ग्रह हमे कैसे प्रभावित करते है | How Do Planets Affect Us

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ग्रह हमे कैसे प्रभावित
करते है 

How Do
Planets Affect Us


संसार का शायद
ही कोई ऐसा बुद्धिमान व्यक्ति हो
, जो ग्रहो के प्रभाव का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नहीं
मानता हो । विश्व की अधिकांश जनसंख्या अंध-विश्वासी है। इस कारण ग्रहो के बारे में
कितनी ही गलत धारणाए प्रचलित हैं। प्रश्न उठता है कि एक गज़ की दूरी पर रखी आग
हमें हानि नहीं पहुंचा सकती
, तो करोड़ों मील दूर अपनी कक्षा
में परिक्रमा करता ग्रह
, हमे किस प्रकार हानि या लाभ पहुंचाते
हैं
? और फिर ग्रहो के रत्न-धारण, जप आदि
से क्या लाभ है
?

ब्रह्मांड
असंख्य नीहारिकाओं से भरा पड़ा है जिसमें एक नीहारिका है – मंदाकिनी । इस मंदाकिनी
में भी असंख्य आकाश-गंगाएं हैं और इन्हीं में से एक आकाश गंगा का निवासी है हमारा
सौर-मंडल । सौर-मंडल का प्रधान अवयव हमारा सूर्य है जो सर्वाधिक गर्म और प्रकाशवान
तारा है। सूर्य से लाखों गुना बड़े और प्रकाशवान तारे भी ब्रह्मांड में हैं
, किंतु वे सूर्य से भी
करोड़ों मील दूर हैं
, उनका प्रकाश पृथ्वी पर लाखो वर्ष बाद
ही पहुंच पाता है अतः सर्वाधिक निकटवर्ती तारा सूर्य ही हमें सर्वाधिक गर्म और
प्रदीप्त प्रतीत होता है। सूर्य पराबैगनी और अवरक्त किरणों से निर्मित श्वेत
प्रकाश का प्रधान और अक्षय भंडार है । सूर्य से आग की लपटें उठती हैं जिसके कारण
प्रकाश एवं ताप-ऊर्जा का विकिरण होता रहता है। सभी ग्रह सूर्य की आकर्षण शक्ति के के
कारण उसकी निरंतर परिक्रमा करते रहते हैं। इस प्रकार सभी ग्रहो का वह आधा भाग जो सूर्य
के सामने रहता है
, एक परावर्तक सतह का काम करता है । चूंकि
सभी ग्रहो के धरातल विभिन्न रंगों के हैं अतः सूर्य के श्वेत प्रकाश को जब कोई
ग्रह परावर्तित करता है
, तो श्वेत प्रकाश उसी रंग का हो जाता
है
, जिस रंग का ग्रह है और इस प्रकार सभी ग्रह अपने-अपने
रंगों के अनुसार सौर-किरणों को परावर्तित और परिवर्तित करके वायुमंडल में भेजते
हैं। जिन्हें वर्णक्रम कहते हैं।

सौर-मंडल में
सात प्रधान ग्रह सूर्य
, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि के वर्णक्रम क्रमशः
लाल
, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैंगनी
होते हैं और इन्हीं का मिश्रित प्रकाश हमें वायु-मंडल से प्राप्त होता है जिसे हम श्वेत
सौर किरण के रूप में जानते हैं । सौर किरणों के इन वर्णक्रमों को प्रिस्म द्वारा
देखा जा सकता है ।

वेदों में भी
कहा है कि
, एक चक्रवाले सूर्य-रथ में सात घोडे जड़े हुए हैं। किंतु वास्तव में एक ही सप्तनाम का घोड़ा रथ को चलाता है। यहां सूर्य के
सात घोड़े सात वर्णक्रमों के प्रतीक हैं तथा सप्त नाम का घोड़ा सूर्य के श्वेत
प्रकाश का ।

पृथ्वी पर जीवन
संचालन के लिए तीन ऊर्जा की सबको आवश्यकता होती है – ध्वनि ऊर्जा
, ऊष्मा ऊर्जा एवं प्रकाश
ऊर्जा । इनमें ध्वनि ऊर्जा तो हम शारीरिक क्रिया एवं प्राकृतिक अवयवो से जुटा लेते
हैं किंतु दो प्रधान ऊर्जाओं के लिए हमें सूर्य और इसके ग्रहों पर निर्भर रहना
पड़ता है क्योंकि इन्हीं के प्रकाश से हमारी विभिन्न शारीरिक  क्रियाए सम्पन्न होती हैं । अतः जीवन संचालन में
ग्रहो की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

            

उदित
चंद्र

रश्मियों के
संचार में चंद्रमा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। चंद्रमा हमारे लिए दोहरे परावर्तक
का काम करता है। एक तो यह सूर्य का प्रकाश परावर्तित कर हम तक पहुंचाता है दूसरा
यह जिस नक्षत्र में स्थित रहता है उसके तारापुंजों के प्रकाश को भी हम तक पहुंचाने
वाला यह अकेला ग्रह है । सूर्य से प्रतिदिन यह १२ अंश दूर जाता है या निकट आता है
, जब यह दूरगामी होता है तो
उसी अनुपात में इसकी परावर्तन क्षमता कम होते-होते अमावस्या को लुप्त हो जाती है ।
जब यह सूर्य के निकट आता है
, उसी तरह बढ़ते-बढ़ते पूर्ण परावर्तक
हो जाता है जिसे पूर्णिमा कहते हैं। चंद्रमा के जितने हिस्से से प्रकाश का
परावर्तन होता है
, उतना ही हमें दिखता है और उतना ही उदित चंद्र
कहलाता है।

 

जन्म-कुंडली

जन्म-कुंडली
ग्रहों की आकाशीय स्थिति दर्शाती है । इसके भाव जो प्रत्येक ३० अंश के होते हैं
, हमें ग्रहों के बारे में यह
जानकारी देते हैं कि ग्रह का सूर्य के अभिमुख कितना झुकाव है और उससे कितनी
सौर-रश्मि वर्गीकृत होकर परावर्तित होंगी। इस प्रकार जितना अधिक प्रकाश परावर्तन
होगा
, ग्रह उतने ही अधिक शक्तिशाली कहलाएंगे। वस्तुतः हर प्रकाश
की शरीर की विभिन्न क्रियाओं में अलग-अलग भूमिका होती है। किसी विशेष वर्णक्रम के
द्वारा जो क्रिया संपन्न होती है वह उस संबंधित ग्रह का फल या प्रभाव कहलाएगी।

मंगल का काम है
रक्त-परिसंचालन । मंगल का वर्णक्रम यदि समुचित मात्रा में परावर्तित होता रहा तो रक्त-परिसंचालन
नियमित होगा और शरीर स्वस्थ होगा
, किंतु यदि समुचित वर्णक्रम न मिला तो रक्त से संबंधित दोष एवं
स्वभाव जैसे-चंचलता
, क्रोध, हठ,
चिड़चिड़ापन, निराशावादिता आदि आ जाती है । तब
हम मंगल के वर्णक्रमों को आकर्षित और अवशोषित करने के लिए मूंगा धारण करते हैं।

अधिक स्पष्ट
करने के लिए हम ऐसे समझ सकते हैं कि मंगल यदि पूर्ण परावर्तक एक विशेष समय में है
तो पीतवर्णक्रम का विकिरण एवं उसकी आपूर्ति समुचित मात्रा में होगी और जातक को
पीला वर्णक्रम मिलने के कारण धनात्मक अनुभूति होगी
, किंतु यदि मंगल आंशिक
परावर्तन करता है तब पीतवर्णक्रम वायु-मंडल में कम मात्रा में रहेगा। इस प्रकार कम
वर्णक्रम मिल पाने के कारण जातक को ऋणात्मक अनुभूति होगी। अतः संतुलन बनाये रखने
के लिए हम मूंगा धारण करते हैं जो वायुमंडल से पीतवर्णक्रम को अवशोषित कर हमारे
शरीर में पहुंचाता है
, इसी प्रकार ग्रहों की परावर्तन क्षमता
का अनुमान हम कुंडली के भावों से करते हैं।

        

लग्न

रश्मि का
प्रधान-स्त्रोत सूर्य पूर्व में उदित होता है। प्रथम परावर्तन पूर्वी क्षितिज पर
होता है और सूर्य के सर्वाधिक निकटवर्ती और अभिमुख क्षितिज होने के कारण पूर्वी
क्षितिज में उदित राशि को लग्न कहते हैं और इसमें स्थित ग्रह तथा इसका प्रभाव जातक
पर अत्यधिक होता है। इसी कारण लग्न को प्रधान माना है ।

प्रातःकाल में
सूर्य के अभिमुख खड़े होकर हम यदि आंखों को अधखुली रखकर सूर्य की तरफ देखें तो
प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन हमारी पुतलियों द्वारा होता है और इस कारण हम
क्रमशः सभी वर्णक्रमों को देख सकते हैं ।

चिकित्सा
क्षेत्र में रोगियो को रश्मि-चिकित्सा द्वारा शीघ्र आरोग्य लाभ करते देखा जा सकता है।
इस पद्धति में सात वर्णों की बोतलों में जल इत्यादि भरकर प्रकाश में रखा जाता है ।
इस प्रकार वह जल उस वर्णक्रम को अवशोषित कर लेता है और उसे उपयुक्त रोगी को देने
पर रोग से मुक्ति हो जाती है।

 

यहां एक
जिज्ञासा और होती है
, क्या वस्तुएं रंगीन होती हैं ? वास्तव में कोई वस्तु
किसी विशेष रंग की अवशोषक होती है अतः उसे उस रंग का मानते हैं जबकि कोई वस्तु
रंगीन नहीं होती है। उदाहरण के लिए लाल रंग की किसी वस्तु पर अगर पीला शीशा डाला
जाए तो वह वस्तु नारंगी दिखेगी। अतः रंगों का बदलना माध्यम पर निर्भर करता है। इस
प्रकार रंगों के कारण और वर्णक्रमों के कारण ही ब्रह्मांड में जीवों की दिनचर्या
संपादित होती है
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