कबीर के दोहे | Kabir Ke Dohe
कबीर के दोहे का संकलन | Kabir Ke Dohe Ka Sankalan
हम वासी उस देश कौ
हम वासी उस देश कौ, जहाँ अविनाशी की आन ।सख-दुख कोइ ब्यापै नहीं, सब दिन एक समान ॥
हम वासी उस देश कौ, जहाँ बारा मास बिलास ।
प्रेम झरै बिलसै कँवल, तेज पुंज परकास ॥
नीझर झरै महा अमी, भींजत है सब अंग।।
शब्द मिलावा होय रहा, देह मिलावा नाहिं ॥ हम वासी उस देश कौ, जहाँ गगनि-धरनि दोऊ नाहिं ।
भॅवरा बैठा पंख बिनु, देखा पलकों माहिं ॥ हम वासी उस देश कौ, जहाँ पार ब्रम्ह का खेल ।
दीपक जरै अगम्य का, बिन बाती बिन तेल ॥ हम वासी उस देश कौ, जहाँ पार ब्रह्म का कूप ।
अविनाशी विनशै नहीं, आवै जाय सरूप ॥