क्या हम उतने ही हैं, जितना हमारा शरीर ? | Are we as much as our body ?

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क्‍या हम उतने ही हैं, जितना हमारा शरीर ? 

(भाग 1)  

Are we as much
as our body ? 

(Part 1)


प्रथम महायुद्ध के समय डॉन” और “बॉब नामक दो अमेरिकी सैनिक
युद्ध के एक मोर्चे पर एक साथ ही घायल हो गये । वे दोनों गहरे मित्र भी थे।
डॉनतो तुरंत मर गया
किंतु “बॉब”
उपचार से ठीक हो गया। पर स्वस्थ होने पर बॉब के स्वभाव में
भारी परिवर्तन देखा गया।वह अपने मित्र
डॉन जैसा व्यवहार
करने लगा। स्वयं को डॉन कहता। युद्ध समाप्त होने पर वह घर के लिए रवाना हुआ
किंतु अपने घर न जाकर, डॉन के घर जा पहुँचा ।
वहाँ डॉन के माता-पिता से मिलकर उतना ही प्रसन्न हुआ जैसा डॉन होता था
| आचरण और व्यवहार में डॉन से पूर्ण समानता
होने पर भी बॉब का शरीर तो
पहले जैसा ही
था। डॉन के माता-पिताने बॉब को अपना पुत्र
मानने से इनकार कर दिया। इस पर बॉब रूपी डॉन को विशेष
  दुख हुआ। उसने डॉन के माता-पिता को अतीत से
संबंधित ऐसी प्रामाणिक घटनाएँ बतायीं
, जो उन्हीं से संबंधित थीं। उस पर उसको विश्वास हो गया कि रूप की भिन्नता होते
हुए भी उसके
सारे क्रिया-कलाप
डॉन जैसे हैं तथा डॉन की आत्मा बॉब
के शरीर में प्रविष्ट हो गई है। यह घटना विज्ञान के लिए
एक चुनौती जैसी है
|

 स्पेन में भी एक
आश्चर्यजनक घटना ऐसी ही सामने आयी।
दो लड़कियाँ एक बस से जा रही थीं। इनमे एक का नाम “हाला” तथा दूसरे का नाम “मितगोल” था। बस
रास्ते में ही दुर्घटनाग्रस्त हो
गई और मितगोल दुर्घटना में पिसकर मर
गई। हाला को चोट तो
नहीं लगी किंतु
भय के कारण बेहोश हो गई। कुछ समय बाद उसे
होश आया। दुर्घटना की सूचना दोनों लड़कियों के
अभिभावकों को
मिली। अपनी
बच्चियों को देखने दोनों दुर्घटना-स्थल पर पहुँचे।
हाला के पिता उसकी ओर बढ़े तथा उसका नाम लेकर
पुकारा।
पर आश्चर्य से वह बोल पड़ी मैं हाला नहीं
मितगोल हूँ।
यह कहकर  वह मितगोल के
पिता की ओर बढी। अभिभावकों ने उसे स्मृति
 भ्रम समझकर, उसे दर्पण दिखाया
ताकी जिससे दर्पण
देखकर भ्रम दूर
 कर सके। परंतु दर्पण
देखकर वह बोली
मितगोल (हमारा)
रूप
कैसे बदल गया। हाला के पिता
किसान थे। वह अधिक पढ़ भी
 नहीं पायी थी। मितगोल के
पिता
प्राचार्य थे। मितगोल कॉलेज
में
पढ़ती थी तथा
विभिन्न विषयों की जानकार थी।
हाला के पिता
समझा-बुझाकर लड़की को अपने साथ ले
 गये। वह उस विद्यालय में
पढ़ने गई
, जहाँ पहले हाला
पढ़ती थी।
किंतु वहाँ उसके
व्यवहार में पूरी तरह परिवर्तन देखा गया। एक
दिन वह उस विद्यालय में जा पहुँची, जहाँ मितगोल
पढ़ती थी। वहाँ
छात्रों को
संबोधित करते हुए
,
स्पिनोजा के तत्त्वज्ञान पर भाषण दिया। ऐसे अनेकों प्रमाणों से प्राचार्य महोदय को यह विश्वास हो चला कि हाला का शरीर होते हुए भी उसमें मितगोल की  आत्मा है। जो भी प्रयोग परीक्षण हुए, उनसे यह एक ही
बात सिद्ध हुई।

विश्व-विख्यात चित्रकार गोया की
आत्मा अमेरिका की एक
विधवा
हैनरोट के भीतर प्रविष्ट हो गई। यह घटना अमेरिका में
प्रसिद्ध है। नये शरीर में गोया ने ग्वालन नामक
एक सुंदर
कलाकृति का निर्माण किया। विधवा हैनरोट
ने अपने जीवन काल
 मे चित्र
नहीं बनाया था। अमेरिकी विशेषज्ञों को विधवा के
व्यवहार में गोया की आत्मा झाँकती दिखायी दी।

आगे और पढ़ने के लिए भाग 2 देखे Click Here (यहा क्लिक करे)          

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