क्लिनिकल डेथ | Clinical Death Definition | क्रायोबायोलॉजी | Cryobiology

क्लिनिकल डेथ | Clinical Death Definition | क्रायोबायोलॉजी | Cryobiology

सन् १९६४ में प्रकाशित पुस्तक ‘द प्रास्पेक्ट ऑफ इम्मार्टेलिटी’ में अमरीकी भौतिक वैज्ञानिक रॉबर्ट सी.डब्ल्यू. एटिजर ने मौत के बाद जिन्दगी की संभावनाओं को नई व्याख्या दी है । हृदय गति बंद हो जाने, सांस रुक जाने और दिमागी तरंगों के खत्म हो जाने पर हुई मौत को क्लिनिकल डेथ (Clinical Death) कहते हैं ।

इस तरह की मौत के बाद अगर लाश को नष्ट होने से बचाया जाता है, तो उसे एटिजर के अनुसार सदियों तक सुरक्षित रखा जा सकता है । मनुष्य के शरीर को भविष्य में पुनर्जीवित किया जा सकता है, अगर उन्हें अच्छी तरह सुरक्षित रखा जा सके । एटिजर के सिद्धांत तथा उनकी इस परिकल्पना को क्रायोबायोलॉजी (निम्न ताप जीव विज्ञान) (Cryobiology) कहते हैं । इस सिद्धांत के अनुसार लाश को अत्यधिक ठंडे वातावरण में रखा जाता हैं ।

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मृत्यु के तुरन्त बाद लाश को ठंडा करके उसे द्रव नाइट्रोजन में सुरक्षित रखा जाता है । द्रव नाइट्रोजन में रखने से पहले शरीर से सारा खून बाहर निकाला जाता है । 10 डिग्री सेंटीग्रेड तक ठंडा करके उनकी शिराओं तथा धमनियों में रिंगर्स लैक्टेट वाला ग्लिसरॉल भर दिया जाता है ।

इसके पश्चात् लाश को एल्युमिनियम की पतली चादर में लपेट कर ठोस कार्बन डाइऑक्साइड वाले बक्से में रखा जाता है, जहां उसका तापमान घट कर -७९ डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है । इसके बाद द्रव नाइट्रोजन से भरी कैप्सूल में इस शव को रखा जाता है, जहां तापमान घट कर -१९६ डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है ।

अमेरिका में कई संस्थाएं शव-संरक्षण की इस नई विधि ‘कैप्सूल’ पर काम कर रही हैं । यद्यपि इसके रख-रखाव पर काफी खर्च आता है, परन्तु अपने प्रिय संबंधियों के फिर से जी उठने की उम्मीद में कई व्यक्ति यह खर्च वहन कर रहे हैं । कई व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वयं अपना शव सुरक्षित रखवाना चाहते हैं, ताकि भविष्य में बेहतर इलाज से शायद वे फिर से जीवित हो पाएं ।

ऐसे ही श्रीमती हालपर्ट की मां कलारा डॉस्टल ने एक स्वप्न देखा था कि वह अपनी मृत्यु के बाद एक दिन जीवित हो उठेंगी । श्रीमती हालपर्ट ने अपनी मां की यह अंतिम इच्छा पूरी की तथा उनका शव आज भी कैप्सूल में सुरक्षित है । इस तरह पुनर्जीवन होने की उम्मीद में अमेरिका में सुरक्षित २४ लाशें उस दिन का इंतजार कर रही हैं, जब विज्ञान इतना विकसित हो पाएगा कि वह उनमें फिर से प्राण शक्ति फूंक सकेगा ।

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