मधुसूदन राव | Madhusudan Rao

मधुसूदन राव | Madhusudan Rao

घटना है, आज से लगभग १०० वर्ष पहले की, पुरी के जिला हाई स्कूल की। अच्छे विद्यार्थियों को प्रोत्साहन देने के लिए जिला मजिस्ट्रेट एक विशेष परीक्षा लेते थे, जिसमें चार विषय होते थे और हर विषय के पांच प्रश्न। सभी प्रश्न अनिवार्य होते थे, अर्थात कुल २० प्रश्न होते थे, हर प्रश्न में सबसे अधिक अंक पाने वाले विद्यार्थी को पांच रुपया पुरस्कार दिया जाता था | इस तरह बीसों प्रश्नों में प्रथम होने पर १०० रुपये पुरस्कार प्राप्त किया जा सकता था। एक विद्यार्थी ने लगातार तीन वर्ष तक सौ-सौ रुपया पुरस्कार जीता। इस प्रतिभाशाली विद्यार्थी का नाम था – मधुसूदन राव, जो आगे चलकर आधुनिक उड़िया साहित्य का भी उतना ही प्रतिभाशाली कवि बना।

Madhusudan%2BRao

मधुसूदन राव का जन्म


मधुसूदन राव का जन्म २९ जनवरी १८५३ को हुआ था। उनके पिता मामूली हैसियत के आदमी थे और पुलिस में काम करते थे। बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। पुलिस में काम करने के कारण उनके पिता का जगह-जगह तबादला होता रहता था। इसलिए बालक मधुसूदन का भी स्कूल बदलता रहता और उनकी पढ़ाई अनियमित चल रही थी |

मधुसूदन राव की शिक्षा


जब उनके पिता भुवनेश्वर में नियुक्त थे, तो उड़ीसा डिवीजन के स्कूलों के इंस्पेक्टर भुवनेश्वर गए और थाने में ठहरे। वहीं उन्होंने बालक मधुसूदन राव को खेलते हुए देखा और उससे बहुत प्रभावित हुए। उसे वह अपने साथ पुरी ले गए। वहां उसे जिला हाई स्कूल में दाखिल करा दिया। पुरी के स्कूल में मधुसूदन ने अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया। हर कक्षा में वह प्रथम आते थे। वहीं उन्होंने तीन बार लगातार सौ-सौ रुपये का पुरस्कार जीता।

सन् १८६९ में उन्होंने मैट्रिक-परीक्षा पास की। एफ.ए. करने के लिए उन्हें छात्रवृत्ति मिला। 1871 में उन्होंने एफ.ए. की परीक्षा पास की, उन दिनों उड़ीसा में बी. ए. की पढ़ाई की व्यवस्था थी ही नहीं।

मधुसूदन बी.ए. करने कलकत्ता जाना चाहते थे, परंतु उनके पिता उन्हें इतनी दूर भेजने को राजी नहीं हुए। इसलिए उन्होंने नौकरी करनी शुरू की| याजपुर मिडिल इंग्लिश स्कूल में वह हेडमास्टर बने। यहीं फकीरमोहन सेनापति से उनका परिचय हुआ। स्कूल में अध्यापक बनकर उन्होंने इस बात को अच्छी तरह समझा, कि यदि मातृभाषा में शिक्षा न दी जाए तो बच्चों को कितनी अधिक कठिनाई होती है।

मधुसूदन राव के कार्य


उस समय उड़िया में पाठ्य-पुस्तकें थी ही नहीं। इस बीच उनका तबादला बालेश्वर हो गया। वहीं राधानाथ राय भी पहुंच गए। फकीरमोहन सेनापति वहां पहले से ही संवादवाहिका के संपादक के रूप में उड़िया भाषा और साहित्य का विकास कर रहे थे | इन तीनों ने मिलकर उड़िया भाषा के प्रचार-प्रसार और विकास में जो योगदान दिया, वह अनुपम है।

बालेश्वर में रहते हुए ही श्री राधानाथ राय के सहयोग से उन्होंने बच्चों के लिए उड़िया भाषा में पहली पाठ्य-पुस्तकें लिखी | तभी उड़िया भाषा उड़ीसा के स्कूलों में शिक्षा का माध्यम बनी। ये पाठ्य-पुस्तके लिखते समय मधुसूदन राव ने दो उद्देश्य अपने सामने रखे। एक तो यह कि बच्चे पढ़ना, लिखना और हिसाब लगाना सीख लें, और दूसरा यह कि इन किताबों को पढ़कर उन्हें ऐसी शिक्षा भी मिले, जिससे आगे चलकर वे अपना जीवन सच्चाई और ईमानदारी से बिता सकें।

बालेश्वर के बाद वह कटक जिला स्कूल में हेडमास्टर बने। उसी स्कूल के साथ एफ.ए. की कालिज कक्षाएं भी थीं, जिनका प्रिंसिपल एक अंग्रेज था, उसने यह नियम बना रखा था कि सुबह 10.२५ बजे से पहले विद्यार्थी स्कूल में न घुसें। फाटक पर तब तक ताला पड़ा रहता था। दूर-दूर से आने वाले विद्यार्थियों को बाहर खड़े होकर फाटक खुलने की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी | एक दिन एक विद्यार्थी ने ताला तोड़ दिया और लड़के समय से पहले ही अंदर घुस गए। अंग्रेज प्रिंसिपल बड़ा नाराज हुआ और उसने मधुसूदन राव को विद्यार्थियों को सजा देने के लिए कहा। पर मधुसूदन राव एक आदर्श शिक्षक थे। वह प्रिंसिपल के स्कूल खुलने के समय के आदेश को ही अनुचित मानते थे। इसलिए उन्होंने विद्यार्थियों को सजा देने से इंकार कर दिया। इस पर उनका तबादला कर दिया गया।

फिर वह टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल, कटक के हेडमास्टर बने, जहां उन्होंने स्कूल में साहित्य सभा की स्थापना की। यही आगे चलकर उत्कल साहित्य समाज का वटवृक्ष बन गया। नौ वर्ष तक वह उसके अध्यक्ष रहे।

इसके बाद वह स्कूलों के जिला इंस्पेक्टर बने। इस पद पर रहते हुए वह गांव वालों को स्कूल खोलने के लिए प्रेरित करते रहे, जिससे उड़ीसा के बहुत से गांवों में प्राइमरी और मिडिल स्कूल खुल गए। उन दिनों हाई स्कूल खोलने पर सरकार ने कई कड़ी शर्तें लगा रखी थी | इस कारण लोग हाई स्कूल खोलते हुए हिचकिचाते थे। यह देखकर मधुसूदन राव स्वयं आगे आए। कटक में जनता के दान से उन्होंने कटक टाउन स्कूल खुलवाया। उसमें फीस आदि भी बहुत कम रखी गई। परंतु शर्ते पूरी न करने के कारण सरकार ने उसे सहायता देने से इंकार कर दिया।

मधुसूदन राव समाज सेवक के रूप मे


मधुसूदन केवल किताबी कीड़े नहीं थे, समाज-सेवा की भी उनमें लगन थी। १८६६-६७ में उड़ीसा में भयंकर अकाल पड़ा। वहां के लगभग एक तिहाई व्यक्ति काल के ग्रास बन गए थे। उड़ीसा में इस दुर्भिक्ष को ‘नौ अंक’ के नाम से याद किया जाता है। पूरी में सहायता का कार्य मधुसूदन राव और उनके साथियों को सौंपा गया। ये विद्यार्थी जी-जान से अपने काम में जुट गए। उनके इस काम की बहुत सराहना हुई।

पहले मधुसूदन राव बड़े कट्टर धार्मिक विचारों वाले थे। बानाम्बर महादेव के मंदिर में दर्शन किए बिना भोजन न करते थे। परंतु स्कूल में पढ़ते समय वह पं. हरिहरदास के संपर्क में आए, जो संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान थे, पंरतु कट्टरपंथी न थे। उनके विचार बहुत क्रांतिकारी और सुधारवादी थे। उनके संपर्क के कारण मधुसूदन राव की कट्टरता कम होती गई और वह समाज-सुधारक बनते गए। आगे चलकर वह ब्रह्मसमाजी बन गए, जो उन दिनों समाज-सुधार में अगुआ थे।

मधुसूदन राव के साहित्य


मधुसूदन राव को साहित्य के क्षेत्र में लाने का श्रेय है, पुरी के स्कूल के उनके अध्यापक श्री राधानाथ राय को। उन दिनों उड़िया भाषा की स्थिति बड़ी ही गिरी हुई थी। उसका अपना कोई स्वरूप न था, न कोई अपना लिखित साहित्य। कई लोग तो कह रहे थे कि उड़िया भाषा ही नहीं। बच्चों को भी स्कूल में उड़िया की जगह बांग्ला के जरिए से पढ़ाया जाता था, उड़िया को उसका सही दर्जा दिलाने और उसे समृद्ध करने का पहला सफल प्रयास किया था, श्री फकीरमोहन सेनापति ने | उनके बाद नंबर आता है, श्री राधानाथ राय का। साहित्य के क्षेत्र में मधुसूदन राव ने भी अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया और शीघ्र ही वह भी श्री फकीरमोहन सेनापति और श्री राधानाथ राय की श्रेणी में आ गए, और इन्हीं तीनों को आधुनिक उड़िया साहित्य का निर्माता कहा जाता है।

रिटायर होने के बाद तो वह पूरी तरह इस स्कूल के काम में जुट गए। जनता ने भी स्कूल को सहायता न देने के विरोध में आंदोलन किया। फलतः सरकार को शर्ते ढीली करनी पड़ी।

ब्रह्मसमाज के संपर्क में आने से वह सुधारवादी हो गए थे, अपने विद्यार्थियों में से भी कट्टरपन दूर करने की उन्होंने चेष्टा की। कटक के विद्यार्थी उनसे बहुत प्रभावित हुए और कई जगह ब्रह्मसमाज की स्थापना हो गई। उन्होंने छुआछूत और जात-पात का खूब विरोध किया और जात-पात तोड़कर विवाह कराए। अपने परिवार की लड़कियों की शादियां भी उन्होंने विभिन्न जातियों के ब्रह्मसमाजियों में की।

संस्कृत के वह विद्वान थे और शास्त्रों के ही उदाहरण देकर उन्होंने सिद्ध किया कि शास्त्रों में ऐसे दकियानूसी विचार नहीं है। समाज-सुधार के लिए उन्होंने धर्मबोधिनी पत्रिका का संपादन भी किया। इसलिए उन्हें उड़ीसा का विद्यासागर कहा जाता है।

मधुसूदन राव भक्त कवि के नाम से विख्यात हैं। उनकी अधिकांश कविताएं आध्यात्मिक हैं। वेद, उपनिषद और गीता में आत्मा-परमात्मा के संबंध में जो कुछ कहा गया है, उसे उन्होंने सरल भाषा में जन-साधारण तक पहुंचाया। उनका कथन था कि ऊपर परमात्मा है, नीचे भौतिक जगत और बीच में जीवात्मा। जीवात्मा को चाहिए कि अपने को पूरी तरह भगवान को समर्पित कर दे। आत्मा का परमात्मा से मिलन ही सच्चा आनंद है।

उनकी कविता में भाव और कला, दोनों ही ऊंचे दर्जे की हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध काव्यों के नाम हैं : ऋषि प्राणे देवावतरण, बसंत गाथा, कुसुमांजली, हिमाचले उदय उत्सव |

ऋषि प्राणे देवावतरण, अर्थात ऋषि हृदय में देवावतरण, का बांग्ला अनुवाद पढ़कर महाकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने उसकी भूरिं-भूरिं प्रशंसा की थी। भाषा की ओजस्विता की दृष्टि से यह उनकी सर्वोत्तम कृति है।

हिमाचले उदय उत्सव, अर्थात हिमाचल पर उदय उत्सव, की रचना उन्होंने कंचनजंघा की शोभा पर मुग्ध होकर की। बसंत गाथा, कुसुमांजलि भी उनकी अनुपम रचनाएं हैं उन्होंने कुछ राष्ट्रीय कविताओं की भी रचना की। उत्तर रामचरित का सफल अनुवाद भी उन्होंने किया था।

प्रसिद्ध लेखक अन्नदाशंकर राय ने एक बार कहा था कि यदि विश्व साहित्य को उड़िया की देन के बारे में बताना हो तो, हमें ऋषि प्राणे देवावतरण का उल्लेख करना होगा। उनका यह भी कहना है कि जब तक उड़िया साहित्य रहेगा, तब तक बसंत गाथा, कुसुमांजलि और हिमाचले उदय उत्सव भी अमर रहेंगे।

मधुसूदन राव की मृत्यु


उड़िया साहित्य के इस अमर कवि का देहांत ५९ वर्ष की आयु में २८ दिसंबर १९१२ को हुआ।

इसे भी पढ़े[छुपाएँ]

अमीर खुसरो | Amir Khusro

आंडाल | Andal

आदि शंकराचार्य | Shankaracharya

आर्यभट्ट | Aryabhatt

अकबर | Akbar

अहिल्याबाई | Ahilyabai

एनी बेसेंट | Annie Besant

आशुतोष मुखर्जी | Ashutosh Mukherjee

बसव जीवनी | Basava

बुद्ध | Buddha

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय | Bankim Chandra Chattopadhyay

बदरुद्दीन तैयबजी | Badruddin Tyabji

बाल गंगाधर तिलक | Bal Gangadhar Tilak

चैतन्य महाप्रभु | Chaitanya Mahaprabhu

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य | Chandragupta II

चाणक्य | Chanakya

संत ज्ञानेश्वर | Gyaneshwar

गोपाल कृष्ण गोखले | Gopal Krishna Gokhale

जयदेव | Jayadeva

जमशेदजी नौशेरवानजी टाटा |Jamsetji Nusserwanji Tata

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *