोली, “तुम्हें अपनी योग्यता का खुद पता नहीं । यही तो तुम्हारा सबसे बड़ा गुण है। राजा ने तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुन रखा है । वह तुमसे मिलना चाहते हैं। तुम नेक हो, बुद्धिमान हो, मेहनती हो । इसीलिए उन्होंने तुमको महामंत्री चुना है ।”

लोमड़ी ने इस तरह से बातें बनाई कि भोले-भाले गधे को उस पर विश्वास हो गया । उसने सोचा लोमड़ी पर भरोसा किया जा सकता है । उसने कहा, “अच्छी बात है। अगर तुम यही कहती हो तो मैं तुम्हारे साथ शेर के पास चला चलूँगा ।”

लोमड़ी ने कहा, “तुम सचमुच बुद्धिमान हो, तुम्हें अपने जीवन का यह महान अवसर नहीं खोना चाहिए । हमारे महाराज कई बार तुम्हारी बड़ाई कर चुके हैं । वे तुमसे मिलकर बहुत खुश होंगे।”

लेकिन जब वे शेर के पास पहुंचे तो गधा घबरा गया । वह ठिठक कर खड़ा हो गया और लोमड़ी के बहुत कहने पर भी आगे नहीं बढ़ा । तब लोमड़ी ने खुद आगे बढ़कर शेर से कहा, “महाराज, महामंत्री बड़े विनीत हैं । आगे बढ़ने में संकोच करते हैं ।”

शेर ने कहा, “मुझे ऐसे ही विनीत लोग पसन्द हैं । मैं खुद महामंत्री के पास जाऊंगा ।” शेर बहुत भूखा था। मोटे-ताजे गधे को देखकर उससे रुका नहीं गया और वह गधे की ओर इपटा। गधा तो पहले से ही चौकन्ना था। वह जान बचाकर भाग खड़ा हुआ।

हाथ से शिकार निकल जाने पर शेर को बहुत गुस्सा आया । वह गरज कर लोमड़ी से बोला, “तुम्हारी चाल ठीक नहीं बैठी । शिकार हाथ से निकल गया । जाओ गधे को वापस लाओ । अगर नहीं लाई तो तुम्हारी खैर नहीं ।”

लोमड़ी ने कहा, “महाराज आपने बहुत जल्दी की, इसमें मेरा क्या दोष? आपको मेरे ऊपर भरोसा करना चाहिए था । मैं खुद उसे आपके पास ले आती। खैर मैं उसे फिर लाने की कोशिश करती हूं।”

लोमड़ी फिर गधे के पास पहुंची और बोली, “तुम बड़े अजीब हो । ऐसे क्यों भागे, महामंत्री को ऐसे करना शोभा नहीं देता ।”

गधे ने कहा, “मैं बेहद डर गया था । मैंने समझा कि शेर मुझे खाने के लिए झपट रहा है।“

लोमड़ी ने कहा, “तुम रहे गधे के गधे, अगर शेर तुम्हें मारना ही चाहता तो तुम बचकर थोड़े ही जा सकते थे । असल में राजा तुम्हारे कान में राज्य की कोई गुप्त बात बताने जा रहे थे। वह नहीं चाहते थे कि मैं सुनुँ । पर तुम भाग खड़े हुए। भला राजा ने अपने मन में क्या सोचा होगा। चलो चलकर राजा से क्षमा मांगो। महामंत्री बन कर तुम जंगल के सबसे शक्तिशाली जानवर बन जाओगे, जंगल के सारे जानवर तुमसे डरेंगे।”

गधे ने फिर लोमड़ी की बातों पर विश्वास कर लिया । वह उसके साथ शेर के पास फिर जाने को राजी हो गया।

गधा और लोमड़ी दोनों शेर के पास पहुंचे । शेर की भूख और भी बढ़ गई थी । पर इस बार उसने जल्दी नहीं की। वह गधे की ओर देखकर मुस्कराया और बोला, “स्वागत मेरे दोस्त। तुम मुझसे डरकर भाग क्यों गये ? आओ मेरे पास आओ। आज से तुम मेरे राज्य के महामंत्री हो ।”

गधा शेर की बातों में आ गया। वह जैसे ही शेर के पास पहुंचा शेर ने झपटकर उसके सिर पर ऐसा गहरा वार किया कि एक ही मार से गधे के प्राण निकल गये। इसके बाद शेर ने लोमड़ी को उसकी चतुराई पर शाबाशी दी। ज्योही वह गधे को खाने के लिए बढ़ा, लोमडी ने विनती की, “महाराज, आप बहुत भूखे है और थके है । आपके खाने का समय भी हो गया है। पर मेरी विनती है कि आप खाने से पहले स्नान अवश्य कर ले, फिर भोजन करके आराम करें।

शेर ने कहा, “तुम ठीक कहती हो । मैं स्नान करने जाता हूं, तब तक तुम गधे पर नज़र रखना । यह कहकर शेर नदी की ओर चला गया ।

लोमड़ी को भी बड़ी भूख लगी थी । उसने मरे हुए गधे की ओर देखकर सोचा “मैं इतनी चालाकी से इसको वापस न लाती तो शेर को भोजन कहां से मिलता । शेर ने तो अपनी मूर्खता से इसे खो ही दिया था। इस गधे के सबसे बढ़िया हिस्से पर तो मेरा अधिकार है ।” यह सोचकर लोमड़ी ने गधे का सिर फाड़कर दिमाग खा लिया ।

शेर स्नान कर लौटा तो गधे का सिर फटा देख उसको कुछ शक हुआ। उसने लोमड़ी से पूछा, “यहां कौन आया था ? गधे का सिर किसने फाड़ा ?”

लोमड़ी ने कुछ ऐसा मुंह बनाया मानो शेर की बात से उसको बहुत दुख हुआ हो। उसने कहा, “महाराज यह जानकर मुझको बहुत दुख हुआ कि आप अपनी आज्ञाकारिणी सेविका का विश्वास नहीं करते। मैंने गधे की लाश पर से नज़र तक नहीं हटाई । इसको किसी ने नहीं छुआ है। आपने ही तो बेचारे की खोपड़ी चकनाचूर कर दी थी ।”

शेर ने लोमड़ी पर विश्वास कर लिया। वह गधे को खाने जा ही रहा था, कि फिर गरज कर बोला, “इसका दिमाग कहां गया ? मैं तो पहले इसका दिमाग खाना चाहता था।”

लोमडी ने मुस्करा कर जवाब दिया, “महाराज, गधे के दिमाग नहीं होता । अगर इस गधे के सिर में दिमाग होता तो वह दूसरी बार मेरे साथ क्यों आता ?”

शेर को लोमड़ी की बात ठीक जान पड़ी । उसने शान्ति और मज़े से अपना भोजन किया।

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