कविता | Poems
रचयिता - श्री योगेश शर्मा "योगी"
रिश्ते निभ रहे, व्यापार की तरह |
हम मिल रहे, अखबार की तरह ||
मर्ज बढ़ता ही गया, दावा लेते रहे |
वैध मिलते रहे बीमार की तरह ||
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