कबीर के दोहे | Kabir Ke Dohe
कबीर के दोहे का संकलन | Kabir Ke Dohe Ka Sankalan
जाति न पुछौ साधु की
जाति न पूछौ साधु की, जो पूछौ तो ज्ञान ।मोल करो तरवार का, परा रहन दो म्यान ||
गंग-जमुन उर अंतरै, सहज सूंनि ल्यौ घाट ।
तहाँ कबीरे मठ रच्या, मुनिजन जौवें बाट ||
मोटे भाग कबीर के, तहॉ रहे घर छाइ ॥
कबीर हरदी पीयरी, चुना ऊजल भाइ ।
राम सनेही यूँ मिले, दुन्यू बरन गवाइ ॥
ज्ञानी भुगतै ज्ञान करि, अज्ञानी भुगते रोय ||
तन कौ जोगी सब करैं, मन कौ बिरला कोइ ।
सब सिधि सहजै पाइए, जे मन जोगी होइ ||
भेद ज्ञान साबुन भया, सुमिरन निर्मल नीर ।
अंतर धोई आत्मा, धोया निर्गुन चीर ॥
कबिरा तेई पीर हैं, जो जानै पर पीर ।
जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर ॥