कविता | Poems
रचयिता – श्री योगेश शर्मा “योगी”
संस्कृत के संस्कार की संस्कृति से पलने वालो |रामायण, गीता, वेंदो के अनुसार चलने वालो ||
भूल चुके हो ब्रम्हानन्द के आनंद की थाती को |
ज्ञान के दीपक मे डाल रहे, तुम विदेशी बाती को ||
खुद की खुद्दारी से खुद खुदा को तुमने जाना है |
त्याग, तपस्या, तप, मे है आनंद, विश्व ने माना है ||
भौतिक सुख तो है कपूर, पल भर मे उड जाना है |
लोक मे रहकर भी हमने ही परलोक पहचाना है ||
धारण करने योग्य धरा पर, धर्म वही कहलाता है |
त्रिलोक, त्रिलोचन, त्रिगुण, का मर्म यही समझाता है ||
है धर्म ध्वजा के ध्वज वाहक, नाहक नादानी छोड़ो |
तुम सुधरो जग सुधरेगा, योगी मर्म यही बतलाता है ||