रूसी झील में विचित्र जलचर । Bizarre waterfowl in Russian Lake
एशियाई देश कजाखिस्तान की कोककोल झील लोगों के लिए रहस्यमयी बनी हुई है । यहां के लोगों में प्रचलित एक दंत कथा के अनुसार इस झील में भीमकाय जलचर का निवास है । हाल में इस दंत कथा में कई नई अविश्वसनीय बातें भी जुड़ गई हैं ।
स्थानीय जन-श्रुति का अध्ययन करने वाले रूसी भूगोल सोसाइटी के सदस्य अलेक्सी पेचोस्की बताते हैं, “मैं चिड़ियों द्वारा शोरगुल मचाए जाने का कारण नहीं समझ पाया, क्योंकि झील बिलकुल शांत थी । अचानक झील की शांत सतह पर छोटी लहरें उठने लगीं तथा गहराई से कोई टेढ़ी-मेढ़ी चीज ऊपर आने लगी तथा ऐसा मालूम पड़ा कि जैसे कोई शक्तिशाली जंतु, जिसकी लंबाई १५ मीटर है और सिर लगभग एक मीटर चौड़ा है, छटपटा रहा हो । उसका सिर बिना हिले-डुले ज्यों-का-त्यों स्थिर था ।“
यहां के स्थानीय भेड़ चराने वालों ने इस बात को न सिर्फ देखा है, बल्कि उसकी आवाज भी सुनी है। हलकी फों-फों अथवा लंबा हुंआ-हुंआ । कुछ लोगों का कहना है कि यह जल-दैत्य कभी-कभी जल के ऊपर बैठने वाली चिड़ियों को, झील के पानी पीने वाले पशुओं को तथा तैरते हुए लोगों को भीतर खींच ले जाता है । इस झील के बारे में एक और रहस्य बना हुआ है । कोई नदी अथवा नाला इस झील में न गिरता है और न ही उससे निकलता है, फिर भी इसका पानी बहुत स्वच्छ, शीतल तथा ताजा बना रहता है ।
स्थानीय लोग बताते हैं कि कुछ स्थानों पर इसकी गहराई को मापा नहीं जा सकता है । जनश्रुति है कि कोककोल अतल झील है । इस झील के बारे में खोज कार्य करने वाले जल वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि कोककोल झील भूमिगत जल-भंडारों की प्रणाली से जुड़ी हुई है । यह झील हिमनदीय मोरेनिक भंडारों के विशाल स्रोतों में अवस्थित है । ऐसा माना जा सकता है कि भूमिगत तथा जल भूतत्वीय कारणों से होने वाले परिवर्तनों से इस झील का पानी सोख लिया जाता है । इससे भंवर वाले ऊंचे जल स्तंभ उत्पन्न होते हैं, जो बड़े जानवरों को भी खींच लेते हैं । जब हवा चलती, तो झील से सीटी जैसी आवाज निकलती है । लेकिन यह अब तक परिकल्पना ही है, ठीक वैसी ही जैसी कि झील के भीतर जल-दैत्य के छटपटाने वाली बात ।
शर्बत की बारिश | Sherbet Rain
सन् १८५७ भारत में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम (गदर) के नाम से प्रसिद्ध है, इसी वर्ष कैलीफोर्निया की नापा काउण्टी स्टेट में एक ऐसा आश्चर्य हुआ, जिसके कारण वह विख्यात हुआ । २७ अगस्त को पिछले कई दिनों से बादल तो घुमड़ रहे थे, पर वर्षा नहीं हो रही थी, तभी अचानक बूंदें गिरनी शुरू हुईं । वर्षा से बचाव के लिए लोग जल्दी-जल्दी घरों में छिपने लगे । कुछ लोग बाहर जंगल में काम कर रहे थे । वे जल्दी घर नहीं पहुंच सके ।
वर्षा का पानी सिर से पांव तक बह रहा था, तब कुछ बूंदें एक चरवाहे के होंठों पर पड़ीं । पानी क्या था, पूरा शर्बत था । अब उसने अपनी हथेली आगे कर दी तथा पूरा चुल्लू पानी इकट्ठा कर पिया, तो वह आश्चर्य में डूब गया, क्योंकि वह पानी नहीं वास्तव में शर्बत था । ठीक वैसा ही जैसा कि पानी में चीनी घोल कर शर्बत बनाया जाता है ।
एक चरवाहे को ही नहीं, कई किसानों, कुछ अध्यापकों तथा शहर के अनेक लोगों को भी एक साथ यही अनुभव हुआ कि आज जो पानी बरस रहा है, वह सामान्य वर्षा से बिलकुल अलग है, अर्थात् पूरे नापा काउण्टी क्षेत्र में बरसे पानी में भरी-पूरी मिठास थी ।
बातों ही बात में यह चर्चा सारे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई । जो जहां था, उसने वहीं वर्षा का पानी पिया तथा पाया कि उस दिन की वर्षा में मिस्री घुली हुई थी । कई दिन लोगों ने वर्षा के एकत्र किए पानी का शर्बत के रूप में प्रयोग किया । नापा काउण्टी के वैज्ञानिकों ने उस पानी के नमूनों के परीक्षण किए । कई लोगों ने घरों में पानी को सुखाया तथा उसमें घुली मिस्री को अलग किया । वर्षा के पानी में घुली इस मिस्री की जब सामान्य रूप में मिलने वाली मिस्री के साथ रासायनिक तुलना की गई, तो पाया गया कि दोनों के कण एक ही तरह के हैं, मिठास भी एक ही तरह की है ।
वर्षा में यह मिस्री कहां से आई, वैज्ञानिक इस बात का आज तक कोई उत्तर नहीं दे सके, जबकि वे इस बात को मानते हैं कि गन्ने के रूप में खेतों से मिलने वाली शक्कर के कण मिट्टी में नहीं आकाश में भी हैं ।