बगलामुखी मंत्र | बगलामुखी कवच | बगलामुखी मंत्र जाप विधि | बगलामुखी ध्यान मंत्र | Baglamukhi Mantra | Baglamukhi Mala Mantra | Baglamukhi Beej Mantra

बगलामुखी मंत्र | बगलामुखी कवच | बगलामुखी मंत्र जाप विधि | बगलामुखी ध्यान मंत्र | Baglamukhi Mantra | Baglamukhi Mala Mantra | Baglamukhi Beej Mantra

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सभी ग्रहारिष्टों की शान्ति, शत्रुनाश एवं विपत्ति नाशन हेतु इस कलिकाल में बगलामुखी स्तोत्र से बढ़कर अन्य कोई दूसरा साधन नहीं है ।

बगलामुखी पूजा के फायदे | बगलामुखी मंत्र लाभ


मारण, मोहन, उच्चाटन एवं वशीकरण के लिये तो यह अमोघ बाण है । यद्यपि मंत्र, कवच, स्तोत्र आदि में तंत्रभेद से पाठ मिला करते हैं तथापि मंत्र महोदधि, धन्वंतरि तन्त्र शिक्षा, मंत्र महार्णव, आदि मंत्रशास्त्र के बृहद् ग्रन्थ ही प्रामाणिक माने जाते हैं । वनदुर्गा, महाविद्या, प्रत्यंगिरा तथा बगलामुखी स्तोत्रादि विशेष रूप से प्रचलित हैं ।

बगलामुखी मंत्र के नुकसान


कोई भी मंत्रानुष्ठान, जप, पाठ-विधि के ज्ञान बिना सिद्ध नहीं होता । महाभाष्यकार ने लिखा है कि – एकः शब्दः स्वरतो वर्णतो वा, मिथ्या प्रयुक्तो न तमर्थमाह । स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्र-शत्रुः स्वरतोऽपराधात् ।।

अर्थात् एक भी अशुद्ध शब्द चाहे स्वर हो या व्यंजन, व्यर्थ में प्रयोग किया गया या बिना अर्थ जाने कोई भी वाणीरूपी वज्र, यजमान का वैसे ही अनिष्ट करता है जैसे इन्द्र ने वृत्रासुर को मारा था । अतः बिना अर्थ या विधि जाने कोई भी देवी (शक्तियों) का पाठ जप नहीं करना चाहिये ।

बगला-साधन


अब बगला साधन के मंत्र, ध्यान, यंत्र, जप, होम, स्तव, कवच आदि का वर्णन निम्न प्रकार से है ।

बगलामुखी की उपासना में विशेष बात यह है कि साधक पीतवर्ण (पीलेरंग) के वस्त्र पहनकर, पीले फूलों से देवी का पूजन करे तथा मन्त्र जप की संख्या प्रतिदिन निश्चित रक्खे, यानि प्रथम दिन से जितनी संख्या आरम्भ करे उसी क्रमानुसार प्रतिदिन उतनी ही संख्या रहनी चाहिये तथा जपमाला के विषय में भी लिखा है कि –

हरिद्रा मालया कुर्यात् जपं स्तम्भन – कर्मणि ।
स्फटिकैः पद्मबीजैश्चैव रुद्राक्षैः शुभकर्मणि ।।

बगला साधन के मंत्र, ध्यान, यंत्र, जप-होम, स्तव, कवच आदि का वर्णन निम्नलिखित है ।

बगलामुखी मंत्र


ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं स्तम्भय जिह्वां कीलय
कीलय बुद्धिं नाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।।

इस षट्त्रिंशदक्षर मंत्र के द्वारा बगलामुखी की पूजा-आराधना करे ।

बगलामुखी ध्यान


मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेदी-
सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम् ।
पीताम्बराभरणमाल्यविभूषिताङ्गीं
देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं
वामेन शत्रून् परिपीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।

टीका – सुधासागर के मणिमय मण्डप में रत्ननिर्मित वेदी के ऊपर जो सिंहासन है, बगलामुखी देवी उसी सिंहासन पर विराजमान हैं । यह देवी पीतवर्ण और पीले वस्त्र पहिने हुई हैं, पीतवर्ण के गहने और पीतवर्ण की माला से विभूषित हैं, इनके एक हाथ में मुद्गर और दूसरे हाथ में वैरी (शत्रु) की जिह्वा (जीभ) है । अपने बायें हाथ में शत्रु की जीभ का अग्रभाग धारण करके दाहिने हाथ के गदाघात से शत्रु को पीड़ित कर रही हैं । ये बगला देवी पीतवस्त्र से आवृत और दो भुजावाली हैं ।

बगलामुखी यन्त्र


त्र्यस्त्रं षडस्त्रं वृत्तमष्टदलपद्मभूपुरान्वितम् ।

प्रथम त्रिकोण और उसके बाहर षट्कोण अंकित करके वृत्त और अष्टदल पद्म अंकित करे । उसके बहिर्भाग में भूपुर अंकित करके यंत्र प्रस्तुत करे । यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखना चाहिये ।

बगलामुखी मन्त्र का जप-होम


पीलेवस्त्र पहिनकर हल्दी की ग्रन्थि से निर्मित्त अर्थात् हल्दी की गाँठ की बनी माला से नित्यप्रति एक लाख जप करे और पीलेवर्ण के पुष्पों से उसका दशांश होम करे ।

बगला-स्तोत्र (स्तव)


बगला सिद्धविद्या च दुष्टनिग्रहकारिणी ।
स्तम्भिन्याकर्षिणी चैव तथोच्चाटनकारिणी ।।
भैरवी भीमनयना महेशगृहिणी शुभा ।
दशनामात्मकं स्तोत्रं पठेद्वा पाठयेद्यदि ।।
स भवेत् मंत्रसिद्धश्च देवीपुत्र इव क्षितौ ।।

टीका – बगला, सिद्धविद्या, दुष्टों का निग्रह करनेवाली, स्तम्भिनी, आकर्षिणी, उच्चाटन करनेवाली, भैरवी, भयंकर नेत्रोंवाली, महेश की गृहिणी तथा शुभा, यह दशनामात्मक देवी स्तोत्र का जो पुरुष पाठ करता है अथवा दूसरे से पाठ कराता है, वह मन्त्रसिद्ध होकर पार्वती के पुत्र की भाँति पृथ्वी में विचरण करता है ।

बगलामुखी कवच


ओं ह्रीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीबगलामुखी ।
ललाटे सततं पातु दुष्टनिग्रहकारिणी ।।

टीका – ‘ॐ ह्रीं’ यह बीज मेरे हृदय की, श्रीबगलामुखी दोनों पैरों और दुष्ट निग्रहकारिणी मेरे ललाट की सदैव रक्षा करें ।

रसनां पातु कौमारी भैरवी चक्षुषोर्मम ।
कटौ पृष्ठे महेशानी कर्णौ शङ्करभामिनी ।।

टीका – कौमारी मेरी जीभ की, भैरवी नेत्रों की, महेशानी कमर तथा पीठ की और महेशभामिनी मेरे कानों की रक्षा करें ।

वर्जितानि च स्थानानि यानि च कवचेन हि ।
तानि सर्वाणि मे देवी सततं पातु स्तम्भिनी ।।

टीका – जो-जो स्थान कवच में नहीं कहे गये हैं, स्तम्भिनी मेरे उन सभी स्थानों की सदा रक्षा करें ।

अज्ञात्वा कवचं देवी यो भजेद्-बगलामुखीम् ।
शस्त्राघातमवाप्नोति सत्यं सत्यं न संशयः ।।

टीका – हे देवि ! इस कवच को बिना जाने जो पुरुष बगलामुखी की उपासना करता है, उसकी शस्त्राघात से मृत्यु होती है, इसमें संशय नहीं, यह सत्य है ।

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