सूक्ष्म शरीर द्वारा कलाकृति की चोरी | Artifact Theft By The Subtle Body

सूक्ष्म शरीर द्वारा कलाकृति की चोरी | Artifact Theft By The Subtle Body

अप्रैल, १९२९ में पेरिस (फ्रांस) के एक धनी व्यापारी पियरे दुबो ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई कि उसके घर से लगभग दस लाख रुपये मूल्य की एक दुर्लभ कलाकृति सहसा गायब हो गई है । पुलिस कमिश्नर पियरे के घनिष्ठ मित्र थे, इसलिए उन्होंने शिकायत मिलते ही अपने सर्वश्रेष्ठ गुप्तचर कलाकृति की खोज में लगा दिए । परन्तु कई दिन तक लगातार खोज करने के बाद भी पुलिस कलाकृति को खोजने में असफल रही ।

जिस कमरे में कलाकृति टंगी थी, उसमें किसी के जबरन प्रवेश करने या उंगलियों के निशान नहीं मिले । कमरे के बाहर चौबीसों घंटे पहरा रहता था तथा उसके दरवाजे तथा खिड़कियां हमेशा मजबूती से बंद रहती थीं । डेढ़ मीटर लंबी तथा एक मीटर चौड़ी कलाकृति को कोई छिपाकर भी नहीं ले जा सकता था । आखिर वह कलाकृति गई तो गई कहां तथा कैसे ?

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यह प्रश्न पुलिस के सामने एक समस्या तथा रहस्य बनता जा रहा था । दूसरे दिन शाम को इस रहस्य पर कुछ प्रकाश पड़ा । पियरे दुबो के पुत्र कैप्टेन मार्शल दुबो ने अलजीरिया (अफ्रीका) से एक तार भेजकर अपने पिता से पूछा था, क्या वह कलाकृति घर में है ? कैप्टेन मार्शल दुबो प्रख्यात चिकित्सक थे तथा फ्रेंच सरकार की सहायता से अल्जीरिया में फैले डिप्थीरिया रोग को रोकने की कोशिश कर रहे थे ।

तार पाकर पियरे को आश्चर्य हुआ कि उसके पुत्र को कैसे मालूम हुआ कि वह कलाकृति घर में नहीं है । स्थानीय पुलिस के अलावा किसी को इसकी सूचना नहीं थी । पुलिस को सख्त ताकीद थी कि वह यह सूचना किसी को भी न दे । पुलिस कमिश्नर को भी पढ़कर बड़ी हैरानी हुई । पियरे दुबो ने अपने पुत्र को तार द्वारा सूचित किया, ‘कलाकृति चोरी हो गई है, पुलिस तहकीकात कर रही है तथा उसे पूरी आशा है कि कलाकृति जल्दी ही मिल जाएगी।’

पर अल्जीरिया के छोटे से गांव मरहम में कैप्टेन दुबो को जब पिता का तार मिला, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । क्योंकि उस समय वह कलाकृति उनकी आंखों के सामने मौजूद थी । उन्होंने तुरन्त गांव के पोस्ट मास्टर, पुलिस इंसपेक्टर, मुखिया तथा एक अन्य डॉक्टर को फोन करके अपने घर बुलाया तथा उनके आने पर पूछा, ‘सज्जनो, आप सामने दीवार पर क्या देख रहे हैं?”

सब ने कहा कि वे अपने सामने एक असाधारण कलाकृति के दर्शन कर रहे हैं । ‘कृपया इसे दीवार से उतार कर, अपने हाथों में लीजिए तथा बताइए कि यह कलाकृति ही है और नहीं । मैं यह प्रश्न एक विशेष उद्देश्य से आपसे पूछ रहा हूं।’ मार्शल ने सबसे कहा । सबने कलाकृति को दीवार से उतार कर बारी-बारी से उसका अच्छी तरह निरीक्षण किया तथा बताया कि कलाकृति के असली तथा मौजूद होने के बारे में उन्हें कोई संदेह नहीं है ।

अब मार्शल ने उन्हें बताया कि स्थिति क्या है और उसने उन्हें क्यों बुलाया था ? उसने उन सबको एक विचित्र घटना के बारे में भी बताया, ‘जब मैं पास के एक गांव से डिप्थीरिया का उन्मूलन करके लौट रहा था, तो गांव का मुखिया अब्दुल मेरा शुक्रिया अदा करने आया । बातों-बातों में उसने आस्था द्वारा चिकित्सा तथा सूक्ष्म शरीर के अनेक चमत्कारों का उल्लेख किया । मैंने उसकी इन बातों में न कोई रुचि दिखायी तथा न यही कहा कि मैं उनमें विश्वास करता हूं । इस पर उसने कहा कि वह अपनी बातों को प्रमाणित कर सकता है । परन्तु, जब मैंने उसकी इस बात को सुनकर भी अविश्वास से सिर हिलाया, तो उसने कहा कि मैं पीछे मुड़ कर देखूं । जैसे ही मैंने पीछे मुड़कर देखा, अपनी इस प्रिय कलाकृति को दीवार पर टंगे पाया । मैं यह जानकर चकित था कि वह कलाकृति पेरिस से यहां कैसे आ गई ?

कमरे में उपस्थित गांव के सब लोग, जो मार्शल की बातों को बड़े ध्यान से मार्शल की तरह ही इस चमत्कार को देखकर आश्चर्य-स्तब्ध थे । मार्शल ने आगे कहा, ‘पिछले कुछ दिनों से मुझे मेरा घर बहुत याद आ रहा था और यह बहुमूल्य कलाकृति, जिसे मैंने बड़े चाव से खरीदा था । अब्दुल ने मेरे मन की बात कैसे जान ली, मैं कह नहीं सकता । परन्तु उसकी कलाकृति को पेरिस से अल्जीरिया लाने के चमत्कार को देखकर मैं सचमुच आश्चर्यचकित हूं । चारों के चले जाने के बाद मार्शल ने अब्दुल को फिर बुलाया तथा उससे प्रार्थना की, ‘अब कृपया इस कलाकृति को वापस पेरिस भिजवा दीजिए। मेरे पिता काफी चिंतित हैं।’

‘आपके ख़याल से मैं इसे वापस भिजवा सकता हूं?’ अब्दुल ने मुस्कराकर पूछा, ‘हां, अब मैं कायल हो गया हूं कि आप अपने सूक्ष्म शरीर के माध्यम से उसे पेरिस भिजवा सकते हैं।’

अब्दुल ने हाथ हिलाया तथा दीवार से कलाकृति ‘गायब’ होकर पेरिस पहुंच गई । अगले दिन मार्शल को अपने पिता का यह तार मिला, कलाकृति पुनः अपने स्थान पर रहस्यमय तरीके से उसी प्रकार वापस आ गई है, जिस तरीके से चली गई थी । पुलिस को सूचित कर दिया गया है।’

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