Best Method For Drinking Water | पानी पीने का नियम

पानी पीने का नियम

पानी पीने का नियम

पानी पीने का नियम : भोजन के अन्त में या बीच में पानी पीना विष पीने के बराबर है । कम से कम डेढ़ घण्टे के बाद पानी पीना चाहिए । खाया हुआ भोजन डेढ़ घण्टे तक जठर अग्नि के प्रभाव में रहता है ।

किसान और मेहनत के काम करने वाले लोगों के लिए 1 घण्टे बाद पानी पीना चाहिए । जानवरों के शरीर में चार घण्टें जठर अग्नि का प्रभाव होता है । पहाड़ी क्षेत्र में अग्नि का असर दो से ढाई घण्टे तक रहेगा । भोजन के पहले पानी कम से कम 40 मिनट या अधिक से अधिक एक घण्टे पहले पी लेना चाहिए । चाहें जितना पानी पी सकते हैं ।

सुबह उठते ही दाँत-मुँह धोये बिना सबसे पहले पानी पियें

यदि आपके भोजन में दो अन्न हैं तो एक अन्न की समाप्ति और दूसरे अन्न की शुरूआत के पहले एक से दो घूंट पानी पी सकते हैं । भोजन के अन्त में गला साफ करने के लिए एक से दो घूंट पानी पी सकते हैं ।

भोजन के अन्त में सबसे अच्छी चीज मट्ठा-छाछ है, जिसको पीने का सही समय दोपहर के भोजन के बाद का है । दूसरी सबसे अच्छी चीज है – दूध (देशी गाय का) जिसको शाम के खाने के बाद पी सकते हैं ।

दूध सोते समय पियें तो और अच्छा है । तीसरी सबसे अच्छी चीज है, मौसमी फल के रस जिसका सही समय है सुबह के भोजन के बाद पीना चाहिए |

कोल्ड स्टोरेज के फलों का रस सर्वनाश करेगा । हमारे पेट में जो रस बनते हैं, इनको पचाने के लिये वो इसी क्रम (समय) में बनते हैं । जो बच्चे माँ के दूध पर निर्भर हैं । (3 साल तक) उनके ऊपर यह नियम लागू नहीं होता है क्योंकि बच्चों के अन्दर रसों का निर्माण उनकी उम्र के डेढ़-दो साल बाद ही शुरू होता है ।

फल खाना जूस पीने से बहुत अच्छा माना गया है । क्योंकि जूस में सारे फाइबर बाहर निकल जाते हैं । फाइवर ब्लड़ को साफ करता है । बड़ी आँत, छोटी आँत को साफ करता है । हृदय घात, ट्राईग्लिसराइड, कोलेस्ट्राल नियंत्रित करेगा । जूस में थोड़ा काला नमक डालकर पियें या अदरक का रस अथवा चूना डालकर पियें, कभी भी सर्दी नहीं होगी ।

1 गिलास जूस में चौथाई चम्मच अदरक का रस, काला नमक कनक (गेहूँ) के दाने के बराबर और चूना भी इतना ही मिलाकर लें ।

पानी हमेशा चुस्कियाँ ले लेकर पियें अर्थात पानी हमेशा घूँट-घूँट करके पियें । हमारे शरीर में भोजन पचाने के लिए अग्नि होती है और अग्नि को तीव्र करने के लिये अम्ल होता है और मुँह में क्षार बनता है । लार के रूप में अम्ल और क्षार आपस में मिलकर न्युट्रल हो जाते हैं । अम्ल का मतलब जिनका PH 7 से कम है और क्षार का मतलब जिनका PH 7 से अधिक है । न्युट्रल का मतलब जिनका PH 7 है । पानी न्युट्रल है, पेट हमेशा पानी के जैसा रहे तो सबसे अच्छा है ।

पानी घूँट-घूँट कर पीने से लार अधिक मात्रा में पेट में जायेगी तो अम्ल को शान्त करने में मदद होगी जिससे आपका पेट न्युट्रल रहेगा । सभी जानवर पशु, पक्षी घूँट-घूँट कर या चाट-चाट कर पानी पीते हैं इसलिए ये मनुष्य से ज्यादा स्वस्थ हैं । पानी घूँट-घूँट कर पीने से वजन नहीं बढ़ता है अर्थात शरीर की बनावट के हिसाब से सन्तुलित रहता है ।

ठण्डा पानी कभी मत पियें । शरीर के तापमान के बराबर का ही पानी पियें मतलब गुनगुना पानी पियें अर्थात 27° से 37° के बीच का ही पानी पियें (मौसम के हिसाब से)। मिट्टी के बर्तन का पानी 27° तापमान का होता है । ऐसा मिट्टी की तासीर के कारण होता है ।

ठण्डा पानी पीने से पेट को उसे सामान्य तापमान पर लाने के लिए अतिरिक्त उर्जा की जरूरत होती है और अतिरिक्त ऊर्जा के लिए अतिरिक्त खून की जरूरत होती है । जिससे की अलग-अलग हिस्सों से इसकी पूर्ति होती है । इससे उन हिस्सों में खून की कमी होने लगती है और ऐसा बार-बार करने से कई बीमारियाँ शरीर में जन्म लेने लगती हैं । इस क्रिया में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सबसे ज्यादा दिमाग से रक्त आता है, उसके बाद हृदय का रक्त आता है । रक्त की कमी के कारण अंग काम करना बन्द कर देते हैं । इसलिए इसके कारण ब्रेन हैमरेज, लकवा, हृदय घात जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं ।

ठण्डा पानी पीने से सबसे पहली बीमारी कोष्ठबद्धता की होती है । क्योंकि ठण्डा पानी पीते रहने से बड़ी आँत संकुचित हो जाती है । फ्रिज का पानी, बर्फ डाला हुआ पानी और आइस्क्रीम जैसी वस्तुएं न खाएं । सुबह गुनगुना पानी पियें अथवा तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पियें (सिर्फ सुबह)। प्लास्टिक और एल्युमिनियम के बर्तन का पानी कभी मत पियें पानी का अपना कोई गुण नहीं होता है इसे जिसमें मिलाया जाता है उसी का गुण धारण कर लेता है ।

पानी हमेशा बैठकर ही पियें । 18 वर्ष से कम के लोगों के लिए 750 ग्राम, 18 वर्ष से 60 वर्ष के बीच के लोगों के लिए 1 से सवा लीटर और 60 वर्ष से अधिक के लोगों के लिए 750 ग्राम पानी पीना आवश्यक है ।

शरीर में तांबे की अधिकता की स्थिति में सुबह का पानी ताम्रपात्र का न पियें । ताम्बे के बर्तन का पानी पिते समय नंगे पाँव न रहें, प्लास्टिक जैसी ही किसी वस्तु को पैरों में धारण करके ही पियें | ताम्बे पानी पीते समय जमीन से शरीर का सिधा सम्पर्क न हो ।

खड़े होकर और जल्दी-जल्दी पानी पीने से दो गम्भीर रोग होते हैं, जिसमें पहला है हार्निया (आँत का उतरना) और दूसरा है अपेन्डिसाइटिस (अपेन्डिक्स)। 60 वर्ष से अधिक उम्र में एक बिमारी हाइड्रोसिल की भी हो सकती है । पानी हर व्यक्ति अपने वजन में 10 से भाग देकर 2 घटाकर दिनभर में पानी पीने की मात्रा की गणना कर सकता है । सामान्य रूप से 4-5 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए ।

एक साथ गटागट पिया हुआ पानी किडनी पर सबसे अधिक दबाव देता है । क्योंकि शरीर में पानी को छानने का काम किडनियां (दोनों) करती हैं । इस प्रकार पानी पीने से शरीर को कोई लाभ नहीं होता है । ऐसा अमेरिका के दो वैज्ञानिकों के शोध से पता चला है । जापान की सरकार ने अपनी चिकित्सा पद्धति में इसको शामिल किया है ।

नाभि पूरे शरीर का केन्द्र है और बैठने की स्थिति में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल नाभि पर लगता है और खड़े हो जाने की स्थिति में गुरूत्व केन्द्र नाभि से खिसक जाता है । गुरूत्व बल का नाभि पर प्रभाव होने से इसका प्रभाव जठराग्नि पर पड़ता है जिसके कारण सुखासन में बैठने की स्थिति में कुछ भी खाने-पीने से जल्दी और पूरी तरह हजम हो जाता है । क्योंकि ऐसी स्थिति में एक अतिरिक्त बल काम करता है । किसी मजबूरी की स्थिति में पानी हमेशा झुककर पियें । पानी पीते समय या कुछ भी खाते समय गुरूत्व बल हमेशा नाभि के नजदीक रहे । प्याऊ की व्यवस्था हजारों सालों से चल रही है ।

शरीर को अच्छी तरह काम करने के लिए शरीर को कम से कम 27° और अधिक से अधिक 47° का तापमान चाहिए । लगातार ठण्डा पानी पीते रहने से जठराग्नि मन्द हो जाती है । बड़ी आँत और छोटी आँत सिकुड़ जाती है ।

बारिका पानी सबसे अच्छा होता है । यह पानी एक साल तक आराम से पी सकते हैं बिना कोई केमिकल मिलाये । बीच-बीच में फिटकरी या चूने के प्रयोग से इसकी शुद्धता को बनाये रख सकते हैं । इसके बाद बहती हुई नदियों का पानी जो बर्फीली पहाड़ियों से हो कर गुजरता है अथवा पहाड़ों से होकर आता है, सबसे अच्छा होता है । इसके बाद तालावों का पानी अच्छा है जहाँ बारिस का पानी इकट्ठा होता है ।

नल का पानी जो बारिस के पानी से छनकर आता है । MCD के पानी को बिना उवाले न पियें । RO के पानी की गुणवत्ता कम हो जाती है क्योंकि उसके शुद्धिकरण में प्रयोग किये जाने वाले केमिकल पानी की पोषकता को समाप्त कर देते हैं । RO का पानी साफ होता है लेकिन शुद्ध नहीं होता है । RO के पानी में क्लोरिन-फ्लोरिन जैसे केमिकल पानी को साफ करने के लिए इस्तेमाल होते है जो की हमारे शरीर की दृष्टि से ये सारे केमिकल बहुत ही हानिकारक है । इसलिए पानी को उबालकर पीये सबसे अच्छा रहेगा । रिसायकल किया हुआ पानी बिना उबाले कभी न पियें । ऐसे पानी को उबालने के बाद इसकी गुणवत्ता और अधिक बढ़ जाती है ।

होली के बाद और बारिश के पहले दिन तक मिट्टी के बर्तन का पानी पियें बारिस के पहले दिन से बारिश के अन्तिम दिन तक ताबे का बर्तन में रखा हुआ पानी पीना सबसे अच्छा है । बारिश समाप्त होने के दिन से होली के दिन तक सोने के बर्तन में रखा हुआ पानी अच्छा होता है ।

मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों के लिए सोने का पानी बहुत अच्छा होता है । अल्प विकसित मस्तिस्क की बीमारी में सोने के बर्तन में रखा हुआ पानी अच्छा होता है । कफ की सभी बीमारियों के लिए सबसे अच्छा है सोने के बर्तन में रखा हुआ पानी । सर्दी, खांसी, जुकाम, माइग्रेन (लेफ्ट-राइट) ये सारी कफ की बीमारियाँ हैं ।

छाती से लेकर सिर तक सारे गहने सोने के होते हैं ताकि कफ नियंत्रित रहे । छाती से नीचे सभी गहने चाँदी के होते हैं । ग्रहों की स्थिति से निपटने के लिए सोने की अंगुठियाँ पहनी जाती है अन्यथा अगुठियाँ चाँदी की होनी चाहिए ।

नींद न आना और अवसाद की बीमारियों के लिए शीशे के बर्तन में रखा हुआ पानी सबसे अच्छा होता है ।

एक बार पानी गर्म करके सुबह से शाम तक पीया जा सकता है । ज्वाइन्डिस (पीलिया) की बिमारी के लिए सबसे अच्छा पानी बारिश का होता है ।

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